माओवादियों से कथित संबंध के आरोप में गिरफ़्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस दलील के साथ याचिकाएं दायर की थीं कि पुलिस उनके ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाई है.
पुणे: पुणे की एक सत्र अदालत ने बुधवार को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में माओवादियों से कथित संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किए गए छह सामाजिक कार्यकर्ताओं की जमानत याचिका खारिज कर दी.
रोना विल्सन, शोमा सेन, सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, वरवरा राव और सुधीर धावले ने इस दलील के साथ जमानत याचिकाएं दायर की थीं कि पुलिस उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाई है.
अभियोजन पक्ष ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि आरोपियों और माओवादियों के बीच संबंध दिखाने के लिए सामग्री मौजूद है.
लाइव लॉ के अनुसार, सत्र न्यायलय के जज ने यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के प्रकाश में दिया है, जिसमें उसने मामले के अन्य आरोपियों की जमानत अर्जी ख़ारिज कर दी थी.
पुणे पुलिस के अनुसार 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद की सभा के दौरान भड़काऊ भाषण दिये गए थे, जिसके चलते जिले में अगले दिन (एक जनवरी 2018) को भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक पर जातीय हिंसा भड़क गई थी.
पुलिस का दावा है कि सभा को माओवादियों का समर्थन हासिल था. इस मामले में 2018 में जून और अगस्त महीने में कई कार्यकर्ताओं और लेखकों को गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था.
इन कार्यकर्ताओं में तेलुगू कवि वरवरा राव, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा और वर्णन गोंसाल्विस, कार्यकर्ता और अधिवक्ता सुधा भारद्वाज भी शामिल थे.
सुधा भारद्वाज, वर्णन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा ने जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. कोर्ट ने इनकी अर्जियों पर दलीलों को सुनने के बाद 15 अक्टूबर को इन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था.
इस बीच, मामले में गिरफ्तार नहीं किये गए एक आरोपी कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने भी अग्रिम जमानत के लिये सत्र अदालत का रुख किया है. सात नवंबर को उनकी याचिका पर सुनवाई होगी. नवलखा को सुप्रीम कोर्ट से गिरफ़्तारी पर अंतरिम राहत मिली हुई है, जो 11 नवंबर को खत्म होगी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)