भीमा-कोरेगांव मामला: सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी जांच की मांग को किया ख़ारिज

भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस बीते 29 अगस्त से नज़रबंद हैं.

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भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस बीते 29 अगस्त से नज़रबंद हैं.

Bhima koregaon
माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर नज़रबंद किए गए कवि वरावरा राव, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अरुण फरेरा, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वर्णन गोंसाल्विस. (बाएं से दाएं)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव मामले में सामाजिक कार्यकर्ताओं की हुई गिरफ्तारी को लेकर विशेष जांच दल (एसआईटी) की मांग को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में लोगों की गिरफ्तारी उनकी प्रतिरोध की वजह से नहीं हुई है. जो भी आरोपी हैं वो कानून में मौजूद प्रावधानों के तहत राहत पा सकते हैं.

कोर्ट ने कार्यकर्ताओं को नजरबंद रखने की अवधि को चार हफ्ते के लिए बढ़ा दिया है.

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी. जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने दो सहयोगी जजों के फैसले से अलग फैसला दिया है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस पर संदेह है कि क्या वे इस मामले में सही से जांच कर सकते हैं या नहीं. इसलिए एसआईटी जांच की जरूरत है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने असहमति वाले फैसले में कहा कि इन पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी सत्ता द्वारा असहमति की आवाज दबाने का प्रयास है और यह असहमति जीवित लोकतंत्र का प्रतीक है.

जस्टिस चंद्रचूड़ का कहना था कि यदि समुचित जांच के बगैर ही पांच कार्यकर्ताओं पर जुल्म होने दिया गया तो संविधान में प्रदत्त स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. उन्होंने कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए याचिका को सही ठहराते हुए महाराष्ट्र पुलिस को प्रेस कांफ्रेस करने और उसमें चिट्ठियां वितरित करने के लिए आड़े हाथ लिया.

उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज के कथित पत्र टीवी चैनलों पर दिखाए गए. पुलिस द्वारा जांच के विवरण मीडिया को चुन-चुन कर देना उसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है.

बता दें कि इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और देवकी जैन, समाजशास्त्र के प्रो. सतीश पांडे और मानवाधिकार कार्यकर्ता माजा दारूवाला ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर इन मानवाधिकार एवं नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई तथा उनकी गिरफ्तारी की स्वतंत्र जांच कराने का अनुरोध किया था.

महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को एलगार परिषद के सम्मेलन के बाद पुणे के भीमा-कोरेगांव में हिंसा के मामले में दर्ज प्राथमिकी की जांच के सिलसिले में कई स्थानों पर छापे मारे थे.

इसके बाद इस साल 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ़्तार किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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