सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि देश के 20 ज़िला खनिज फाउंडेशन ट्रस्टों ने 18,467 करोड़ रुपये का फंड इकट्ठा किया लेकिन किसी ने भी एक भी लाभार्थी की पहचान नहीं की है.
नई दिल्ली: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि ज़िला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) खनन गतिविधियों की वजह से विस्थापित होने वाले या अपनी आजीविका खोने वाले लोगों को लाभ पहुंचाने में नाकाम रहा है.
देश भर के 20 डीएमएफ ट्रस्टों ने 18,467 करोड़ रुपये का फंड इकट्ठा कर लिया है लेकिन इनमें से किसी भी ज़िला खनिज फाउंडेशन ने एक भी लाभार्थियों की पहचान नहीं की है.
डीएमएफ एक गैर लाभकारी ट्रस्ट है जो कि खनिक गतिविधियों की वजह से प्रभावित हुए लोगों और इलाकों के कल्याण के लिए काम करता है. इसमें खनिक ही आर्थिक सहायता देते हैं.
दिल्ली के सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी रिपोर्ट ‘पीपल्स फर्स्ट: डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन स्टेटस रिपोर्ट’ में देश के 12 खनन राज्यों में डीएमएफ के प्रशासन के विश्लेषण के जरिए उसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया है.
रिपोर्ट में देश के शीर्ष पांच खनन राज्यों- ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के 13 जिलों में हुए निवेश का सघन विश्लेषण किया गया है.
रिपोर्ट जारी करते हुए सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, ‘जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) प्राकृतिक संसाधन के शासन का एक जन केंद्रित दृष्टिकोण है जहां लोगों के लाभ प्राप्त करने के अधिकार को सबसे आगे रखा गया है. अगर डीएमएफ को उचित ढंग से विकसित और क्रियान्वित किया जाता है तो डीएमएफ न केवल सबसे कमजोर समुदायों के जीवन और उनकी आजीविका सुधारने की भारी क्षमता है बल्कि ये समावेशी शासन के लिए भी आदर्श मॉडल हो सकता है.’
रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर राज्यों में डीएमएफ प्रशासन में नौकरशाह और राजनीतिज्ञों का प्रभुत्व है. इसमें खनन प्रभावित लोगों का कोई महत्व नहीं है.
नियम के मुताबिक इसमें ग्राम सभा को शक्तियां दी गईं हैं लेकिन किसी भी डीएमएफ ने उन्हें शामिल नहीं किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि डीएमएफ फंडो का उपयोग और उसे तय करने में राज्य सरकार का काफी अधिक हस्तक्षेप है.
रिपोर्ट के मुताबिक डीएमएफ में अत्यधिक प्रभावित क्षेत्रों ओर लोगों को निवेश से बाहर रखा गया है.
इस पर सीएसई के उप महानिदेशक चंद्र भूषण ने कहा कि कानून में साफ तौर पर जिक्र है कि डीएमएफ खनन प्रभावित लोगों और खनन प्रभावित इलाकों दोनों पर ध्यान केंद्रित करेगा. लिहाजा डीएमएफ को दोनों की पहचान करनी चाहिए और उसके हिसाब से निवेश करना चाहिए.
चंद्र भूषण ने यह भी कहा, ‘डीएमएफ खनन की वजह से गरीबी में रहने वाले लाखों लोगों को दशकों से मिले अन्याय को खत्म करने का एक अवसर देता है. हालांकि यह तभी असरदार हो सकता है जब इसका क्रियान्वयन डीएमएफ के नियमों और उसमें निहित भावना के मुताबिक हो रहा हो.’
ओडिशा को सबसे ज्यादा 4,453 करोड़ रुपये का डीएमएफ फंड मिला है. वहीं दूसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ है. छत्तीसगढ़ को 2,746 करोड़ रुपये, झारखंड को 2,696 करोड़ रुपये, राजस्थान को 1,782 करोड़ रुपये और मध्य प्रदेश को 1,610 करोड़ रुपये की राशि मिली है.
रिपोर्ट के मुताबिक, ओडिशा में डीएमएफ के तहत 2,588.9 करोड़ रुपयेका आवंटन किया गया था लेकिन 33 प्रतिशत से ज्यादा की राशि सड़क और पुल बनाने में खर्च के लिए है.
सीएसई प्रोग्राम मैनेजर श्रेष्ठा बनर्जी, जिन्होंने कुछ राज्यों में जमीनी स्तर पर पड़ताल की है, कहा कि स्वास्थ्य देखभाल सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रही है. खासकर डीएमएफ के प्राथमिकता वाले क्षेत्र में इसकी हालत और भी खराब है.
हालांकि रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि डीएमएफ से जुड़ी जानकारी देने में ओडिशा राज्य सबसे अच्छा है. ओडिशा ने जिला-वार सूचनाओं के आधार पर डीएमएफ वेबसाइट भी तैयार की है. इसमें सभी जरूरी जानकारियां जैसे कि डीएमएफ ट्रस्टी और सदस्य, फंड आवंटन और खर्च, बैठक के मिनट्स के बारे में सूचनाएं दी गईं हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)