द कश्मीर फाइल्स का सिर्फ एक ही सच है, और वो है मुस्लिमों से नफ़रत

लोग ये बहस कर सकते हैं कि फिल्म में दिखाई गई घटनाएं असल में हुई थीं और कुछ हद तक वे सही भी होंगे. लेकिन किसी भी घटना के बारे में पूरा सच, बिना कुछ भी घटाए, जोड़े और बिना कुछ भी बदले ही कहा जा सकता है. सच कहने के लिए न केवल संदर्भ चाहिए, बल्कि प्रसंग और परिस्थिति बताया जाना भी ज़रूरी है.

रोज़ डरती, ख़ुद से लड़ती फिर जीतती हुई एक इंक़लाबी की मां…

लगभग साल भर से दिल्ली दंगों से संबंधित मामले में जेल में बंद उमर ख़ालिद की मां कहती हैं कि उसे बाहर आने पर हिंदुस्तान छोड़ देना चाहिए, लेकिन कुछ पलों बाद वो बदल-सी जाती हैं.

कोविड-19 से हुईं मौतें आम मौत नहीं हत्याएं हैं, जिसकी ज़िम्मेदार मोदी सरकार है

अगर भाजपा सरकार को कोविड की दूसरी लहर के बारे में पता नहीं था, तब यह लाखों को इकट्ठा कर रैली कर रही थी, या संक्रमण के प्रकोप को जानते हुए भी यह रैली कर रही थी, दोनों ही सूरतें बड़ी सरकारी नाकामी की मिसाल हैं. पता नहीं था तो ये इस लायक नहीं है कि गद्दी पर रहें और अगर मालूम था तो ये इन हत्याओं के लिए सीधे ज़िम्मेदार हैं.

उमर ख़ालिद ‘आतंकवादी’ है कि नहीं?

जो लोग ये कहते हैं कि अगर निर्दोष होगा तो अपने आप बाहर आ जाएगा, उनको मैं कह दूं, क्यों न आपको साल भर के लिए जेल में बंद कर दिया जाए? क्यों न देश के हर नागरिक को 18 साल का होते ही साल भर के लिए जेल में बंद कर दिया जाए. हम सब निर्दोष हैं, बाहर आ ही जाएंगे

हम फूल उगाने वाले हैं, बाग उजाड़ने वाले नहीं…

यह हक़ की लड़ाई है. एक तरफ नफ़रत है और एक तरफ हम. मैं यक़ीन दिलाना चाहता हूं कि हम सही हैं. नफ़रती पूरी कोशिश कर रहे हैं पर हमने भी गांधी जी का दामन थाम रखा है. मैं ये भी यक़ीन दिलाता हूं कि हम जीतेंगे क्योंकि इसके अलावा कोई चारा नहीं है.

आज हिंदुस्तानी मुसलमान को एक नए सामाजिक आंदोलन की ज़रूरत है

आज बहुत सुनियोजित ढंग से आरएसएस परिवार को छोड़कर सारी आवाज़ों को दबा दिया गया है. अगर कोई आवाज़ उठती भी है तो वह सिर्फ उनकी होती है, जो मुसलमानों को पिछड़ा, दकियानूसी और क़बायली साबित करती हैं.

उन्नाव की पीड़िता को कब मिलेगा इंसाफ?

दो साल पहले उन्नाव की उस नाबालिग के नौकरी मांगने जाने पर स्थानीय विधायक ने बलात्कार किया. कई चेतावनियों के बावजूद उसने इंसाफ के लिए लड़ाई शुरू की, जिसमें कई परिजनों को हार चुकी वो पीड़िता आज अस्पताल में ख़ुद अपनी ज़िंदगी के लिए लड़ रही है.

ये चुप्पी मीडिया नहीं, ‘पपी मीडिया’ है, जो सरकार के फेंके गए टुकड़ों पर पल रहा है

हिंदू-मुसलमान का एक्शन, ‘हिंदू खतरे में है’ का नाच, जेएनयू पर डायलॉग, संसद का सास-बहू, लव जिहाद का धोखा... पूरा देश समाचारों में एकता कपूर के सीरियल देख रहा है, वहीं भुखमरी, किसान आत्महत्या, बलात्कार, बेरोज़गारी, निर्माण और उत्पादकता का विनाश, महिला और दलित उत्पीड़न के बारे में नज़र आती है तो केवल... चुप्पी.

इन दो लड़कियों को इंसाफ़ नहीं मिला तो ये देश शर्मिंदगी से कभी उबर नहीं पाएगा

हिंदू-मुसलमान, ऊंची जाति, नीची जाति, नॉर्थ इंडियन, साउथ इंडियन, काले-गोरे, हरे, पीले, लाल, गुलाबी, भगवा, कत्थई. सब बन लिए. अब जरा भारतीय बनकर भारत को बचा लो.

टीवी पर संबित को देखा तो बचपन का वो ‘मूर्ख मौलाना’ याद आ गया

बचपन में होली खेलने के लिए मस्जिद से पानी लेने गया तो मौलाना ने ग़ैर-मुस्लिम होने का सर्टिफिकेट दे दिया. गुरुवार को टीवी पर संबित को सुना तो बचपन की यादें ताज़ा हो गईं.

भारतीय होने का मतलब ही सेकुलर होना है, ऐसा देश का संविधान कहता है

आजकल सेकुलर (कुछ के लिए सिकुलर) शब्द आतंकवादी, देशद्रोही, पाकिस्तानी एजेंट, टुकड़े-टुकड़े गैंग जैसे कई शब्दों का पर्याय बन गया है.

कम से कम हमारे हिंदुस्तान में तो ऐसा कुछ नहीं होता…

अफ़राज़ुल हत्याकांड: ये तीन लोगों की कहानी है. भगवान, अल्लाह, गॉड, इलाही जिसको भी आप मानते हो, वो कहता है, साउंड, कैमरा, एक्शन और एक सीन शुरू होता है.

गुजरात चुनाव सिर पर है और विकास अवकाश पर है

मेरे किसान भाइयों! तुम्हें तो अब ख़ुदकुशी भी करने की ज़रूरत नहीं है. सरकार आजकल तुम्हें ख़ुद गोली मार देती है. चलो इस बहाने ज़हर का ख़र्चा भी ख़त्म हुआ.

गरीबी के पीछे टेक्निकल रीज़न हो या न हो पर कुछ की अमीरी के पीछे टेक्निकल रीज़न ज़रूर है

आपके हाथ की लकीरों में ही भारत की क़िस्मत की लकीर है. और जिस दिन भारत की क़िस्मत चमक गई, उस दिन हम सब भारतीयों की क़िस्मत एक साथ चमक जाएगी.