महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में बताया कि ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना से लिंगानुपात में सुधार लाने तथा लड़कियों के प्रति लोगों की मानसिकता बदलने का उद्देश्य पूरा करने में मदद मिली है. महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने उच्च सदन […]
अमूल मक्खन के लोकप्रिय विज्ञापन कश्मीर के दर्जे में परिवर्तन से लेकर चीनी उत्पादों के बहिष्कार तक के मुद्दे पर सरकार के रवैये के साथ हामी भरते नज़र आते हैं.
पत्रकार संगठनों ने लॉकडाउन के दौरान सभी बर्ख़ास्तगी नोटिसों को निलंबित करने, वेतन कटौती वापस लेने, बिना वेतन छुट्टी पर भेजे जाने संबंधी नोटिस निलंबित रखने का निर्देश देने के लिए एक जनहित याचिका दाख़िल की है. इसके बचाव में इंडियन न्यूज़पेपर सोसायटी और न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन ने हफ़लनामा दायर किया है.
‘भारतीय पारदर्शिता रिपोर्ट’ के अनुसार राजनीतिक दलों ने फरवरी 2019 तक विज्ञापनों पर 3.76 करोड़ रुपये ख़र्च किए हैं. भाजपा विज्ञापनों पर 1.21 करोड़ रुपये ख़र्च करने के साथ ही इस सूची में शीर्ष पर है.
फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार, दो सप्ताह के भीतर विज्ञापनों पर खर्च करने में शीर्ष 20 फेसबुक पेजों का योगदान 1.9 करोड़ रुपये से ज्यादा का है.
इस योजना पर साल 2014-15 से 2018-19 तक में मोदी सरकार कुल 648 करोड़ रुपये आवंटित कर चुकी है. इनमें से केवल 159 करोड़ रुपये ही जिलों और राज्यों को भेजे गए हैं. वहीं 364.66 करोड़ रुपये मीडिया संबंधी कार्यों पर ख़र्च किए गए और 53.66 करोड़ रुपये जारी ही नहीं किए गए.
यूपीए सरकार के दस साल में कुल मिलाकर 5,040 करोड़ रुपये की राशि विज्ञापन पर ख़र्च की गई थी. वहीं मोदी सरकार पांच साल से कम कार्यकाल में ही 5245.73 करोड़ रुपये ख़र्च कर चुकी है.
ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल द्वारा जारी हालिया आंकड़ों के मुताबिक 12 से 16 नवंबर के बीच टीवी चैनलों पर 22,099 बार भाजपा का विज्ञापन दिखाया गया. यह आंकड़ा देश के दूसरे सबसे बड़े टीवी विज्ञापनदाता नेटफ्लिक्स से 10,000 ज़्यादा है.
मोदी सरकार में विज्ञापन पर खर्च की गई राशि यूपीए सरकार के मुकाबले दोगुनी से भी ज़्यादा है. यूपीए ने अपने दस साल के कार्यकाल में विज्ञापन पर औसतन 504 करोड़ रुपये सालाना खर्च किया था, वहीं मोदी सरकार में हर साल औसतन 1202 करोड़ की राशि खर्च की गई है.
पतंजलि के प्रवक्ता ने एबीपी समाचार चैनल से विज्ञापन हटाने की बात स्वीकारते हुए वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी और मिलिंद खांडेकर के इस्तीफ़े में हाथ होने से इनकार किया.
मीडिया मालिक अख़बारों और न्यूज़ चैनलों को सुधारने के लिए कुछ करें या न करें, लेकिन यह तो तय है कि जब तक हर रोज़, हर न्यूज़रूम में प्रतिरोध की आवाज़ें मौजूद रहेंगी, तब तक भारतीय पत्रकारिता बनी रहेगी.
एक आरटीआई के जवाब में केंद्र सरकार के ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन ने बताया कि 2014 से अब तक नरेंद्र मोदी सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विज्ञापनों पर सर्वाधिक 2,079.87 करोड़ रुपये ख़र्चे हैं.
संसदीय समिति ने मंत्रालय से कहा कि विज्ञापन की अपेक्षा आधारभूत ढांचे पर अधिक ख़र्च करें. ऐसा न हो कि विज्ञापन के ज़रिये ऊंची उम्मीदें जता दी जाएं और अनुभव वैसा न हो.
दोषी पाए गए मामलों में 82 स्वास्थ्य क्षेत्र की कंपनियां, 75 शिक्षा क्षेत्र की, 11 व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद क्षेत्र की, आठ खाद्य एवं पेय पदार्थ तथा 24 मामले अन्य क्षेत्रों की कंपनियां शामिल हैं.
राज्यसभा में सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने बताया कि सरकार ने 2016-17 टेलीविजन चैनलों पर जारी विज्ञापनों पर 315.04 करोड़ रुपये ख़र्च किए.