इतिहासकार ऑड्रे ट्रुश्के व उनके दो सहयोगियों ने लेखक विक्रम संपत पर साहित्यिक चोरी के आरोप लगाए हैं. इसके ख़िलाफ़ संपत की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने इन इतिहासकारों को किसी भी प्लेटफॉर्म पर इस बारे में कोई सामग्री प्रकाशित करने से अस्थायी तौर पर रोक दिया है. कोर्ट ने इस बारे में इतिहासकारों द्वारा लंदन की रॉयल हिस्टोरिकल सोसाइटी को लिखे पत्र को भी साझा करने पर पाबंदी लगाई है.
नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने इतिहासकार ऑड्रे ट्रुश्के और उनकी दो सहयोगियों पर लेखक विक्रम संपत के खिलाफ किसी भी प्लेटफॉर्म पर किसी भी तरह की मानहानिकारक सामग्री के प्रकाशन पर रोक लगा दी है.
रिपोर्ट के अनुसार, रटगर्स यूनिवर्सिटी की ट्रुशके और अमेरिका में भारत के दो अन्य इतिहासकारों- जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर अनन्या चक्रवर्ती और सांता क्लारा यूनिवर्सिटी के रोहित चोपड़ा ने हिंदुत्व विचारक वीडी सावरकर की दो खंड की जीवनी के लेखक विक्रम संपत पर साहित्यिक चोरी (Plagiarism) का आरोप लगाया है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अमित बंसल ने इन इतिहासकारों पर साहित्यिक चोरी का मुद्दा उठाते हुए उनके द्वारा लंदन में रॉयल हिस्टोरिकल सोसाइटी को लिखे गए पत्र की सामग्री को भी सार्वजनिक करने पर रोक लगा दी है.
अदालत ने आदेश में कहा, ‘सुनवाई की अगली तारीख तक प्रतिवादी 1,2,3,6 और 7 को ट्विटर या अन्य फोरम पर ऑनलाइन या ऑफलाइन किसी भी माध्यम से पत्र या किसी अन्य मानहानिकारक सामग्री को प्रकाशित करने से रोका जाता है.’
इसके साथ ही जिन अन्य लोगों या पक्षों पर यह रोक लगाई गई है, उनमें ट्विटर, शिक्षाविद अशोक स्वैन और टेक रिपोर्टर अभिषेक बख्शी हैं. इन दोनों ने ट्विटर पर इस पत्र की कॉपी ट्वीट की थी. मामले की अगली सुनवाई एक अप्रैल को होगी.
इन तीनों शिक्षाविदों ने 2017 में संपत पर प्रकाशित सावरकर के लेखों में से एक में कई वाक्यों की ओर इशारा कर कहा कि इन वाक्यों को या तो सीधे शब्दशः उठा लिया गया है या उनमें बिना किसी संपादन के दोबारा रखा गया है.
द वायर ने अपनी रिपोर्ट में इन कथित समानताओं का तुलनात्मक विश्लेषण किया है. द वायर को भेजे ईमेल में संपत ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि उन्होंने अपने काम में सभी का विधिवत आभार जताया है.
उन्होंने इस पत्र को ‘अपमानजनक’ बताते हुए कहा कि वह इसके कंटेंट की रिपोर्टिंग को लेकर द वायर सहित सभी संबंधित पक्षों के खिलाफ जल्द ही कानूनी कार्रवाई करेंगे.
संपत ने इस पत्र को लेकर ट्रुश्के, चक्रवर्ती और चोपड़ा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है. इसके साथ ही ट्वीट को लेकर बख्शी और स्वैन के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज किया है, जिसमें संपत का दावा है कि वैश्विक स्तर पर उनकी पेशेवर प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से ऐसा किया गया है.
उन्होंने पत्र और अन्य आपत्तिजनक सामग्री के प्रकाशन पर रोक लगाने के लिए स्थाई निषेधाज्ञा की भी मांग की है. इसके अलावा प्रतिवादियों से दो करोड़ रुपये के हर्जाने और आपत्तिजनक ट्वीट को लेकर ट्विटर से इस पर रोक लगाने का निर्देश देने की भी मांग की गई है.
संपत के वकील राघव अवस्थी ने कहा कि संपत किसी तरह की साहित्यिक चोरी के जिम्मेदार नहीं है.
लाइव लॉ के मुताबिक, अवस्थी ने कहा कि संपत की किताब की समीक्षा करने वाली इतिहासकार झांकी भाखले ने साहित्यिक चोरी की कोई शिकायत नहीं की.
संपत पर एक अन्य लेखक विनायक चतुर्वेदी के लेख से चोरी करने का आरोप लगा है.
चतुर्वेदी ने द वायर को बताया, ‘इस घटना के बारे में सुनना बहुत ही निराशाजनक है. सावरकर पर काम कर रहे किसी भी शख्स को पता है कि उनके पास ज्ञान का अथाह भंडार है. मैं इसमें रूचि लेने वाले किसी भी शख्स को इन दोनों लेखों को साथ-साथ पढ़ने और खुद ही फैसला करने के लिए प्रोत्साहित करूंगा.’
हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या चतुर्वेदी की प्रतिक्रिया को जज के संज्ञान में लाया गया या नहीं.
अदालत ने कहा, ‘वादी ने प्रथमदृष्टया इस पत्र के प्रकाशन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग करते हुए कहा है कि इस पत्र से वादी की प्रतिष्ठा और उनके करिअर को भारी क्षति पहुंच सकती है.’
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्विटर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता साजन पुवैया ने कहा कि ट्विटर सिर्फ एक मध्यस्थ है.
पुवैया ने स्वेच्छा से कहा कि अगर यूआरएल मुहैया कराया जाता है तो इसे ट्विटर द्वारा हटाया जा सकता है. हालांकि अदालत ने फिलहाल ट्विटर को लेकर कोई निर्देश नहीं दिया.