कांग्रेस बोली, सरकार पहले किसान की आय मापने के उपाय करे. भाजपा ने कहा, विपक्ष में आए तब बुद्धि आई?
लोकसभा में आज गुरुवार को किसान समस्याओं पर चर्चा हुई. हालांकि, समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, संसद में हुई ‘यह चर्चा अधूरी रही’. जबकि, किसान आत्महत्याओं में लगातार वृद्धि हो रही है और केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद किसानों की आत्महत्या की दर 42 फीसदी बढ़ गई है.
दूसरी तरफ, दिल्ली के जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के डेढ़ सौ किसान तीन दिन से भूख हड़ताल के साथ कपड़े उतार कर प्रदर्शन कर रहे हैं. तमिलनाडु में पिछले चार महीने में चार सौ किसानों ने क़र्ज़ और सूखे के चलते आत्महत्या कर ली है.
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में पिछले दो महीने में 117 किसानों ने आत्महत्या की है. दिसंबर, 2016 में सरकार ने राज्यसभा को बताया था कि देश भर में करीब 9 करोड़ किसान परिवारों में से 51.9 प्रतिशत किसी न किसी रूप में क़र्ज़ में हैं. प्रति कृषि परिवार औसत ऋण की राशि करीब 47,000 रुपये है. देश में कृषि परिवारों की अनुमानित संख्या 9.02 करोड़ है जिनमें से 4.68 करोड़ परिवार क़र्ज़ से ग्रस्त हैं. महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे राज्यों में बढ़ती किसान आत्महत्याओं के बीच संसद में जो चर्चा हुई, वह भाजपा-कांग्रेस के बीच तू-तू मैं-मैं से ज्यादा कुछ नहीं थी.
मध्य प्रदेश में पिछले करीब तीन माह में लगभग 287 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की है. मध्य प्रदेश विधानसभा में यह जानकारी कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक रामनिवास रावत के प्रश्न के उत्तर में प्रदेश सरकार ने लिखित तौर पर दी है. प्रदेश सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक 16 नवंबर, 2016 से इस वर्ष फरवरी तक 3.5 महीने में 106 किसानों और 181 कृषि मजदूरों ने खुदकुशी की है.
कांग्रेस के एक सांसद ने देश में किसानों की आय पांच साल में दोगुना करने के सरकार के दावे पर निशाना साधते हुए कहा कि पहले देश में किसानों की आय मापने के उपाय करने चाहिए और उसके बाद ही घोषणाएं की जानी चाहिए. भाजपा ने पलटवार करते हुए पूछा कि क्या विपक्ष में आने के बाद कांग्रेस को यह बुद्धि आई है?
वर्ष 2017-18 के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की अनुदान की मांगों पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस नेता के. सुरेश ने कहा कि सरकार ने किसानों की आय पांच साल में पांच गुना करने की प्रतिबद्धता जताई है जबकि आज भी किसानों की आय मापने का पैमाना उसके पास नहीं है.
उन्होंने कहा कि सरकार को किसान का आय मापने के उपाय पहले करना चाहिए, बाद में इस तरह के वादे करने चाहिए. सरकार के नोटबंदी के फैसले ने सहकारिता क्षेत्र को संकट में डाल दिया जिसकी वजह से किसानों को सहकारी बैंकों से कर्ज प्रदान करने की प्रक्रिया प्रभावित हुई.
उन्होंने केरल में धान के लिए सुरक्षित वेयरहाउस बनाने की मांग की. सुरेश ने कहा कि देश में किसानों की कई समस्याएं हैं जिन पर तत्काल ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है.
भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव ने कहा कि कांग्रेस को पिछले इतने साल के शासन में खेती में ये समस्याएं नज़र नहीं आई और विपक्ष में आने के बाद कांग्रेस के सदस्यों को अधिक बुद्धि आ गई है.
उन्होंने कहा कि देश में अगर किसान को सही मायने में प्रशिक्षण दिया गया होता तो कृषि विज्ञान का प्रसार और किसानों को आधुनिक तकनीक से जोड़ने का काम सही से होता और देश में 272 मिलियन टन कृषि उत्पादन की जगह 300 मिलियन टन से ज्यादा उत्पादन होता.
यादव ने कहा कि देश में किसानों को किसानों द्वारा ही प्रशिक्षण का मॉडल बनाया जाना चाहिए. इस बारे में उन्हें लोकभाषा में ही समझाया जा सकता है, किसी दूसरी या विलायती भाषा में नहीं.
उन्होंने कहा कि देश में 80 प्रतिशत किसानों की आबादी पिछले कई साल तक उपेक्षित रही जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार का ध्यान गया और इसी कारण से इस साल के बजट में वित्त मंत्री ने कृषि को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा है.
यादव ने कहा कि देश में 1951 से 2011 में किसानों की संख्या में 26 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई जबकि इस अवधि में खेतिहर मजदूरों की संख्या इतनी ही बढ़ गई. उन्होंने कहा, हमारी नीति ऐसी थी कि किसान खेतिहर मजदूर बनता गया. भाजपा सांसद और पूर्व कृषि राज्य मंत्री ने कहा कि सरकार किसानों की स्थिति में सुधार के लिए काम कर रही है.
चर्चा में अन्नाद्रमुक के जे. जयवर्धन ने कहा कि देश की आबादी बढ़ रही है लेकिन खेती का रकबा घट रहा है. ऐसे में खाद्यान्न की मांग बढ़ने से खेती पर दबाव बढ़ रहा है. इस स्थिति को देखते हुए कृषि मंत्रालय का आवंटन और बढ़ाया जाना चाहिए ताकि विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किसानों को खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
तृणमूल कांग्रेस के तापस मंडल ने कहा कि उत्पादक और विविधतापूर्ण कृषि प्रणाली देश में आनी चाहिए. उत्पादकता को लेकर कम कदम उठाये गये हैं.
शिवसेना के अरविंद सावंत ने महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा में किसानों की खुदकुशी के मामले को उठाते हुए कहा कि यदि किसान आत्महत्या कर रहा है तो सरकार की योजनाओं का क्या लाभ.
उन्होंने कहा कि मृदा परीक्षण की सरकार की योजना का अभी तक शत प्रतिशत क्रियान्वयन नहीं हो रहा है. सावंत ने कहा कि कृषि मंत्रालय को जलवायु परिवर्तन से होने वाले परिणामों के बारे में भी सोचना होगा. उसे इसके साथ मिट्टी, जल और बीज के कारकों पर क्रमबद्ध तरीके से काम करना होगा. चर्चा में बीजद के नागेंद्र कुमार प्रधान और भाजपा के संजय धोत्रे ने भी भाग लिया. हालांकि, चर्चा अधूरी रही.
इसके उलट, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने हाल में जो आंकड़े जारी किए हैं, उनके मुताबिक, किसान आत्महत्याओं में करीब 42 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. 30 दिसंबर, 2016 को ‘एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015’ शीर्षक से जारी ब्यूरो की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015 में 12,602 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की. 2014 में कुल 12,360 किसानों और मजदूरों ने आत्महत्या की थी. आंकड़ों के मुताबिक, 1995 से लेकर अब तक देश भर में क़र्ज़, सूखा और भुखमरी के चलते करीब सवा तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)