क्या अमित शाह को हिरासत में भेजने वाले जस्टिस क़ुरैशी की पदोन्नति रोक रही है मोदी सरकार?

सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की चार सिफ़ारिशों में से मोदी सरकार द्वारा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सिर्फ़ जस्टिस एए क़ुरैशी की नियुक्ति को मंज़ूरी नहीं दी गई है.

//

सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की चार सिफ़ारिशों में से मोदी सरकार द्वारा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सिर्फ़ जस्टिस एए क़ुरैशी की नियुक्ति को मंज़ूरी नहीं दी गई है.

Justice AA Kureshi Photo Live Law
जस्टिस अकील कुरैशी (फोटो साभार: लाइव लॉ)

नई दिल्ली: दूसरी बार जनादेश पानेवाली नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय कानून मंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि उनका मंत्रालय एक ‘डाकघर’ नहीं होगा.

संभवतः वे सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा उच्च न्यायापालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में सिफारिशों के मिलने के बाद मंत्रालय द्वारा एक महत्वपूर्ण हिस्सेदार के तौर पर निभाई जानेवाली भूमिका की ओर इशारा कर रहे थे.

प्रसाद के बयान का एक अर्थ यह लगाया जा सकता है कि उनका मंत्रालय कॉलेजियम की पहली पसंद को आंख मूंदकर स्वीकार नहीं करेगा और हर नाम की जांच करेगा. लेकिन इसे इस दावे के तौर पर भी लिया जा सकता है कि उनका मंत्रालय पसंद न आनेवाली सिफारिशों के लिए कूड़ेदान का काम करेगा.

बॉम्बे हाइकोर्ट में कार्यरत न्यायाधीश जस्टिस अकील अब्दुलहमीद कुरैशी की मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नति करने की कॉलेजियम की सिफारिश पर केंद्र सरकार जिस तरह से कुंडली मार कर बैठी है, वह इस बात का खतरनाक संकेत बनकर सामने आया है कि अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार कॉलेजियम के साथ कैसा सुलूक करनेवाली है.

मालूम हो कि 2010 में जस्टिस कुरैशी ने वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में दो दिनों की पुलिस हिरासत में भेजा था.

10 मई को भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रमन्ना की सदस्यता वाले सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने गुजरात उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस कुरैशी को मध्य प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नति देने की सिफारिश की.

वर्तमान में वे तबादले के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट में काम कर रहे हैं. कॉलेजियम कुरैशी को पदोन्नति देने का इच्छुक था, क्योंकि मध्य प्रदेश के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एसके सेठ 9 जून को सेवानिवृत्त होनेवाले थे. कॉलेजियम ने जस्टिस कुरैशी को हर तरह से जस्टिस एसके सेठ के बाद उनकी कुर्सी पर बैठने के योग्य पाया.

जस्टिस कुरैशी के साथ, कॉलेजियम ने पदोन्नति के लिए तीन और नामों की सिफारिश की. जस्टिस रामासुब्रमण्यम और आरएस चौहान को क्रमशः हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना हाइकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया.

मद्रास हाईकोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश रामासुब्रमण्यम तबादला होकर बाद तेलंगाना उच्च न्यायालय में सेवाएं दे रहे थे. उन्हें हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत की सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति के बाद उनकी जगह खाली होने पर पदोन्नति देकर वहां का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था.

राजस्थान उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस चौहान पहले ही तेलंगाना उच्च न्यायायल के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के तौर पर काम कर रहे थे.

तीसरे न्यायाधीश जस्टिस डीएन पटेल, जो गुजरात उच्च न्यायालय के वरिष्ठ जूनियर जज थे और तबादला होकर होकर झारखंड उच्च न्यायालय में अपनी सेवाएं दे रहे थे, उन्हें जस्टिस राजेंद्र मेनन की सेवानिवृत्ति के बाद 22 मई को दिल्ली उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया.

सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

कॉलेजियम की सिफारिश मानने से इनकार

लेकिन, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मामले में केंद्र सरकार ने जस्टिस कुरैशी को पदोन्नति देने की सिफारिश को मानने से इनकार कर दिया और 10 जून से जस्टिस रविशंकर झा की नियुक्ति कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के तौर पर करने की अधिसूचना जारी कर दी.

केंद्र द्वारा 9 जून को जस्टिस सेठ की सेवानिवृत्ति से पहले जस्टिस कुरैशी की नियुक्ति नहीं किए जाने से मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के वरिष्ठतम जूनियर जज जस्टिस झा इस तरह से पदोन्नति पाने के हकदार हो गए.

हालांकि, जस्टिस कुरैशी मार्च, 2022 में सेवानिवृत्त हो रहे हैं, लेकिन कॉलेजियम की सिफारिश के बावजूद एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर उनकी पदोन्नति नहीं किए जाने से उनके करिअर को गलत तरीके से नुकसान पहुंचेगा.

मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) जिसमें नेशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमीशन मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद अब तक संशोधन नहीं किया गया है- में यह व्यवस्था दी गई है कि अगर कॉलेजियम के फैसले को केंद्र द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटाए जाने के बाद अगर दोहराया जाता है, तो यह केंद्र के लिए बाध्यकारी होगा.

लेकिन क्या केंद्र के पास सिफारिशों को, अगर वे उसके मनमुताबिक नहीं हैं, कॉलेजियम के पास पुनर्विचार के लिए लौटाए बगैर, उस पर कुंडली मारकर बैठने का विकल्प है?

मीडिया को संबोधित करने जाते कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद (फोटो: पीटीआई)
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद (फोटो: पीटीआई)

एमओपी में कहा गया है कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया समय रहते शुरू की जानी चाहिए ताकि यह होनेवाली रिक्ति के कम से कम एक महीने पहले पूरी हो सके.

एमओपी में कहा गया है कि भारत का मुख्य न्यायाधीश यह सुनिश्चित करेगा कि जब एक मुख्य न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में तबादला किया जाता है, तब उस कुर्सी पर उसके उत्तराधिकारी की नियुक्ति भी साथ-साथ की जानी चाहिए और सामान्य स्थिति में कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति एक महीने से ज्यादा के समय के लिए नहीं की जानी चाहिए.

संविधान का अनुच्छेद 223, जो कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति से संबंधित है, कहता है कि जब किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी खाली है या जब कोई ऐसा मुख्य न्यायाधीश, अनुपस्थिति के कारण या किसी अन्य कारण से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने की स्थिति में नहीं है, तब उसकी जिम्मेदारियों का निर्वाह न्यायालय के किसी ऐसे न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा, जिसे राष्ट्रपति द्वारा इस उद्देश्य से नियुक्त किया जाएगा.

जैसा कि समझ में आता है केंद्र ने इस अनुच्छेद के तहत ही जस्टिस झा को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश (एसीजे) के तौर पर नियुक्त किया है.

लेकिन इस नियुक्ति पर निश्चित तौर पर सवाल उठाया जा सकता है, क्योंकि जस्टिस कुरैशी को मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नति देने की सिफारिश 10 मई को ही कर दी गई थी और 10 जून को रिक्ति की स्थिति सिर्फ इसलिए पैदा हुई क्योंकि केंद्र उनकी नियुक्ति की अधिसूचना जारी नहीं की.

दिलचस्प है कि एमओपी में अनुच्छेद 223 के तहत एसीजे की नियुक्ति की कल्पना सिर्फ उस स्थिति में की गई है जब पदासीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा उसके छुट्टी पर जाने या मुख्य न्यायाधीश के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह न कर पाने की स्थिति की सूचना दी जाए.

एमओपी का कहना है कि यह सूचना सभी संबंधित पदाधिकारियों को समय रहते की जानी चाहिए ताकि एसीजे की नियुक्ति की व्यवस्था की जा सके.

अमित शाह कनेक्शन

जस्टिस कुरैशी के मामले में सिर्फ केंद्र द्वारा एमओपी में तय की गई समयसीमा का केंद्र द्वारा पालन न किया जाना ही चिंता का विषय नहीं है. गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन (जीएचएए) ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति को ‘कार्यपालिका का गैरज़रूरी हस्तक्षेप करार दिया है.’

एक असाधारण जनरल मीटिंग में जीएचएए ने मुख्य न्यायाधीश के तौर पर जस्टिस कुरैशी की नियुक्ति की अधिसूचना जारी करने के लिए केंद्रीय कानून मंत्री से ‘मिलकर दरख्वास्त करने’ का प्रस्ताव पारित किया.

जस्टिस कुरैशी ने 14 नवंबर, 2018 को बॉम्बे हाईकोर्ट में कार्यभार संभाला था, जब केंद्र ने गुजरात उच्च न्यायाल का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने के उनके दावे को उनकी वरिष्ठता के बावजूद नजरअंदाज कर दिया था.

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)
अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

गुजरात उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सुभाष रेड्डी को सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति दिए जाने के बाद यह उम्मीद थी कि उनके बाद गुजरात उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस कुरैशी को कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नति दी जाएगी. लेकिन इसकी जगह उनका तबादला बॉम्बे हाईकोर्ट में कर दिया गया और जस्टिस कुरैशी के बाद वरिष्ठतम जज एएस दवे को कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया.

केंद्र के इस कदम पर मुख्य न्यायाधीश द्वारा नाराजगी प्रकट किए जाने के बाद केंद्र सरकार ने आनन-फानन में इस अधिसूचना को रद्द कर दिया और जस्टिस कुरैशी को गुजरात उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त कर दिया. मगर दो सप्ताह के भीतर ही उनका तबादला बॉम्बे हाईकोर्ट में कर दिया गया.

जीएचसीएए के अध्यक्ष यतीन ओज़ा ने एक लेख में यह याद दिलाया कि जस्टिस कुरैशी ने एक बार सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में भूमिका के कारण अमित शाह को दो दिन की पुलिस हिरासत में भेजा था.

2011 में जस्टिस कुरैशी ने जस्टिर आरए मेहता को गुजरात का लोकायुक्त नियुक्त करने के तत्कालीन राज्यपाल के फैसले को सही ठहराया था, जिसे राज्य की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा चुनौती दी गई थी. ओज़ा 2010 में शाह के वकील थे और उन्हें कुरैशी द्वारा शाह को दो दिन की पुलिस हिरासत में भेजने के फैसले में कुछ भी गलत नहीं लगा था.

ओज़ा का आरोप है कि केंद्र द्वारा जस्टिस कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पदोन्नति देने के मामले में फैसले को लटकाना बदले की भावना से की गई कार्रवाई जैसा है.

इसलिए अहम सवाल यह है कि अगर केंद्र सरकार कॉलेजयम की सिफारिश को पुनर्विचार के लिए वापस नहीं लौटाती है, तो क्या कॉलेजियम अपनी शक्ति दिखाते हुए अपनी सिफारिशों पर केंद्र की निष्क्रियता पर सवाल उठा सकता है?

रूस के सोची में शंघाई कॉरपोरेशन ऑर्गेनाइजेशन के मुख्य न्यायाधीशों की बैठक में दिए गए अपने हालिया भाषण में, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने एक संस्था के रूप में न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए मजबूत और स्वतंत्र न्यायाधीशों के महत्व को रेखांकित किया. क्या संस्था के प्रमुख के तौर पर अपनी बातों पर अमल करेंगे?

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games