सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की अग्रिम ज़मानत याचिका पुणे की अदालत ने ख़ारिज की

सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े को एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित भूमिका और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में आरोपी बनाया गया है.

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आनंद तेलतुम्बड़े. (फोटो साभार: ट्विटर)

सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े को एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित भूमिका और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में आरोपी बनाया गया है.

सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े. (फोटो साभार: ट्विटर)
सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े. (फोटो साभार: ट्विटर)

पुणे: पुणे की स्थानीय एक अदालत ने शुक्रवार को एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित भूमिका और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में दलित शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की अग्रिम ज़मानत याचिका ख़ारिज कर दी.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश किशोर वडाने ने कहा कि जांच अधिकारी ने तेलतुम्बड़े के ख़िलाफ़ पर्याप्त सामग्री एकत्रित की है.

न्यायाधीश ने कहा, ‘मेरे नज़रिये से, जांच अधिकारी ने अपराध में आरोपी की संलिप्तता दिखाने के लिए पर्याप्त सामग्री एकत्रित की है.’

अदालत ने कहा कि जांच महत्वपूर्ण चरण में है और आरोपी से हिरासत में पूछताछ करना ज़रूरी है.

अभियोजन पक्ष ने बृहस्पतिवार को ‘साक्ष्यों’ वाला एक लिफ़ाफ़ा सौंपा था और दावा किया गया था कि यह माओवादी गतिविधियों में तेलतुम्बड़े की संलिप्तता को साबित करता है.

उन्होंने पुणे अदालत में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद मामले में उनके ख़िलाफ़ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की मांग वाली उनकी याचिका ख़ारिज की थी.

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में आनंद तेलतुम्बड़े के ख़िलाफ़ दर्ज पुणे पुलिस की प्राथमिकी (एफआईआर) रद्द करने से बीती 14 जनवरी को इनकार कर दिया था और गिरफ़्तारी से अंतरिम सुरक्षा की अवधि चार सप्ताह और बढ़ा दी थी.

तेलतुम्बड़े ने अपने ख़िलाफ़ दायर पुणे पुलिस की प्राथमिकी रद्द करने और तीन सप्ताह के लिए गिरफ़्तारी से अंतरिम सुरक्षा देने की मांग की थी.

पुलिस के अनुसार भीमा-कोरेगांव में बीते साल एक जनवरी को हुई हिंसा से एक दिन पहले पुणे में एल्गार परिषद समारोह में कई कार्यकर्ताओं ने कथित रूप से भड़काऊ भाषण दिए थे जिसके कारण हिंसा भड़की.

मालूम हो कि एक जनवरी 2018 को वर्ष 1818 में हुई कोरेगांव-भीमा की लड़ाई को 200 साल पूरे हुए थे. इस दिन पुणे ज़िले के भीमा-कोरेगांव में दलित समुदाय के लोग पेशवा की सेना पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की जीत का जश्न मनाते हैं. इस दिन दलित संगठनों ने एक जुलूस निकाला था. इसी दौरान हिंसा भड़क गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.

पुलिस ने आरोप लगाया कि 31 दिसंबर 2017 को हुए एलगार परिषद सम्मेलन में भड़काऊ भाषणों और बयानों के कारण भीमा-कोरेगांव गांव में एक जनवरी को हिंसा भड़की.

मालूम हो कि बीते 28 अगस्त को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ़्तार किया था. महाराष्ट्र पुलिस ने आरोप लगाया है कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादी से संबंध हैं.

इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल पुणे में आयोजित एलगार परिषद की ओर से आयोजित कार्यक्रम से माओवादियों के कथित संबंधों की जांच करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को जून में गिरफ्तार किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)