सरदार सरोवर बांध में बारिश का पानी भरने से मध्य प्रदेश में नर्मदा घाटी में बसे 192 गांव और एक कस्बे के डूबने का ख़तरा है. इससे लगभग 32 हज़ार लोग प्रभावित होंगे. सुप्रीम कोर्ट के तमाम आदेशों के बावजूद यहां रहने वाले लोग आज भी पुनर्वास की बाट जोह रहे हैं.
मध्य प्रदेश के नर्मदा घाटी में स्थित कई गांव भारी बारिश की वजह से एक बार फिर जल-समाधि का खतरा झेल रहे हैं. भारी बारिश के चलते गुजरात में नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध (एसएसडी) का बैकवॉटर लेवल बढ़ने से बड़वानी जिले के कुछ हिस्सों में बाढ़ जैसी स्थितियां पैदा हो गई हैं.
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर एक बार फिर बीते 25 अगस्त को सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों के उचित पुनर्वास और बांध के गेट खोलने की मांग को लेकर जिले के छोटा बड़दा गांव में एक बार फिर धरने पर थीं, लेकिन बीते दो सितंबर की रात को उन्होंने धरना ख़त्म कर दिया. एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, नौ सितंबर को मेधा की भोपाल में सरदार सरोवर के विस्थापितों से जुड़े सारे मुद्दों पर सरकार से चर्चा होगी.
छोटा बड़दा गांव सरदार सरोवर बांध के बैकवाटर के जलमग्न क्षेत्र में पड़ता है.
मालूम हो कि सरदार सरोवर बांध में लगभग 134 मीटर पानी भरने से इसके बैकवॉटर से मध्य प्रदेश के बड़वानी, झाबुआ, धार, अलीराजपुर और खरगोन जिलों तक के गांवों में दिक्कत पैदा हो रही है. इस बांध में पानी भरने का अधिकतम स्तर 138.68 मीटर तय किया गया है.
बांध में पानी भरने से खतरा यह है कि मध्य प्रदेश में नर्मदा घाटी में बसे 192 गांव और एक कस्बा हमेशा-हमेशा के लिए डूब जाएंगे, जिससे लगभग 32 हजार लोग बेघरबार हो जाएंगे. ये वो लोग हैं जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्रमशः 2000, 2005 और 2007 में और बरसों पहले नर्मदा जल विवाद ट्रिब्यूनल (एनडब्ल्यूडीटी) के द्वारा दिए गए तमाम आदेशों के बावजूद आज भी पुनर्वास की बाट जोह रहे हैं.
ये सिर्फ मध्य प्रदेश का आंकड़ा है और इसके अलावा महाराष्ट्र और गुजरात के भी कई गांव डूब जाएंगे. इसे ‘नाइंसाफी’ बताते हुए प्रभावित लोगों ने मध्य प्रदेश के बडवानी जिला मुख्यालय में एक प्रदर्शन किया जिसमें सैकड़ों महिला-पुरुषों ने भाग लिया.
इसके बाद वो बीते 21 अगस्त को दिल्ली स्थित जंतर मंतर में भी आए जहां पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया. इनमें बहुत से किसान, मछुआरे और मज़दूर शामिल थे.
नर्मदा जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन केंद्र सरकार ने 1969 में की थी, जिसके अध्यक्ष जस्टिस वी. रामस्वामी थे. विभिन्न राज्यों के बीच नर्मदा के पानी का बंटवारा और नर्मदा नदी घाटी के विकास पर इस ट्रिब्यूनल को फैसला सुनाना था.
एनडब्ल्यूडीटी ने 7 दिसंबर, 1979 को अपना फैसला सुनाया था जिसे सरकार ने 12 दिसंबर, 1979 को अधिसूचित किया. तब से इस विवाद में भागीदार तमाम पक्षों- गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान – के लिए यह कानून जैसा बन गया.
इस फैसले में बांध का अधिकतम जलस्तर 138.68 मीटर निर्धारित किया गया और प्रभावित लोगों के पुनर्वास के प्रावधानों और जिम्मेदारियों के बारे में भी विस्तार से बताया गया.
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों में साफ कहा गया है कि प्रभावित लोगों का वाजिब पुनर्वास होने के बाद ही बांध को पानी से पूरा भरा जाए, लेकिन ज़मीनी स्तर पर ऐसा नहीं होता प्रतीत हो रहा है. इसीलिए लोग परेशान हैं और आंदोलनरत हुए हैं.
नर्मदा बचाव आंदोलन के कार्यकर्ता मधुरेश कुमार का कहना है, ‘2014 में जब नरेंद्र मोदी जी चुनकर आए थे तब सरदार सरोवर बांध का काम रुका हुआ था. इस परियोजना के लिए और भी बहुत सारे काम पूरे करने थे, लेकिन उन्होंने सत्ता संभालते ही उन कामों को पूरा किए बिना ही बांध बनाने का आदेश जारी कर दिया.’
मधुरेश आगे कहते हैं, ‘पर्यावरण और पुनर्वास का काम पूरा हुआ या नहीं ये देखा जाना होता है, लेकिन मोदी सरकार ने इन सबको ध्यान में रखे बिना गैरकानूनी तरीके से आदेश देकर 2017 में बांध को 149 मीटर ऊंचा कर दिया. अब गुजरात सरकार बांध में पूरा पानी भरना चाहती है. इससे मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 192 गांव और एक कस्बा डूब क्षेत्र में आने वाले हैं. इससे 40 हजार परिवार प्रभावित हो रहे हैं. यानी लगभग दो लाख लोग.’
नर्मदा विस्थापितों में से एक और नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता देवराम कनेरा का कहना है कि 8 फरवरी, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 31 जुलाई 2019 तक बांध में पानी भरने से पहले पुनर्वास का काम पूरा हो जाना चाहिए.
देवराम ने आगे कहा, ‘कोर्ट ने यह भी कहा था कि जिनके साथ पहले फर्जीवाड़ा हुआ था, उन्हें 15-15 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए. इसके अलावा पुनर्वास स्थलों में बिजली, पानी, स्वास्थ्य, स्कूल जैसी सभी मूलभूत सुविधाएं देने का आदेश भी दिया था. उस फैसले के दो साल बाद भी स्थिति जस के तस है.’
ट्रिब्यूनल के आदेश के मुताबिक हर परिवार का जीवन स्तर पुनर्वास के बाद बेहतर होना चाहिए.
उन्होंने बताया, ‘निसरपुर (धार जिला) नामक गांव के 700-800 घर डूब चुके हैं. चिखल्दा में 70-72 गांव डूब गए हैं. पुनर्वास के नाम पर सरकार और पुलिस आकर उन्हें उठाकर टिन के शेड में फेंक देती है. मूलभूत सुविधाएं देने का जो आश्वासन दिया गया था, वह कहीं भी नज़र नहीं आता.’
उनका आरोप है, ‘सुविधाएं देने की बात ट्रिब्यूनल में गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारों ने कही थी. अपने ही फैसलों को सरकारों ने पूरा नहीं किया. उसके बाद हम सुप्रीम कोर्ट गए थे. सुप्रीम कोर्ट का चाहे साल 2000 का फैसला हो या 2005 और 2017 का फैसला हो, उन तमाम फैसलों की अवमानना सरकारें खुद कर रही हैं.’
फरवरी 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि नर्मदा के विस्थापितों को अंतिम मुआवजे का भुगतान किया जाए ताकि बांध को अपनी पूरी क्षमता तक भरा जा सके. मध्य प्रदेश के 681 प्रभावित परिवारों में प्रत्येक को 60 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया था.
देवराम ने बताया, ‘13 अगस्त, 2019 को मध्य प्रदेश सरकार के अधिकारियों के साथ बैठक हुई थी. उसमें उन्होंने स्वीकार किया है कि 6000 परिवारों को सरकार की ओर से कुछ भी नहीं दिया गया है. 8000 लोगों को, जो हाईकोर्ट गए थे, उन्हें आधा-अधूरा मुआवजा दिया गया है. ये मामले अभी भी पेंडिग हैं.’
वे कहते हैं, ‘मध्य प्रदेश सरकार के मुताबिक चूंकि 14 हजार लोगों के मामले पेंडिंग में हैं इसलिए बांध में पानी न भरा जाए. मध्य प्रदेश सरकार ने इसका विरोध भी किया था. लेकिन गुजरात की विजय रूपाणी सरकार बांध में पूरा पानी भरने पर तुली हुई है. यानी यहां सब एकतरफा चल रहा है.’
कहा जा रहा है कि सरकार ने अभी तक 15 हजार लोगों का पुनर्वास किया है. लेकिन कई जगह ऐसी हैं, जहां स्कूल, स्वास्थ्य या दूसरी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. स्कूल हैं भी तो पांच-छह किलोमीटर दूर, ऐसे में बच्चे कैसे इतनी दूर चलकर जाएंगे, ऐसी कई चिंताएं नर्मदा बांध के प्रभावित लोगों को सता रही हैं.
मध्य प्रदेश के ही बिडोमी गांव की नर्मदा विस्थापित कमला यादव ने कहा, ‘एक तरफ बारिश हो रही है तो दूसरी ओर सरकार बांध में पानी भर रही है. जिससे कई गांव डूब रहे हैं. जनजीवन त्राहि-त्राहि हो रहा है. हम चाहते हैं कि सरकार बांध में 122 मीटर पानी ही रखे, ताकि गांव न डूबें. जब पुनर्वास पूरा हो जाए तब पानी भरा जाए.’
हालांकि कमला यादव यह भी स्पष्ट करती हैं कि वे लोग बांध का विरोध नहीं करते हैं. वे कहती हैं, ‘हम विकास विरोधी नहीं हैं. हम तो विकास चाहते हैं. लेकिन सरकार हमारी बलि दे रही है. हमें बिजली, पानी कुछ नहीं दिया जा रहा है.’
कमला ने आगे कहा, ‘पुनर्वास के नाम पर सरकार ने कुछ लोगों को सिर्फ दो-तीन लाख रुपये दिए हैं. मकान बनाने के लिए कई लोगों को प्लॉट तक अलॉट नहीं किया है. कुछ लोगों ने मिट्टी के मकान बना तो लिए हैं, लेकिन अभी बारिश की वजह से टूट रहे हैं. अभी सरकार कह रही है कि गांव खाली करो. हम जाएं तो जाएं कहां? मछुआरों को अब नर्मदा में मछली पकड़ने भी नहीं दिया जा रहा है. कहा जा रहा है कि पहले समिति बनाओ.’
कमला का कहना है कि सरकार ने जहां अभी पुनर्वास के तौर पर लोगों को बसाया था वहां तक भी बांध का पानी आ रहा है और वो गांव भी डूब रहे हैं. सरकार ने हमें डूब से बाहर निकालकर फिर डूब में ले जा रही है. ट्रिब्यूनल का फैसला है कि जब तक लोगों का पुनर्वास न हो तब तक उन्हें नहीं हटाना चाहिए. लेकिन सरकार ऐसा नहीं कर रही है.
हालांकि पुनर्वास के नाम पर सरकार ने कुछ टिनशेड बनाए हैं लेकिन वहां भी परेशानियां लोगों का पीछा नहीं छोड़ रही हैं. कमला बताती हैं, ‘2018 तक उनमें कोई रहता भी नहीं था. लेकिन अभी 2019 में लोगों को वहां जबर्दस्ती ले जाकर पटक रहे हैं. वहां कभी खाना देते हैं कभी नहीं देते हैं. इसके अलावा वहां मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं.’
बिजासन गांव का एक उदाहरण देते हुए वो बताती हैं कि वहां के लोगों को ले जाकर एक आंगनबाड़ी केंद्र में रखा गया है, जहां न तो बिजली है न पानी की सुविधा है.
उनका दावा है, ‘जब हम उनसे मिलने गए प्रशासन ने हमें उन्हें मिलने नहीं दिया. उस इलाके से लोगों को बाहर निकालने के लिए घरों को तोड़ा जा रहा है. पुनर्वास के तौर पर कुछ भी दिए बिना ही कई आदिवासियों के घरों को तोड़ दिया गया. दोबारा घर बनाते हैं तो फिर से तोड़ा जाता है. पुनर्वास के नाम पर भ्रष्टाचार भी हो रहा है.’