गाय की राजनीति में उलझा पूरा देश, सरकारें, कोर्ट और जनता दो ​धड़ों में बंटी

गाय और अन्य जानवरों के वध के लिए ख़रीद-फ़रोख़्त पर केंद्र सरकार के आदेश पर तीन अदालतों ने तीन तरह का आदेश दिया है तो राज्य सरकारों ने कड़ा विरोध जताया है.

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गाय और अन्य जानवरों के वध के लिए ख़रीद-फ़रोख़्त पर केंद्र सरकार के आदेश पर तीन अदालतों ने तीन तरह का आदेश दिया है तो राज्य सरकारों ने कड़ा विरोध जताया है.

Modi cow
गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान वडोदरा में हुए कृषि मेले में नरेंद्र मोदी. (फाइल फोटो: पीटीआई)

इधर केंद्र की भाजपा सरकार ने देश भर में वध के लिए पशुओं की ख़रीद-बिक्री पर रोक लगाई तो उधर मेघालय में भाजपा के एक स्थानीय नेता बर्नार्ड एन. मरक ने जनता से वादा किया कि गोमांस पर प्रतिबंध लगाने का सवाल ही नहीं उठता. भाजपा अगर राज्य में अगले वर्ष सत्ता में आती है तो गोमांस प्रतिबंधित नहीं होगा बल्कि गोमांस और दूसरे पशुओं के मांस के दाम गिराए जाएंगे ताकि गरीबों को मांस खाने में आसानी हो सके.

गाय पर एक पार्टी के इस पाखंड और कुत्सित राजनीति ने पूरे देश को दो धड़ों में बांट दिया है. दक्षिणी राज्यों में केंद्र के इस क़ानून के ख़िलाफ़ जगह जगह प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. वहीं केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने केंद्र के इस क़दम को राज्य के अधिकारों में हस्तक्षेप बताते हुए सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है. केंद्र सरकार के इस फ़ैसले का केरल, कर्नाटक, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी की सरकारों और कई पार्टियां विरोध कर रही हैं.

पिनराई विजयन ने किया विरोध 

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, पशुवध प्रतिबंध केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा है कि ‘वे केंद्र के इस फ़ैसले को चुनौती देने के लिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक की अध्यक्षता करेंगे और राज्य की विधानसभा का विशेष सत्र बुलाएंगे. वे इस संबंध में विपक्षी नेताओं से चर्चा भी करेंगे.’

पिनराई विजयन ने कहा, ‘यह भी देखना होगा कि क्या केंद्र सरकार के पास इस तरह का आदेश पारित करने का अधिकार है? विजयन ने केंद्र के इस क़दम को परिसंघ विरोधी, लोकतंत्र विरोधी और धर्मनिरपेक्ष विरोधी बताया है. उन्होंने अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर उनसे प्रतिबंध के ख़िलाफ़ साथ खड़े होने को कहा है. इसके अलावा उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नये नियमों को वापस लेने का भी अनुरोध किया है.

तीन अदालतें, तीन आदेश

उधर, मद्रास उच्च न्यायालय ने वध के लिए पशुओं की ख़रीद-बिक्री पर पाबंदी संंबंधी केंद्र की अधिसूचना पर मंगलवार को चार हफ्तों के लिए रोक लगा दी और केंद्र सरकार से चार हफ्तों में अपना जवाब दाख़िल करने को कहा है.

मद्रास उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिकाओं में दलील दी गई है कि इन नये नियमों के लिए सर्वप्रथम संसद की मंजूरी लेनी चाहिए थी. याचिकाओं में कहा गया था कि इन नियमों को रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि वे संविधान के ख़िलाफ़ हैं, परिसंघ के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं और मूल क़ानून-जंतु निर्ममता निवारण अधिनियम 1960 के विरोधाभासी हैं.

पिछले दिनों केंद्र सरकार ने वध के लिए पशु बाज़ारों में मवेशियों की ख़रीद-फ़रोख़्त पर प्रतिबंध लगा दिया है. पर्यावरण मंत्रालय ने पशु क्रूरता निरोधक अधिनियम के तहत सख़्त पशु क्रूरता निरोधक (पशुधन बाज़ार नियमन) नियम, 2017 को लेकर नई अधिसूचना जारी की है.

इस अधिसूचना के मुताबिक, पशु बाज़ार समिति के सदस्य सचिव को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी शख़्स बाज़ार में अवयस्क पशु को बिक्री के लिए न लेकर आए.

किसी भी शख़्स को पशु बाज़ार में मवेशी को लाने की इजाज़त नहीं होगी जब तक कि वहां पहुंचने पर वह पशु के मालिक द्वारा हस्ताक्षरित लिखित घोषणा-पत्र न दे दे जिसमें मवेशी के मालिक का नाम और पता हो और फोटो पहचान-पत्र की एक प्रति भी लगी हो. साथ ही मवेशी की पहचान का पूरा ब्योरा देने के साथ यह भी स्पष्ट करना होगा कि मवेशी को बाज़ार में बिक्री के लिए लाने का उद्देश्य उसका वध नहीं है.

मद्रास हाईकोर्ट के उलट राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार से कहा है कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए और गोवध करने वाले को आजीवन कारावास की सज़ा दी जाए. कोर्ट में हिंगोनिया गोशाला मामले पर सुनवाई करते हुए वन विभाग को हर साल गोशाला में 5000 पौधे लगाने का आदेश दिया है. इसके अलावा एंटी करप्‍शन ब्‍यूरो व एडिशनल डायरेक्‍टर जनरल को भी आदेश दिया कि हर तीन माह पर गोशालाओं की रिपोर्ट तैयार करें.

जयपुर के हिंगोनिया गोशाला में देखरेख के अभाव में सैकड़ों गायों की मौत के बाद दायर एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए राजस्‍थान हाई कोर्ट ने सरकार को सुझाव दिया है कि गाय को राष्‍ट्रीय पशु घोषित किया जाए और गोवध पर सज़ा को बढ़ाकर उम्रक़ैद तक कर देना चाहिए.

इन दोनों अदालतों से अलग, केरल हाईकोर्ट ने वध के लिए पशुओं की ख़रीद बिक्री रोकने वाले केंद्र सरकार के इस आदेश का समर्थन किया है. केरल हाईकोर्ट के मुताबिक, केेंद्र के इस आदेश में क़ानून का उल्लंघन नहीं हुआ है.

चेन्नई में छात्रों का प्रदर्शन 

केंद्र सरकार के इस फैसले के विरोध के क्रम में आज बुधवार को आईआईटी मद्रास में छात्रों ने प्रदर्शन किया. इस दौरान छात्रों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई. प्रतिबंध के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से केरल और तमिलनाडु के कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हो रहा है. प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया है कि यह लोगों की खान-पान की आदत के ख़िलाफ़ है.

यहां आयोजित एक बीफ फेस्‍ट के बाद कुछ अराजक तत्वों ने केरल के एक छात्र की बुरी तरह पिटाई कर दी थी. आर सूरज नाम का एक पीएचडी छात्र आयोजन में शामिल था, जिसकी बाद में कथित हिंदू संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने पिटाई की थी. उसके जबड़े पर फ्रैक्चर हो गया था और आंख के पास गहरा घाव हो गया था.

सूरज की पिटाई और पशुवध पर प्रतिबंध के विरोध में रिवोल्यूशनरी स्टूडेंट एंड यूथ फ्रंट ने भी प्रदर्शन किया. हमले में घायल छात्र के एक दोस्त ने कहा, ‘इसे एक बीफ पार्टी कहा गया. यह हमारे लिए बीफ खाने के अधिकार का उत्सव नहीं था. इस आयोजन का मुख्य मकसद था कि इस मसले पर बहस हो और जागरूकता फैलाई जाए.

तमिलनाडु की प्रमुख राजनीति पार्टी डीएमके ने भी बुधवार को केंद्र सरकार के फैसले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया. डीएमके के अध्यक्ष एमके स्टालिन और पार्टी नेता कानिमोझी 300 कार्यकर्ताओं के साथ इस प्रदर्शन में शामिल हुईं.

पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा लागू नहीं करेंगे केंद्र का क़ानून 

केंद्र सरकार के इस फ़ैसले ने केंद्र और राज्यों के बीच टकराव को बढ़ा दिया है. समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, त्रिपुरा सरकार ने कहा है कि वह पशुवध के लिए पशुओं की ख़रीद बिक्री पर प्रतिबंध संबंधी केंद्र के आदेश को लागू नहीं करेगा.

कर्नाटक सरकार ने कहा है कि मवेशी बाजारों में वध के लिए मवेशियों की ख़रीद फ़रोख़्त पर केंद्र के प्रतिबंध के बाद वह घटनाक्रमों का विश्लेषण कर रही है.

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने ट्विटर पर कहा, हम घटनाक्रमों पर नजर रख रहे हैं और वध के लिए मवेशियों की ख़रीद फ़रोख़्त पर केंद्र के हालिया प्रतिबंध पर सरकारी आदेश का इंतज़ार कर रहे हैं, ख़ासतौर पर इसलिए कि यह राज्य का विषय है. उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा, हम केंद्र की अधिसूचना के प्रभाव का आकलन कर रहे हैं.

कर्नाटक राज्य के पास ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए कर्नाटक गोहत्या निवारण एवं मवेशी संरक्षण अधिनियम, 1964 है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इन नये नियमों का विरोध करते हुए इसे अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताया था और घोषणा की थी कि इसे क़ानूनी रूप से चुनौती दी जाएगी.

ममता बनर्जी ने राज्य की पुलिस से कहा कि वह केंद्र की अधिसूचना का पालन नहीं करे. बैरकपुर में एक प्रशासनिक समीक्षा बैठक में उन्होंने कहा, कोई क्या खाएगा, यह उसकी निजी पसंद है. किसी को इस बारे में निर्देश देने का अधिकार नहीं है. उस आदेश का पालन नहीं किया जाए. प्रशासन को सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भ्रम नहीं रहे. जब तक राज्य सरकार आदेश नहीं देती है तब तक केंद्र के प्रतिबंध संबंधी आदेश का पालन नहीं किया जाए.

उठाए गए मुद्दों पर गौर कर रही केंद्र सरकार

चारों तरफ उठ रहे विरोध के स्वर के बाद केंद्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू ने नई दिल्ली में कहा कि प्रतिबंध के ख़िलाफ़ राज्यों और व्यावसायिक संगठनों की तरफ से उठाए गए मुद्दों पर सरकार गौर कर रही है.

नायडू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और पशुओं पर अत्याचार रोकने तथा तस्करी सहित पशु बाज़ार की मिलीभगत को तोड़ने के लिए बनी संसदीय समिति की कुछ टिप्पणियों के परिप्रेक्ष्य में ये नियम अधिसूचित किए गए थे. बहरहाल कुछ राज्य सरकारों और अन्य वाणिज्य संगठनों ने कुछ मुद्दे उठाए हैं. सरकार इन पर गौर कर रही है.

मेघालय के सांसद का प्रधानमंत्री से अनुरोध

पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस सांसद विंसेट एच पाला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया है कि वह आदिवासी और बीफ़ का सेवन करने वाले मेघालय जैसे राज्यों में पशु बाजारों में काटने के लिए मवेशियों के क्रय-विक्रय पर लगे प्रतिबंध को हटाएं.
पाला ने कहा है कि प्रधानमंत्री को आदिवासी और बीफ का सेवन करने वाले मेघालय जैसे राज्यों को छूट देनी चाहिए. अपने आवेदन में पाला ने आग्रह किया कि नियमों की समीक्षा करते समय सभी राज्य सरकारों की औपचारिक राय ली जानी चाहिए और राज्यवार ज़रूरी अधिसूचना के साथ नियमों को लागू करने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए.

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के अनुसार मेघालय देश में सबसे अधिक बीफ का सेवन करने वाला राज्य है. मेघालय की 80.74 फीसदी आबादी बीफ खाती है और यह आंकड़ा लक्षद्वीप और नगालैंड से अधिक है. शिलांग के सांसद पाला ने कहा, मेघालय जैसे आदिवासी राज्यों को इन नियमों के क्रियान्वयन से छूट मिलनी चाहिए.

इसी तरह केरल कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं ने सरेआम बछड़ा काटकर विरोध जताया तो मध्य प्रदेश के एक कांग्रेस नेता ने घोषणा कर डाली कि जो गाय का वध करने वाले का मुंह काला करेगा, उसे एक लाख का इनाम दूंगा. कांग्रेस नेतृत्व अपने छुटभैया नेताओं, अपनी पार्टी और केंद्र के फ़ैसलों को लेकर समान भाव से निस्पृह बना हुआ है.

ट्विटर पर ट्रेंड हुआ द्रविड़नाडु

केंद्र सरकार के इस निर्णय को लोगों के व्यवसाय और खान पान की आदतों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

सोमवार (29 मई) को ट्विटर पर अचानक द्रविड़नाडु शब्द ट्रेंड करने लगा. इस हैशटैग के तहत दक्षिणी राज्यों के तमाम लोग ट्वीट कर रहे थे, जिसमें वे दक्षिण के कुछ राज्यों को भारत से अलग करने की बातें लिख रहे थे. तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के कुछ लोग ऐसे ट्वीट कर रहे थे.

ये लोग मोदी सरकार पर खान पान की आदतों पर नियंत्रण करने और ब्राह्मणवादी मूल्यों को थोपने का आरोप लगाते हुए लिखा कि अगर सरकार ऐसा करती है तो हमें भारत से अलग कर दे.

कॉमरेड नाम्बियार नाम के अकाउंट से ट्वीट किया गया, ‘#ModisWarOnSouth. प्रिय तमिल, अगर भाजपा पेरियार के साहित्य को देशद्रोही घोषित कर देगी, तब क्या करोगे? #DravidaNaadu के लिए लड़ो.’

https://twitter.com/Kerala_Soviet/status/869634322042572800

मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय की सूचना शेयर करते हुए इसी अकाउंट से ट्वीट किया गया, ‘शाबाश मद्रास हाईकोर्ट! क़ानून का प्रयोग किया और उत्तर भारतीय उपनिवेशवाद पर शिकंजा कर दिया. #द्रविड़नाडु लाल सलाम!’

https://twitter.com/Kerala_Soviet/status/869513443065438208

दीपक ने लिखा, ‘तुम अपनी गोरक्षा बचाओ, हम अपनी समाजवादी और सेक्युलर ज़मीन बचाएंगे.’ इसी हैशटैग के अंतर्गत दक्षिणी राज्यों पर हिंदी थोपने और तरुण विजय के दक्षिण भारतीय लोगों को ‘काला’ कहने की भी आलोचना की गई.

https://twitter.com/Diplomaticsingh/status/850417762862235649

रॉय शंकर ने लिखा, ‘दक्षिण भारत को उत्तर भारतीय शाकाहारवाद और कट्टरता को थोपने का विरोध करना ही चाहिए. शायद यह आज़ादी का समय है.’ हालांकि, कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्वीट करके इस तरह के ‘देशविरोधी’ विचार को आगे न बढ़ाने की अपील की.

सबसे दुखद यह है कि गाय को लेकर जो छद्मयुद्ध छेड़ा गया है वह अब राजनीतिक होता दिख रहा है. कई गैरभाजपाई दल और सरकारें न सिर्फ़ इसके विरोध में उतर आई हैं, बल्कि लोगों में यह भावना बैठने लगी है कि भाजपा सरकारें लोगों की खान पान जैसी आदतों पर अपना नियंत्रण चाहती हैं?

क्या भाजपा देश की एकता और अखंडता की क़ीमत पर गाय बचाने की ज़िद पर उतरी है? शायद नहीं. सभी पशुओं की ख़रीद बिक्री पर और पशुवध पर प्रतिबंध उसके आगे का मामला है. सरकार की इस कोशिश से आंतरिक टकराव की स्थिति पैदा होती दिख रही है. जितना जल्दी हो सके, भाजपा को लोगों को शाकाहारी बनाने की हुज्जत छोड़ देनी चाहिए.

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