केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2017-18 में मानसून से पहले जिन 41 स्थानों से होकर गंगा नदी गुजरती है उनमें से 37 पर नदी का पानी प्रदूषित था. वहीं मानसून के बाद 39 में से केवल एक स्थान पर नदी का पानी साफ था.
नई दिल्ली: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अपने ताजा अध्ययन में पाया है कि जिन 39 स्थानों से होकर गंगा नदी गुजरती है उनमें से सिर्फ एक स्थान पर इस साल मानसून के बाद गंगा का पानी साफ था. ‘गंगा नदी जैविक जल गुणवत्ता आकलन (2017-18)’ की रिपोर्ट के अनुसार गंगा बहाव वाले 41 स्थानों में से करीब 37 पर इस वर्ष मानसून से पहले जल प्रदूषण मध्यम से गंभीर श्रेणी में रहा.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए सीपीसीबी ने हाल ही में यह रिपोर्ट जारी की है. मानसून से पहले 41 में से केवल चार स्थानों पर पानी की गुणवत्ता साफ या मामूली प्रदूषित थी और मानसून के बाद 39 में से केवल एक स्थान पर नदी का पानी साफ था. इसमें मानसून के बाद केवल ‘हरिद्वार’ में ही गंगा का पानी ‘साफ’ था.
सीपीसीबी द्वारा गुणात्मक विश्लेषण के लिए मानसून से पहले और मानसून के बाद पानी के नमूने लिए गए. इन्हें पांच श्रेणियों में रखा गया, साफ (ए), मामूली प्रदूषित (बी), मध्यम प्रदूषित (सी), बेहद प्रदूषित (डी) और गंभीर प्रदूषित (ई).
रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 मानसून पूर्व अवधि में 34 स्थान मध्यम रूप से प्रदूषित थे, जबकि तीन स्थान गंभीर रूप से प्रदूषित थे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश की दो बड़ी सहायक नदियां, पांडु नदी और वरुणा नदी गंगा में प्रदूषण बढ़ा रहा है.
अध्ययन में कहा गया है कि गंगा नदी की मुख्यधारा पर कोई भी स्थान गंभीर रूप से प्रदूषित नहीं था लेकिन अधिकतर जगह मध्यम रूप से प्रदूषित पाए गए. रिपोर्ट में कहा गया कि गंगा बहाव वाले 41 स्थानों में से करीब 37 पर इस वर्ष मानसून से पहले जल प्रदूषण मध्यम से गंभीर श्रेणी में रहा.
इसी अध्ययन रिपोर्ट के एक अन्य अंश, जिसका शीर्षक है गंगा नदी के जैविक जल की गुणवत्ता की तुलना (2014-18), में बताया गया है कि रामगंगा और गर्रा नदी के पानी में मानसून बाद 2017-18 में भारी मात्रा में प्रदूषण था.
सीपीसीबी की ये रिपोर्ट दर्शाती है कि पिछले चार सालों में गंगा नदी का पानी किसी भी जगह पर साफ नहीं हुआ है. अध्ययन के मुताबिक उत्तराखंड के जगजीतपुर और उत्तर प्रदेश के कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी में गंगा नदी का पानी साल 2014-15 के मुकाबले साल 2017-18 में और ज्यादा दूषित हो गया है.
साल 2017-18 में हरिद्वारा बैराज का पानी मानसून से पहले और मानसून के बाद दोनों समय साफ था हालांकि कानपुर और वाराणसी जैसे क्षेत्रों में नदी का पानी बहुत ही ज्यादा दूषित था. मालूम हो कि वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है.
सीपीसीबी ने कहा, ‘प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए ताकि सभी स्थानों पर पानी की गुणवत्ता कम से कम ‘बी’ श्रेणी का हो सके.’ ‘बी’ श्रेणी के पानी की गुणवत्ता का मतलब है कि जलीय जीवन का समर्थन करने के लिए नदी का संरक्षण किया जाना चाहिए.
बता दें कि गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता का आंकलन सीपीसीबी द्वारा दो तरीके से किया जाता है. एक तरीका होता है कि पानी का बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) , डीओ (डिज़ॉल्व्ड ऑक्सीजन), तापमान, पीएच और कोलिफॉर्म बैक्टीरिया इत्यादि मापने के बाद पानी के गुणवत्ता की जानकारी दी जाए.
वहीं दूसरा तरीका होता है पानी की जैविक निगरानी यानि की बायोलॉजिकल मॉनिटरिंग की जाए. सीबीसीबी का मानना है कि बायोलॉजिकल मॉनिटरिंग प्रदूषण के स्तर को बताने का ज्यादा बेहद तरीका है.
द वायर ने सीपीसीबी द्वारा मुहैया कराए गए बीओडी और डीओ लेवल के आधार पर रिपोर्ट किया जिसमें ये बताया गया था कि पहले की तुलना में किसी भी जगह पर गंगा साफ नहीं हुई है, बल्कि साल 2013 के मुकाबले गंगा नदी कई सारी जगहों पर और ज्यादा दूषित हो गई हैं.
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा गंगा सफाई के लिए ‘नमामि गंगे’ जैसी महत्वाकांक्षी परियोजना चलाई जा रही है. इसके तहत 2014 से लेकर नवंबर 2018 तक में गंगा सफाई के लिए 4800 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं.
साल 2017 की सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक 80 में से 36 जगहों पर गंगा नदी का बीओडी लेवल 3 मिलीग्राम/लीटर से ज़्यादा था और 30 जगहों पर बीओडी लेवल 2 से 3 मिलीग्राम/लीटर के बीच में था. वहीं साल 2013 में 31 जगहों पर गंगा का बीओडी लेवल 3 से ज़्यादा था और 24 जगहों पर 2 से 3 मिलीग्राम/लीटर के बीच में था.
सीपीसीबी के मापदंडों के मुताबिक अगर पानी का बीओडी लेवल 2 मिलीग्राम/लीटर या इससे नीचे है और डीओ लेवल 6 मिलीग्राम/लीटर या इससे ज़्यादा है तो उस पानी को बगैर ट्रीटमेंट (मशीन द्वारा पानी साफ करने की प्रक्रिया) किए पीया जा सकता है.
वहीं अगर पानी का बीओडी 2 से 3 मिलीग्राम/लीटर के बीच में है तो उसका ट्रीटमेंट करना बेहद ज़रूरी है. अगर ऐसी स्थिति में बगैर ट्रीट किए पानी पीया जाता है तो कई सारी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.
इसी तरह अगर पानी का बीओडी लेवल 3 से ज़्यादा और डीओ लेवल 5 मिलीग्राम/लीटर से कम है तो वो पानी नहाने के लिए भी सही नहीं है. इस पानी को पीने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता. हालांकि गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता रिपोर्ट के मुताबिक ज़्यादातर जगहों पर पानी की दशा ठीक नहीं है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) साल 1980 से भारत की नदियों के पानी की गुणवत्ता की जांच कर रहा है और इस समय ये 2,525 किलोमीटर लंबी गंगा नदी की 80 जगहों पर जांच करता है. इससे पहले सीपीसीबी 62 जगहों पर गंगा के पानी की जांच करता था.
सीपीसीबी गंगोत्री, जो कि गंगा नदी का उद्गम स्थल है, से लेकर पश्चिम बंगाल तक गंगा के पानी की गुणवत्ता की जांच करता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)