ग्रामीणों का आरोप है कि मुठभेड़ के वक्त मौके पर कोई माओवादी नहीं था बल्कि बड़ी संख्या में पुलिस जवानों को देखकर ग्रामीण भागने और छिपने की कोशिश कर रहे थे जिन पर बिना कुछ कहे और बताए गोलियां बरसा दी गईं. मरने वालों में 6 नाबालिगों के होने का भी दावा है.
नई दिल्ली: सुकमा ज़िले के नुकलातोंग में सोमवार को हुई कथित नक्सली मुठभेड़ में 15 नक्सलियों के मारे जाने के पुलिस के दावों पर सवाल उठने शुरु हो गए हैं.
एक ओर आम आदमी पार्टी (आप) की राज्य इकाई ने इसे फर्जी ठहराया है तो दूसरी ओर कांग्रेस भी मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए इसे मुख्यमंत्री रमन सिंह के उस बयान से जोड़कर देख रही है जहां पिछले दिनों उन्होंने नक्सलियों को चेतावनी देते हुए कहा था कि मुख्यधारा में लौटो या गोली खाओ.
वहीं, आम आदमी पार्टी नेता सोनी सोरी ने दावा किया है कि जो लोग मुठभेड़ में मारे गए हैं उनके परिजनों से उनकी बात हुई है और उनका कहना है कि मरने वाले नक्सली नहीं थे.
दूसरी ओर ऐसी भी खबरें सामने आ रही हैं कि जिस गांव में मुठभेड़ हुई, वहां के ग्रामीणों ने घटना के बाद आधी रात को स्थानीय थाने का घेराव भी किया. ग्रामीणों में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिजन भी शामिल थे.
आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक संकेत ठाकुर ‘द वायर’ से बातचीत में कहते हैं, ‘मुठभेड़ तो फर्जी है. क्योंकि जैसे ही मुठभेड़ के बाद जब शव सौंपने की बात आई तो बच्चों के माता-पिताओं ने हमसे संपर्क साधा और कहा कि पुलिस ने हमारे बच्चों को षड्यंत्र करके घेरकर मार डाला है.’
वे आगे बताते हैं कि मुठभेड़ के बाद जब अगले दिन शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल लाया गया तो वहां मृतकों के परिजनों को भी बुलाया गया, तब उनसे हमारी नेता सोनी सोरी मिलीं. हमारी टीम वहां पहुंची थी. परिजनों का कहना था कि उनके बच्चे रात को खेत-खलिहानों में सो रहे थे.’
उन्होंने बताया, ‘ग्रामीणों ने हमें पूरी घटना बताई कि पुलिस फोर्स ने उन्हें घेरा तो वे डर कर भागे, भागने पर पुलिस ने उन्हें गोली मार दी.’
संकेत का यह भी दावा है कि मरने वालों में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें गांव से निकालकर मारा गया है.
वे कहते हैं, ‘ऐसा हम नहीं कहते, यह गांव वालों का कहना है.’
वे साथ ही कहते हैं कि मारे गए लोगों में छह नाबालिग हैं.
उन्होंने बताया कि नुकलातोंग गांव में सुरक्षा बलों की तैनाती काफी ज्यादा है. उनकी टीम गुरूवार को नुलकातोंग गांव रवाना हुई लेकिन पीड़ित परिजनों से मुलाकात नहीं हो सकी.
सोनी सोरी और सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार लिंगाराम कोडोपी ने कहा कि सोमवार को 15 नक्सलियों को मार गिराने के पुलिस के दावों की पोल अगले दिन ही खुल गई जब किस्टाराम में महिलाओं ने प्रदर्शन किया और कहा कि मारे गए लोग नक्सली नहीं थे.
उनका कहना है कि पुलिस ने नक्सल अभियान को सफल दिखाकर प्रशंसा पाने के लिए बेगुनाहों को मौत के घाट उतार दिया. वे साधारण किसान थे जिनको मार गिराए जाने के बाद पुलिस नक्सलवादी करार दे रही है.
सोनी सोरी ने मामले की न्यायिक जांच की मांग की है.
उन्होंने कहा, ‘मेरी मुठभेड़ में मारे गए कथित माओवादियों के परिजनों से बात हुई है.’
पत्रिका की एक रिपोर्ट में सोरी के मुताबिक, गांव वालों ने उन्हें बताया कि घटना के वक्त मौके पर कोई माओवादी नहीं था. सच तो यह है कि बड़ी संख्या में पुलिस के जवानों को देखकर निहत्थे ग्रामीण भागने और छिपने की कोशिश कर रहे थे. जवानों ने बिना कुछ कहे और बताए उन पर गोलियां दाग दीं.
वह आगे कहती हैं, ‘इसके बाद जब जवानों को पता चला कि वे माओवादी नहीं बल्कि ग्रामीण हैं तो वे घबरा गए और अपना गुनाह छिपाने के लिए घटना के प्रत्यक्षदर्शियों को भी मारना शुरू कर दिया.’
सोरी के मुताबिक उन्हें भी मृतकों के परिजनों से मिलने नहीं दिया जा रहा था, वे किसी तरह चकमा देकर ग्रामीणों से मिल सकी हैं.
उनका यह भी कहना है कि उनसे मुलाकात की भनक लगते ही पुलिस ने एक-एक करके सभी ग्रामीणों को छिपा दिया है.
हालांकि, इस मुठभेड़ में पुलिस ने एक महिला सहित दो नक्सलियों के जिंदा पकड़े जाने की भी बात की है जिनके नाम बुधली और देवा हैं.
सोनी सोरी ने गांव वालों की बात का हवाला देते हुए कहा कि वे दोनों पुलिस की गोलियों से इसलिए बच पाए क्योंकि गोलियों की आवाज सुनकर आस-पास के ग्रामीण घटनास्थल की ओर भागकर आने लगे थे. बड़ी संख्या में ग्रामीणों को देखकर पुलिस ने बुधली और देवा को छोड़ दिया. यदि गांव वाले समय पर नहीं आते तो उन दोनों को भी मार दिया गया होता.
सोनी सोरी ने दैनिक भास्कर से बातचीत में बताया कि मृतकों में मड़काम हूंगा और मड़काम आयाता नामक दो सगे भाई भी शामिल हैं. जिनकी मां का दावा है कि दोनों नाबालिग हैं.
वहीं, सुकमा के पुलिस अधीक्षक (एसपी) का दावा है कि मंगलवार को जब ग्रामीण नक्सलियों के शव लेने कोंटा थाने पहुंचे तो उन्होंने बताया कि नक्सली रविवार शाम को गांव पहुंचे थे और ग्रामीणों की एक बैठक भी ली.
उनके अनुसार, ग्रामीणों द्वारा नक्सलियों के खाने-पीने का इंतजाम करने की बात भी सामने आई है.
एसपी ने कहा, ‘जब मुठभेड़ हुई तो नक्सलियों के लिए खाने की व्यवस्था करने आए कुछ ग्रामीण भी वहां मौजूद थे. जवानों को अपनी ओर बढ़ता देख नक्सलियों ने फायरिंग शुरू कर दी. गोलीबारी के दौरान ज्यादातर ग्रामीण मौके से भाग खड़े हुए. दो ग्रामीण हाथ ऊपर कर खड़े हो गए. निहत्थे ग्रामीणों पर जवानों ने गोली नहीं चलाई और उन्हें हिरासत में ले लिया.’
लिंगाराम कोडोपी एसपी मीणा के बयान को लेकर फेसबुक पर लिखते हैं, ‘एसपी मीणा का यह बयान काफी नहीं है, गांव के ग्रामीण कुछ और ही कहानी बता रहे हैं. क्या जिला सुकमा एसपी स्वतंत्र जांच के लिए तैयार हैं? अगर तैयार हैं तो हमें जांच पड़ताल करने दें. जिला पुलिस प्रशासन द्वारा जांच टीम को रोकना नहीं चाहिए. हमेशा पुलिस गलत होती है तो ही रोक-टोक होती है.’
वे आगे लिखते हैं, ‘मंगलवार को हम गांव की पीड़ित महिलाओं से मिलने पहुंचे तो उन्होंने बताया कि वे दो दिन से भूखे हैं. हम उनके लिए खाने की सामग्री लेने गए. जैसे ही हम उनके भोजन की व्यवस्था करने निकले सारी ग्रामीण महिलाओं को पुलिस ने उस जगह से गायब कर दिया. हम ग्रामीण महिलाओं को ढूढ़ते रह गए. पुलिस प्रशासन गलत नहीं हैं तो हमे मिलने क्यों नहीं दिया जा रहा था? पुलिसकर्मी हमें बोल रहे थे कि आप इनके साथ बात नहीं कर सकते, फोटो खींच नहीं सकते, इतने में ही मुझे शक हुआ कि कुछ गड़बड़ है. सच्चाई तो हम बाहर लाकर रहेंगे.’
पत्रिका के मुताबिक, कांग्रेस ने भी मुठभेड़ पर संदेह व्यक्त किया है. प्रदेश में आदिवासी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अरविंद नेताम ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि जिस तरह के तथ्य सामने आ रहे हैं, उससे मुठभेड़ की प्रमाणिकता पर संदेह खड़ा हो रहा है.
नेताम ने कहा, ‘एसपी ने बयान दिया है कि मुठभेड़ के दौरान ग्रामीण भी मौजूद थे. यदि ऐसा है तो पुलिस को अपनी लक्ष्मण रेखा समझते हुए ऐसी जगहों पर गोलीबारी करने से बचना चाहिए था.’
उन्होंने आगे सवाल उठाते हुए कहा, ‘मुठभेड़ के बाद ग्रामीणों का तुरंत थाने पहुंच जाना, 6 से 7 लोगों का नाबालिग होना, मुख्यमंत्री और एसपी के बयान कई तरह के संदेह पैदा करते हैं.’
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री का बयान इस मुठभेड़ के परिपेक्ष्य में इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि उन्होंने माओवादियों को लेकर पिछले दिनों कहा था कि मुख्यधारा में लौटो या गोली खाओ. इसलिए कांग्रेस उक्त मुठभेड़ को फर्जी ठहरा रही है.
राज्य के मुख्य विपक्षी दल का कहना है, ‘मुख्यमंत्री ने पहले ही शायद निर्देशित कर दिया था कि उनके इस तरह का बयान देने के बाद एक्शन दिखाना है. इसी का पालन करते हुए कथित मुठभेड़ हुई.’
वहीं, पत्रिका की एक अन्य खबर के मुताबिक मुठभेड़ के बाद उसे फर्जी करार देते हुए नाराज ग्रामीणों और परिजनों ने कोंटा थाने तक पैदल मार्च निकाला और आधी रात को थाने का घेराव कर दिया.
बाद में पुलिस ने समझाकर उन्हें वहां से रुखसत किया और उन्हें हिदायत दी कि वे अन्य लोगों से ज्यादा बात न करें.
दैनिक भास्कर के मुताबिक, पुलिस पकड़े गए कथित नक्सली देवा को 5 लाख रुपये का ईनामी बता रही है. देवा को अदालत ने 15 दिनों के लिए जेल भेज दिया है. मामले में पुलिस ने रिमांड के लिए मांग नहीं की है.
वहीं, मुठभेड़ को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में भी दायर की गई है. जिस पर पहली सुनवाई 13 अगस्त को होगी. सिविल लिबर्टी कमेटी के नारायण राव ने मामले में याचिका दायर की है. सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की पीठ करेगी.