भारतीय होने का मतलब ही सेकुलर होना है, ऐसा देश का संविधान कहता है

आजकल सेकुलर (कुछ के लिए सिकुलर) शब्द आतंकवादी, देशद्रोही, पाकिस्तानी एजेंट, टुकड़े-टुकड़े गैंग जैसे कई शब्दों का पर्याय बन गया है.

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An Indian Border Security Force (BSF) soldier opens a gate at the border with Pakistan in Suchetgarh, southwest of Jammu, January 12, 2010. An Indian soldier was killed on Monday in cross-border firing in Kashmir, the latest in a spurt of violence in the disputed region that has raised tensions with Pakistan, officials said. REUTERS/Mukesh Gupta (INDIAN-ADMINISTERED KASHMIR - Tags: CIVIL UNREST MILITARY POLITICS) - RTR28S2X

आजकल सेकुलर (कुछ के लिए सिकुलर) शब्द आतंकवादी, देशद्रोही, पाकिस्तानी एजेंट, टुकड़े-टुकड़े गैंग जैसे कई शब्दों का पर्याय बन गया है.

An Indian Border Security Force (BSF) soldier opens a gate at the border with Pakistan in Suchetgarh, southwest of Jammu, January 12, 2010. An Indian soldier was killed on Monday in cross-border firing in Kashmir, the latest in a spurt of violence in the disputed region that has raised tensions with Pakistan, officials said. REUTERS/Mukesh Gupta (INDIAN-ADMINISTERED KASHMIR - Tags: CIVIL UNREST MILITARY POLITICS) - RTR28S2X
प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स

एक अजीब सा सवाल है, दिमाग में ऐसे फंस गया है जैसे दाढ़ में भुट्टे का छिलका. जबान से लगातार कुरेद रहा हूं पर न उसे निकाल पा रहा हूं न भूल पा रहा हूं. नाखून उस तक पहुंचता नहीं है और वो अपने आप निकलने को तैयार नहीं है. इस छिलके ने मेरी दाढ़ में अपना घर बना लिया है.

आज सोच रहा हूं कि तर्क की टूथपिक से इसे निकाल फेकूं. हो सकता है दाढ़ से खून भी निकले पर अब तो इस छिलके का सामना करना ही पड़ेगा. पर उससे पहले सवाल की भूमिका बना देता हूं.

अभी कुछ 2-4 साल से एक नई गाली उभर के सामने आ रही है. खासतौर पर कासगंज के बाद पढ़े-लिखे लोग भी इसे गाली की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. शब्द है सेकुलर.

सेकुलर या इसके एक अपभ्रंश रूप ‘सिकुलर’ का इस्तेमाल आजकल कई रूपों में देखा जा रहा है. ये कई शब्दों का पर्याय बन गया है, जैसे आतंकवादी, एंटी नेशनल, पाकिस्तानी एजेंट, टुकड़े-टुकड़े गैंग आदि आदि. जो बेचारे असल में सेकुलर हैं, आजकल उनको बड़ी गालियां पड़ रही है, हर जगह उनका मजाक उड़ाया जा रहा है.

तो आइये जरा इस शब्द सेकुलर पर थोड़ा गौर फरमाया जाए. हिंदी में सेकुलर को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं. हिंदी शब्दकोष इसका मतलब कुछ ऐसे बताती है:

धर्मनिरपेक्ष[वि.] – 1. जो किसी भी धर्म की तरफदारी या पक्षपात न करता हो 2. जो सभी धर्मों को समान मानता हो 3. जो धार्मिक नियमों से प्रभावित न हो. 4. असांप्रदायिक 5. लौकिक; संसारी.

इस शब्द के पहले अर्थ पर थोड़ा ध्यान दें, ‘जो किसी भी धर्म की तरफदारी या पक्षपात न करता हो’ मतलब, वो खुद किसी भी धर्म का/की हो, इंसाफ की बात करे. किसी की बेवजह साइड न ले. सही को सही और गलत को गलत कहे. बात सुनने में आसान लगती पर निभाने में बहुत मुश्किल है.

दूसरा मतलब है ‘जो सभी धर्मों को समान मानता हो’ मतलब उसके लिए सारे धर्म एक समान हैं. या तो सारे धर्म सही है या सारे धर्म गलत हैं. वो किसी को किसी न ज्यादा न कम आंके. या तो सारे धर्म एक ही मंजिल तक पहुंचने के रास्ते हैं या सारे धर्म बराबर के भ्रम है, बराबर का ढोंग हैं. या तो बराबर के अच्छे या बराबर के बुरे.

तीसरा मतलब है ‘जो धार्मिक नियमों से प्रभावित न हो’ लेकिन अगर कोई भी इंसान धार्मिक नियमों से प्रभावित नहीं होगा तो फिर किस से होगा? आखिर हर धर्म हमें अच्छा इंसान बनाने की ही तो कोशिश करता है?

ह्म्म्म… असल में ये जवाब इतना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया एक समरूप या सजातीय ग्रुप नहीं है. एक जमाने में दुनिया का हर क्षेत्र, बाकी दुनिया से अलग-थलग बना था.

जैसे हिंदुस्तान के बारे में 1903 में एक अंग्रेज नौकरशाह जॉन स्ट्रेची ने अपनी किताब ‘इंडिया’ में लिखा था कि स्कॉटलैंड और स्पेन में ज्यादा समानताएं है, बंगाल और पंजाब मुकाबले.

यहां अलग होने का मतलब धर्म से नहीं है बल्कि कल्चर से है, संस्कृति से है. बंगाल के ब्राह्मण मांस-मछली खाते हैं जबकि राजस्थान में शाकाहारी है. एक ही धर्म, अलग-अलग परंपराएं, अलग-अलग जीने की शैली.

और धीरे-धीरे ये परंपराएं पक्की होती चली जाती है, धर्म का हिस्सा बनती जाती है. एक वक्त ऐसा आता है धर्म और संस्कृति में कोई फर्क नहीं रह जाता है. तब परंपराएं और धर्म में दूध और पानी की तरह मिल जाते हैं.

लेकिन तभी एक सवाल उठता है. ऐसा माना जाता है कि हर धर्म, ईश्वरीय बोध और हस्तक्षेप का नतीजा है. ये वो सत्य है जो की एक आम इंसान के बोध से बहुत बड़ा है, इसका पालन करना हमारा धर्म है और इसको पूरी तरह से समझना हमारी सोच के परे.

लेकिन जब इसमें परपराएं मिल जाती हैं तो कोई कैसे तय करे की क्या इसमें भगवान का दिया और क्या इंसान का?

जैसे मुसलमान घर में पैदा होने के बावजूद, मैं एक तथ्य से बिलकुल अनभिज्ञ था. जब मैंने पहली बार लड़कियों की खतना (Female Genital Mutilation) के बारे में सुना तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ. मेरे आस-पास कभी भी ऐसी कोई चीज मैंने न देखी थी न सुनी थी.

जब इस विषय के बारे में पढ़ा तो पता चला कि ये धार्मिक प्रैक्टिस कम कल्चरल प्रैक्टिस ज्यादा है. लेकिन जहां इस प्रथा का चलन है वहां इसे धार्मिक प्रक्रिया ही माना जाता है.

तो एक बात साफ है, बहुत सारी कुरीतियां है हर धर्म में, जो अब खुद धर्म बन चुकी हैं. मतलब, अगर दूध में जहर मिल चुका तो अब दूध और जहर को अलग करना नामुमकिन है.

लेकिन मुश्किल ये है कि दूध दिखने में अब भी दूध जैसा ही है. सिर्फ देखने से पता नहीं चलता है कि ये दूध जहरीला है.

एक वक्त ऐसा आया कि धार्मिक कानून हमारी बदलती दुनिया के न तो अनुकूल थे न अनुरूप. क्योंकि कहां भगवान खत्म होता है और कहां इंसान शुरू, इसका फैसला करना मुश्किल हो गया था. और ऊपर से हर धर्म के धार्मिक गुरु अपने हिसाब से हर धार्मिक कानून की मनमर्जी व्याख्या कर देते थे. बड़ा कंफ्यूजन हो चला था.

अब हमारे पूर्वजों (इंसानी पूर्वज सिर्फ भारतीय नहीं) के पास बस एक उपाय बचा था. कानून और समाज को धार्मिक चश्मा हटाकर इंसानी आंखों से देखा जाए. हर चीज, हर कानून को एक बार फिर से तोला जाए इंसानियत के तराजू में, जिसका तोल और मोल सही हो वो रखा जाए बाकी उठाकर फेंक दिया जाए. और यहां पर पैदा होता है सेकुलरिज्म.

ये वो कानून है, वो देश है, जो किसी तरह के धार्मिक नियमों से प्रभावित नहीं है. हालांकि इसका मतलब नास्तिक होना नहीं है. इसका मतलब सिर्फ इतना-सा है कि कानून धर्म की हदों से दूर और मानवता के पाले में खड़ा है. अगर धर्म और मानवता में भिड़ंत होगी तो मानवता जीतेगी.

(ये तीसरा मतलब इतना विशाल है कि एक किताब तो क्या 1,000 किताबें भी इस पर लिखी जाएं तो कम होंगी. लेकिन मैंने आसान शब्दों में समझाने की कोशिश की है. अगर ये व्याख्या आपको अधूरी और अति सरल लगे, तो कोई बात नहीं भूल-चूक,लेनी देनी)

चौथा मतलब है ‘असांप्रदायिक’ [वि.] – 1. जो किसी संप्रदाय विशेष से संबंधित न हो 2. विचार और आचरण में जो सांप्रदायिक विद्वेष की भावना से मुक्त हो.

इसको ज्यादा समझाने की जरूरत नहीं है. जैसा इसके मतलब से साफ जाहिर है. अगर फिर भी आपकी समझ में नहीं आ रहा भाई, बादाम खाओ.

पांचवा और आखिरी मतलब है ‘लौकिक; संसारी.’  हालांकि इन शब्दों का इस्तेमाल अक्सर लोग दोयम दर्जे में करते हैं, जैसे अलौकिक खास है और लौकिक आम. आध्यात्म खास है और संसारी आम. पर मुझे इस परिभाषा से कोई परहेज नहीं है.

वैसे भी सेकुलर इस दुनिया में रहने का और ठीक से चलाने का तरीका है, मरने बाद क्या होगा मुझे थोड़ी उसकी परवाह कम है.

वैसे एक बात मुझे हमेशा परेशान करती है. सोचिए आप 6 साल के बच्चे हैं, मेले में जाने के लिए पैसे इकट्ठे कर रहे हैं. मेला कस्बे में 15 दिन बाद लगेगा. पूरी मेहनत करके आप बहुत सारे पैसे इकट्ठे कर लेते हैं और जिस दिन आप मेले में जाने के लिए तैयार हो रहे होंगे, आपके चेहरे पर इस कान से लेकर उस कान तक की मुस्कान होगी. आप से ज्यादा खुश कोई नहीं होगा.

ये एक्स्ट्रा रिलीजियस लोग, जो मौत के बाद जिंदगी की, कोई मोक्ष की, तो कोई जन्नत की, तो कोई हैवेन की तैयारी में जुटे हैं, ये मरने के लिए उस छोटे-से मेले जाने वाले बच्चे की तरह उत्तेजित क्यों नहीं होते हैं?

खैर, बात है सेकुलर की, तो अगर आप सब धर्मों को बराबर समझते हैं, चाहे अच्छा या बुरा.

इंसानियत में यकीन है,

अपनी आस्था के चलते किसी के साथ नाइंसाफी नहीं करते हैं या नाइंसाफी की तरफदारी नहीं करते हैं.

धार्मिक परंपरा और नागरिक अधिकारों में आप हमेशा सिविल अधिकारों को सर्वोपरि समझते हैं.

किसी विशेष समुदाय या समूह के चक्कर में, इंसानियत से मुंह नहीं मोड़ते हैं.

अगर आपको मौत की कम और जिंदगी की ज्यादा फिक्र है.

तो आप सेकुलर है.

मैं सेकुलर हूं और ये मेरी जिंदगी कुछ सबसे महत्वपूर्ण मकसदों में से एक है. तो अगर आपको लगता है कि आप मुझे सेकुलर बोल कर हंस देते और सोचते हैं कि मुझे बुरा लगेगा तो ये ऐसा है कि आप आइंस्टीन को आइंस्टीन बुलाकर उसका मजाक उड़ाने की कोशिश कर रहे हैं.

असल में मूर्ख आप लग रहे हैं. चाहे आपके पास पूरी लाफिंग टीम हो,और गली में 20 लौंडे आपके साथ हंस रहे हों या आपके किसी ट्वीट को 1,000 लाइक्स और रीट्वीट मिल रहे हों, तब भी बात वहीं की वहीं है.

अब चाहे आप इसके आगे ‘सूडो’ सेकुलर लगा दें या सिकुलर बोल दें, या कुछ और उपसर्ग या प्रत्यय लगा दें, आप सिर्फ सच्चे को सच्चा और अच्छे का अच्छा बोल कर उसका मजाक उड़ाने की कोशिश कर रहे हैं.

मैं और मेरे करोड़ों साथी सेकुलर हैं और रहेंगे क्योंकि भारत का संविधान सेकुलर है. अगर आप लोगों को सेकुलर शब्द से परहेज है तो आप लोग कोई और देश ढूंढ सकते हैं क्योंकि भारतीय होने का मतलब ही सेकुलर होना है. ऐसा मैं नहीं, मेरे देश का संविधान कहता है.

(दाराब फ़ारूक़ी पटकथा लेखक हैं और फिल्म डेढ़ इश्किया की कहानी लिख चुके हैं.)