द वायर के पास 60 पन्नों का वह सुसाइड नोट है जिसे अरुणाचल प्रदेश के पूर्व सीएम कालिखो पुल ने आत्महत्या करने के चंद घंटे पहले लिखा था. इस नोट में उन्होंने संवैधानिक पदों पर बैठे कई लोगों पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं.
9 अगस्त, 2016 को ईटानगर में अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कालिखो पुल की फांसी लगाने की खबर ने सभी को सकते में डाल दिया था.
खुदकुशी करने के एक दिन पहले कालिखो पुल ने 60 पेज का एक सुसाइड नोट लिखा जिसमें उन्होंने संवैधानिक पदों पर बैठे विभिन्न लोगों पर गंभीर आरोप लगाए हैं. इसमें वर्तमान मुख्यमंत्री पेमा खांडू, उपमुख्यमंत्री चोवना मेन समेत प्रदेश के प्रमुख नेता भी शामिल हैं.
पुल का 60 पन्नों का यह सुसाइड नोट उनके शव के पास मिला था. इस नोट को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया और इसमें क्या लिखा था वो एक रहस्य बनकर ही रह गया.
इसके बारे में पहली खबर बीते साल अक्टूबर महीने में अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा के जरिये मीडिया तक पहुंची. हालांकि इसमें क्या लिखा था, इस पर आज तक बस अटकलें ही लगाई जा रही थीं.
अब इस दस्तावेज की एक प्रति द वायर के पास है और आज ‘मेरे विचार’ नाम के शीर्षक वाले 60 पन्नों के इस दस्तावेज को हम प्रकाशित कर रहे हैं.
हम इसे जनता के सामने ला रहे है क्योंकि हमें लगता है कि अरुणाचल प्रदेश और सारे देशवासियों को इस सच को जानने का अधिकार है कि ऐसा क्या हुआ कि एक पूर्व मुख्यमंत्री को अपनी जान लेनी पड़ी.
द वायर इस नोट में पुल द्वारा लगाए गए आरोपों की सत्यता की पुष्टि नहीं कर सकता पर हम मानते हैं कि जिन परिस्थितियों में (यानी पुल की मृत्यु से कुछ घंटों पहले) यह लिखा गया होगा, उसे ध्यान में रखते हुए इसमें लगाए गए आरोपों की गंभीरता समझी जा सकती है. ऐसे गंभीर आरोपों की स्वतंत्र जांच होनी ही चाहिए.
अब तक न ही राज्य सरकार, जिसकी कमान भाजपा के पेमा खांडू के हाथ में है न ही केंद्र द्वारा इस नोट में लगाए गए अति गंभीर आरोपों की जांच के कोई आदेश दिए गए हैं. यही कारण है कि इस नोट को जनता के सामने लाना और जरूरी हो जाता है.
यह नोट हिंदी में टाइप किया गया है. इसके हर पन्ने पर पुल के दस्तखत हैं. इसकी स्कैन प्रति नीचे स्लाइड शो में देखी जा सकती है.
इस पत्र में भाजपा और कांग्रेस के नेताओं सहित कई लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं. पुल खुद एक कांग्रेसी नेता थे, जो 2015 में कांग्रेस के ही नबाम तुकी की सरकार के खिलाफ बगावत करके मुख्यमंत्री बने थे.
वे करीब साढ़े चार महीनों तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा तुकी की सरकार की बर्खास्तगी को असंवैधानिक करार दे दिया गया.
पुल ने 13 जुलाई 2016 को कोर्ट का फैसला आने के बाद इस्तीफा दे दिया. और फिर लगभग महीने भर के भीतर आत्महत्या कर ली.
इस दस्तावेज में कई संवेदनशील दावे भी किए गए हैं, जिसके कारण हमने कई लोगों के नाम और कुछ जानकारियों को संपादित कर दिया है.
पुल का मानना था कि सुप्रीम कोर्ट का नबाम तुकी के पक्ष में फैसला देना गलत था. पुल के अनुसार तुकी ने अपने पूर्व सहयोगी पेमा खांडू, जो अब भाजपा में हैं और उनके पिता स्वर्गीय दोरजी खांडू के साथ मिलकर कई सालों तक राजकोष का दुरुपयोग किया है. इसमें भी खासकर वो धन जो सार्वजानिक वितरण प्रणाली और रिलीफ फंड के रूप में आया था.
उन्होंने सवाल किया है कि इन नेताओं और विधायकों को इतने बड़े पैमाने पर इतनी निजी संपत्ति इकट्ठा करने का अधिकार कैसे मिलता है.
इस नोट में लिखी जो बात सबसे ज्यादा परेशान करती है वो ये कि 2016 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके (पुल के) पक्ष में मोड़ने के लिए कुछ दलालों ने उनसे एक बड़ी धन राशि की मांग की थी.
पुल ने लिखा है, ‘मुझसे और मेरे करीबियों से कई बार संपर्क किया गया कि अगर मैं 86 करोड़ रुपये देता हूं तो फैसला मेरे हक में दिया जाएगा. मैं एक आम आदमी हूं, मेरे पास न उस तरह पैसा है न ही मैं ऐसा करना चाहता हूं…’
‘********* ने मेरे एक आदमी से संपर्क किया और 49 करोड़ रुपये मांगे.’
‘************** ने मुझसे 37 करोड़ रुपये की मांग की थी.’
ये दलाल कौन थे और इन्हें किसी पूर्व मुख्यमंत्री से इस तरह संपर्क करने का साहस कैसे मिला. इस पर भी जांच होनी चाहिए.
अरुणाचल के वर्तमान मुख्यमंत्री भाजपा के पेमा खांडू के बारे में पुल लिखते हैं, ‘जनता यह खुद सोचे और विचार करे कि मंत्री बनने से पहले उनके पास क्या था? और आज क्या है? उनके पास पैसा बनाने की कोई मशीन या फैक्ट्री तो नहीं थी और न कुबेर का कोई खजाना था. फिर इतना पैसा कहां से आया?’
‘यह जनता का पैसा है और मंत्री बने यह लोग इसी पैसों का रौब दिखाकर जनता को डराते-धमकाते हैं और लोग उसके पीछे भागते हैं. आज जनता को इसका जवाब मांगना चाहिए और इस मामले की पूरी छानबीन होनी चाहिए.’
राज्य में हुआ सार्वजानिक वितरण घोटाला, जो आज तक अनसुलझा है, पर पुल ने लिखा है, ‘अपने 23 साल के राजनीतिक जीवन में मैंने पीडीएस बिल की फोटोकॉपी पर पेमेंट होते पहली बार देखा. जबकि ऐसा किसी और राज्य में नहीं होता.’
‘600 करोड़ रुपये से भी ज्यादा पैसों में पीडीएस का पेमेंट हुआ, इन पैसों को राज्य के डेवलपमेंट फंड से दिया गया था. जबकि यह भारत सरकार की स्कीम थी और भारत सरकार ने इसमें घोटाला देखकर एक भी पैसा राज्य सरकार को नहीं दिया.
‘इस पीडीएस घोटाले के मुख्य दोषी दोरजी खांडू, पेमा खांडू, नबाम तुकी और चोवना मेन हैं.’
‘जब मैं मुख्यमंत्री बना तब मैंने इस केस की जांच की और राज्य सरकार को बचाने की कोशिश की. हमारी सरकार ने फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) के खिलाफ केस किया, भारत सरकार के खिलाफ केस किया और सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दायर की थी. मुझे इस बात का बहुत दुख है कि राज्य के पूर्व मंत्रियों, पूर्व मुख्यमंत्री और अधिकारियों ने मिलकर सभी फाइलें, दस्तावेज और जरूरी कागजों को गायब कर दिया व मिटा दिया. जिसकी वजह से मैं राज्य सरकार को इस केस में बचा नहीं सका. इस केस में मुख्य सचिव, सचिव, डायरेक्टरों और अधिकारियों को जेल तक होने वाली थी.’
एक राष्ट्रीय स्तर के कांग्रेस नेता के बारे में पुल लिखते हैं, ‘वर्ष 2008 में दोरजी खांडू के कहने पर व मजबूरी वश मैं खुद 4 बार ******** को रुपये पहुंचाने गया था, जिनका कुल 37 करोड़ रुपये होता है.’
‘वर्ष 2009 में राज्य को एडवांस 200 करोड़ रुपये का लोन देने पर दोरजी खांडू के कहने पर मैंने श्री ********** केंद्रीय ***** मंत्री को 6 करोड़ रुपये इस पते पर दिए थे. ******************’
अपने इस सनसनीखेज पत्र को खत्म करते हुए पुल ने आम जनता को संबोधित करते हुए लिखा है,
‘इन बातों को बताने में मेरा कोई स्वार्थ नहीं है, न ही मुझे किसी से कोई भय है, न मैं कमजोर हूं और न ही मैं इसको अपना समर्पण मानता हूं.’
इन बातों को कहने से मेरा इरादा जनता को जगाना है, उन्हें सरकार, समाज, राज्य और देश में हो रहे इन गंदे नाटकों, लूटपाट और भ्रष्ट तंत्र के सच के बारे में बताना है. लेकिन लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर है, वह कोई भी बात को जल्द ही भूल जाते हैं. इसलिए इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए मैंने जनता को याद दिलाने, जगाने, विश्वास दिखाने, समझाने और विचार करने के लिए यह कदम उठाया है…
…मैं चाहता हूं कि मेरे दिल की यह बात सोच-विचार, अनुभव और संदेश ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे ताकि मैं आपको समझा सकूं, जगा सकूं और सच्चाई की लड़ाई में आपको हिम्मत और ताकत दे सकूं.’
इन शब्दों को लिखने के 24 घंटे के अंदर ही पुल, जिन्होंने एक स्थानीय स्कूल के चौकीदार के रूप में अपना करिअर शुरू किया था, जहां उन्हें रोज तिरंगा फहराने और उसे उतारने के लिए 212 रुपये मिलते थे, ने अपनी जिंदगी खत्म कर ली.