सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, अब तक सीबीआई का स्थायी निदेशक नियुक्त क्यों नहीं किया गया

जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि जांच ब्यूरो के निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया अब तक पूरी हो जानी चाहिए थी क्योंकि यह पहले से ही मालूम था कि एजेंसी प्रमुख जनवरी में सेवानिवृत्त हो रहे हैं.

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(फोटो: रॉयटर्स)

जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि जांच ब्यूरो के निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया अब तक पूरी हो जानी चाहिए थी क्योंकि यह पहले से ही मालूम था कि एजेंसी प्रमुख जनवरी में सेवानिवृत्त हो रहे हैं.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र से पूछा कि उसने सीबीआई का स्थायी निदेशक नियुक्त क्यों नहीं किया है. न्यायालय ने टिप्पणी की कि वह लंबे समय तक एजेंसी के लिए अंतरिम प्रमुख की नियुक्ति के विरुद्ध हैं.

जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा कि सीबीआई निदेशक का पद संवेदनशील है और सरकार को अब तक इस पद पर स्थायी निदेशक की नियुक्ति कर देनी चाहिए थी.

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि सीबीआई के नए निदेशक के चयन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उच्चाधिकार प्राप्त समिति शुक्रवार को बैठक करेगी. उन्होंने पीठ को यह भी कहा कि केंद्र ने आईपीएस अधिकारी एम. नागेश्वर राव को अंतरिम सीबीआई निदेशक नियुक्त करने से पहले उच्चाधिकार समिति की मंजूरी ली थी.

समिति की शुक्रवार को बैठक के बारे में अटॉर्नी जनरल के कथन के बाद न्यायालय ने मामले की सुनवाई छह फरवरी तक स्थगित कर दी.

पीठ नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि जांच ब्यूरो के निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया अब तक पूरी हो जानी चाहिए थी क्योंकि यह पहले से ही मालूम था कि जांच ब्यूरो प्रमुख जनवरी में सेवानिवृत्त हो रहे हैं.

अटार्नी जनरल ने सीलबंद लिफाफे में उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक का विवरण पेश किया. इस समिति की 24 जनवरी को बैठक हुई थी जो अधूरी रह गई थी.

गैर सरकारी संगठन के वकील प्रशांत भूषण ने पीठ से कहा कि न्यायालय को जांच ब्यूरो के निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता के पहलू पर गौर करना चाहिए.

इस पर पीठ ने भूषण से कहा, ‘आप तत्काल नियुक्ति चाहते हैं. हमें यहीं रुकना होगा. पहले नियुक्ति होने दीजिये. यदि आपको कोई शिकायत हो कि प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और इसमें पारदर्शिता नहीं थी तो आप इसे बाद में चुनौती दे सकते हैं.’

जांच ब्यूरो के अंतरिम निदेशक के रूप में नागेश्वर राव की नियुक्ति को चुनौती देने वाली इस याचिका पर सुनवाई से तीन न्यायाधीश पहले ही खुद को अलग कर चुके थे. इसके बाद जस्टिस मिश्रा और जस्टिस सिन्हा की पीठ का गठन किया गया था.

जस्टिस एनवी रमण ने बृहस्पतिवार को इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. इससे पहले, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एके सीकरी ने भी खुद को अलग कर लिया था.

कॉमन कॉज ने एम. नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है.

इस याचिका में कहा गया है कि राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त करने का सरकार का बीते साल 23 अक्टूबर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने आठ जनवरी को रद्द कर दिया था लेकिन केंद्र ने उन्हें दोबारा नियुक्त करने के लिए पूरी तरह से एकतरफा और मनमाना तरीका अपनाया, जो दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम का पूर्ण उल्लंघन है.

इसमें यह भी कहा गया कि केंद्र सीबीआई के नियमित निदेशक को नियुक्त करें. साथ ही सरकार यह सुनिश्चित करे कि सीबीआई निदेशक पद के लिए शॉर्ट लिस्टिंग और चुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी हो और आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नागरिकों को उपलब्ध हो.

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री  मोदी की अध्यक्षता में उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति की एक लम्बी बैठक के बाद आलोक वर्मा को 10 जनवरी को सीबीआई निदेशक पद से हटा दिया गया था.

पहले ये मामला मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ के पास गया था. लेकिन उन्होंने बीते 21 जनवरी को हुई सुनवाई के दौरान ये कहते हुए खुद को इस मामले से अलग कर लिया कि वह नए सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिए 24 जनवरी 2019 को उच्च स्तरीय समिति की बैठक में भाग ले रहे हैं, इसलिए वे इस मामले में सुनवाई के लिए पीठ का हिस्सा नहीं हो सकते हैं.

इसके बाद मामले को जस्टिस एके सीकरी के पास भेजा गया लेकिन उन्होंने भी इसकी सुनवाई करने से मना कर दिया.

इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज सह-याचिकाकर्ता हैं, जिसमें ये आरोप लगाया गया है कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में सरकार पारदर्शिता का पालन नहीं कर रही है.

याचिका में कहा गया है कि नागेश्वर राव की नियुक्ति उच्च स्तरीय चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर नहीं की गई थी, जैसा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (डीएसपीई) के तहत अनिवार्य है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)