जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को नहीं बचाया गया तो लोकतंत्र नाकाम हो जाएगा.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों ने शीर्ष अदालत की समस्याओं को सूचीबद्ध करते हुए शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश के ख़िलाफ़ बग़ावत जैसा क़दम उठाकर सभी को चौंका दिया. उन्होंने ‘चयनात्मक तरीके से’ मामलों के आवंटन और कुछ न्यायिक आदेशों पर सवाल उठाए. इससे समूची न्यायपालिका और राजनीति में तूफान खड़ा हो गया.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के बाद उच्चतम न्यायालय में दूसरे सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीश जे चेलमेश्वर समेत चार न्यायाधीशों के अप्रत्याशित क़दम ने हाल के महीनों में शीर्ष अदालत में देश के शीर्ष न्यायाधीश और कुछ वरिष्ठ न्यायाधीशों के बीच मतभेद को सामने ला दिया. उच्चतम न्यायालय में फिलहाल 25 न्यायाधीश हैं.
इन न्यायाधीशों ने कहा कि ये समस्याएं देश की सर्वोच्च न्यायपालिका को नुकसान पहुंचा रही हैं और ये भारतीय लोकतंत्र को नष्ट कर सकती हैं.
सर्वोच्च न्यायपालिका के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर सहित चार न्यायाधीशों ने अभूतपूर्व क़दम उठाते हुए संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में न्यायपालिका और पर्यवेक्षकों को हतप्रभ कर दिया कि सार्वजनिक रूप से ऐसे असंतोष का खोखली हो रही संस्था में आखिर कैसे समाधान होगा.
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने ख़ुद भी इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को ‘अभूतपूर्व घटना’ बताया और कहा, ‘कभी-कभी उच्चतम न्यायालय का प्रशासन सही नहीं होता है और पिछले कुछ महीनों में ऐसी अनेक बातें हुई हैं जो अपेक्षा से कहीं नीचे हैं.’
उन्होंने अचानक आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस संस्था की संरक्षा के बग़ैर इस देश में ‘लोकतंत्र नहीं बचेगा.’
यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में अपनी तरह की पहली घटना है.
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में तीखी आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने 12 जनवरी को सवेरे प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा से भेंट की थी और ‘संस्थान को प्रभावित कर रहे मुद्दों को उठाया था.’
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने अपने आवास पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस संस्थान को संरक्षित किए बग़ैर, इस देश का लोकतंत्र नहीं बचेगा. उन्होंने कहा कि इस तरह से प्रेस कॉन्फ्रेंस करना ‘बहुत ही कष्ठप्रद है.’
उन्होंने कहा कि चारों न्यायाधीश प्रधान न्यायाधीश को यह समझाने में विफल रहे कि कुछ चीज़ें व्यवस्थित नहीं हैं, इसलिए उन्हें सुधारात्मक उपाय करने चाहिए. दुर्भाग्य से हमारे प्रयास विफल हो गए.
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, ‘और हम चारों को ही यकीन हो गया है कि लोकतंत्र दांव पर है और हाल के दिनों में कई घटनाएं हुई हैं.’
इन मुद्दों के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ‘इनमें प्रधान न्यायाधीश द्वारा मुक़दमों का आवंटन भी शामिल’ है.
उनकी यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि उच्चतम न्यायालय के समक्ष शुक्रवार 12 जनवरी को ही संवेदनशील सोहराबुद्दीन शेख़ मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई के विशेष जज बीएच लोया की रहस्यमय परिस्थितयों में मृत्यु की स्वतंत्र जांच के लिए दायर याचिकाएं सूचीबद्ध थीं.
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, ‘संस्थान और राष्ट्र के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी है. संस्थान को बचाने के लिए क़दम उठाने हेतु प्रधान न्यायाधीश को समझाने के हमारे प्रयास विफल हो गए.’
उन्होंने कहा, ‘यह किसी भी राष्ट्र, विशेषकर इस देश के इतिहास में असाधारण घटना है और न्यायपालिका की संस्था में भी असाधारण घटना है. यह कोई प्रसन्नता की बात नहीं है कि हम प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के लिए बाध्य हुए. लेकिन कुछ समय से उच्चतम न्यायालय का प्रशासन ठीक नहीं है और पिछले कुछ महीने में ऐसी अनेक बातें हुई हैं जो अपेक्षा से कम थीं.’
चारों न्यायाधीशों ने प्रधान न्यायाधीश को लिखा अपना सात पेज का पत्र भी प्रेस को उपलब्ध कराया. उन्होंने इसमें कहा है, ‘इस देश के न्यायशास्त्र में यह अच्छी तरह से प्रतिपादित है कि प्रधान न्यायाधीश हम सभी में प्रथम हैं… न तो अधिक और न ही कम.’
प्रेस कॉन्फ्रेंस में सभी न्यायाधीशों ने इन सवालों को बकवास बताया कि उन्होंने अनुशासन भंग किया है और कहा कि वे वह करना शुरू कर देंगे जो वे करते हैं.
जस्टिस जे. चेलमेश्वर ने कहा, ‘हम चारों मीडिया का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं. यह किसी भी देश के इतिहास में अभूतपूर्व घटना है क्योंकि हमें यह ब्रीफिंग करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. हमने ये प्रेस कॉन्फ्रेंस इसलिए की ताकि हमें कोई ये न कहे हमने अपनी आत्मा बेच दी.’
न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, ‘कोई भी अनुशासन भंग नहीं कर रहा है और यह जो हमने किया है वह तो राष्ट्र का क़र्ज़ उतारना है.’
न्यायमूर्ति गोगोई इस साल अक्टूबर में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के सेवानिवृत्त होने पर नए प्रधान न्यायाधीश होंगे.
यह पूछने पर कि क्या वे चाहते हैं कि प्रधान न्यायाधीश पर महाभियोग चलाया जाए तो न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, ‘राष्ट्र को फैसला करने दीजिए.’
इस बीच, सूत्रों ने बताया कि यह प्रेस कॉन्फ्रेंस ख़त्म होने के तुरंत बाद ही प्रधान न्यायाधीश ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को बातचीत के लिए बुलाया.
इस बीच, केंद्र ने साफ कर दिया कि वह इस अप्रत्याशित घटनाक्रम में हस्तक्षेप नहीं करने जा रहा है. उसने कहा कि न्यायपालिका ख़ुद से मुद्दे का समाधान करेगी. विधि राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने कहा, ‘हमारी न्यायपालिका पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित, स्वतंत्र है और वे ख़ुद से मामले का समाधान कर लेंगे.’
हालांकि सूत्रों ने यह भी कहा कि शीर्ष अदालत को यथाशीघ्र इन मुद्दों को सुलझाना चाहिए क्योंकि न्यायपालिका के प्रति जनता का विश्वास दांव पर है.
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जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट में बहुत कुछ ऐसा हुआ, जो नहीं होना चाहिए था. हमें लगा, हमारी देश के प्रति जवाबदेही है और हमने मुख्य न्यायाधीश को मनाने की कोशिश की, लेकिन हमारे प्रयास नाकाम रहे अगर संस्थान को नहीं बचाया गया, लोकतंत्र नाकाम हो जाएगा.’
सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश को सुधारात्मक कदम उठाने के लिए कई बार मनाने की कोशिश की गई, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे प्रयास विफल रहे. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में प्रशासन सही से नहीं चल रहा है.