युवाओं में शैक्षणिक योग्यता बढ़ने के साथ बढ़ रही हैं बेरोज़गारी: रिपोर्ट

अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट की तरफ से प्रकाशित 15 से 29 साल के बीच के युवाओं पर की गई है. रिपोर्ट के अनुसार, 2004-05 में युवा बेरोज़गारों की कुल संख्या 89 लाख रही, जो 2011-12 में 90 लाख, जबकि 2017-18 में 2.51 करोड़ पर पहुंच गई.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट की तरफ से प्रकाशित 15 से 29 साल के बीच के युवाओं पर की गई है. रिपोर्ट के अनुसार, 2004-05 में युवा बेरोज़गारों की कुल संख्या 89 लाख रही, जो 2011-12 में 90 लाख, जबकि 2017-18 में 2.51 करोड़ पर पहुंच गई.

Job applicants wait in line at a technology job fair in Los Angeles. Photo: Reuters
प्रतीकात्मक तस्वीर. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्लीः देश में शैक्षणिक योग्यता बढ़ने के साथ ही बेरोजगारी में भी इजाफा हो रहा है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के संतोष मेहरोत्रा और सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब के जेके परिदा ने देश के युवाओं में तेजी से बढ़ रही बेरोजगारी को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की है.

इस रिपोर्ट को अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट की तरफ से प्रकाशित किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह स्टडी 15 से 29 साल के बीच के युवाओं पर की गई है. रिपोर्ट के अनुसार, 2004-05 में युवा बेरोज़गारों की कुल संख्या 89 लाख रही, जो 2011-12 में 90 लाख, जबकि 2017-18 में 2.51 करोड़ पर पहुंच गई.

बदतर स्थिति यह है कि शैक्षणिक योग्यता बढ़ने के साथ ही बेरोजगारी दर भी बढ़ी है. शैक्षणिक योग्यता की सभी श्रेणियों में युवा बेरोजगारी दर बढ़ी है.

जिन राज्यों में युवा बेरोजगारी सर्वाधिक है, वे उत्तर प्रदेश (30 लाख), आंध्र प्रदेश (22 लाख), तमिलनाडु (22 लाख), महाराष्ट्र (19 लाख), बिहार (19 लाख), पश्चिम बंगाल (15 लाख), मध्य प्रदेश (13 लाख), कर्नाटक (12 लाख), राजस्थान (12 लाख), ओडिशा (11 लाख), गुजरात (10 लाख) और केरल (10 लाख) हैं.

मेहरोत्रा और परिदा ने ये निष्कर्ष नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के रोजगार सर्वेक्षण 2004-05 और 2011-12 के अलावा पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) 2017-18 के आंकड़ों के आधार पर किए हैं.

मेहरोत्रा के मुताबिक, कृषि सेक्टर में कुल रोजगार लगातार घट रहा है. यह 2011-2012 में 23.2 करोड़ था जो 2017-18 में घटकर 20.5 करोड़ रह गया.

अर्थव्यवस्था के अन्य सेक्टरों में नए रोजगारों के सृजन की दर अतिरिक्त श्रम को खपाने के लिए पर्याप्त नहीं है. सर्विस सेक्टर में रोजगार बढ़ा है. यह 2011-12 में 12.7 करोड़ से बढ़कर 2017-18 में 14.4 करोड़ हो गया.

वहीं, नॉन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर (निर्माण, खनन) में भी रोजगार 5.5 करोड़ से बढ़कर 5.9 करोड़ हो गया. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कुल रोजगार दर घटी. यह 2011-12 में छह करोड़ से घटकर 2017-2018 में 5.6 करोड़ रह गई.

मेहरोत्रा ने कहा, ‘गैर कृषि रोजगारों की धीमी गति और बढ़ती बेरोजगारी से युवाओं में निराशा बढ़ी है. इसका परिणाम यह है कि 15 से 29 साल के युवाओं की संख्या 2017-2018 में बढ़कर 10 करोड़ से अधिक हो गई जबकि 2011-2012 में यह 8.3 करोड़ थी.’

मेहरोत्रा ने कहा, ‘ये वे युवा हैं, जो देश की दशा से निराश हैं और न ही रोजगार ढूंढ रहे हैं और न ही इनकी पढ़ाई करने या किसी तरह का प्रशिक्षण लेने में रुचि है.’

मालूम हो कि इससे पहले संतोष मेहरोत्रा और जेके परिदा ने तैयार अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में 2011-12 और 2017-18 के बीच छह साल में नौकरियां घटी हैं. इन छह सालों के दौरान 90 लाख नौकरियां घटी हैं.

इस रिपोर्ट को अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट की तरफ से प्रकाशित किया गया था.

मेहरोत्रा और परिदा के मुताबिक, 2011-12 से 2017-18 के दौरान कुल रोजगार में 90 लाख की कमी आई है. ऐसा आजाद भारत में पहली बार नौकरियों में इस तरह की गिरावट दर्ज हुई है.