केंद्र ने कोर्ट से कहा, कश्मीर का विशेष दर्जा हटाने के फैसले की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ 14 नवंबर से इस मामले की सुनवाई करेगी. केंद्र को पांच अगस्त के राष्ट्रपति आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए कहा गया था.

Srinagar:A girl runs for cover after throwing stones during a protest in Srinagar, Tuesday, Oct. 29, 2019. A delegation of 23 European Union MPs is on a visit to Jammu and Kashmir for a first-hand assessment of the situation in the Valley following the revocation of the state''s special status under Article 370. (PTI Photo) (PTI10_29_2019_000140A)

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ 14 नवंबर से इस मामले की सुनवाई करेगी. केंद्र को पांच अगस्त के राष्ट्रपति आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए कहा गया था.

Srinagar:A girl runs for cover after throwing stones during a protest in Srinagar, Tuesday, Oct. 29, 2019. A delegation of 23 European Union MPs is on a visit to Jammu and Kashmir for a first-hand assessment of the situation in the Valley following the revocation of the state''s special status under Article 370. (PTI Photo) (PTI10_29_2019_000140A)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रवाधानों को निरस्त कर जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के निर्णय की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है.

बार एंड बेंच के मुताबिक जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर इसे दो केंद्रशासित राज्यों में बांटने के फैसले के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर जवाबी हलफनामा दायर कर केंद्र सरकार ने ये जवाब दिया है.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल, आर. सुभाष रेड्डी, बीआर गवई और सूर्य कांत के साथ जस्टिस एनवी रमण की अगुवाई वाली संविधान पीठ 14 नवंबर से इस मामले की सुनवाई शुरु करने वाली है.

केंद्र ने जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और इसे दो भागों में बांटने के फैसले को सही ठहराते हुए इसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता का हवाला दिया है. सरकार ने यह भी कहा है कि जम्मू कश्मीर राज्य के पूर्ण विलय से क्षेत्र के लोगों को भारत के संविधान का पूर्ण संरक्षण और लाभ मिलेगा.

केंद्र ने ये भी कहा कि ये फैसला लोगों के हित में है और इससे क्षेत्र में विकास एवं शांति में बढ़ोतरी होगी.

जम्मू कश्मीर के संबंध में लिए गए फैसलों को सही ठहराते हुए हुए केंद्र ने कहा कि ऐसे फैसले लेने की बुद्धिमत्ता की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है.

इस मामले में दायर की गईं सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग करते हुए केंद्र ने कहा, ‘न्यायिक समीक्षा इस माननीय न्यायालय की संवैधानिक शक्ति का हिस्सा है, लेकिन माननीय राष्ट्रपति और संसद के ऐसे निर्णयों का औचित्य या तर्कसंगतता, उसकी खासियत, अनुकूलता और बुद्धिमत्ता न्यायिक समीक्षा के लिए उत्तरदायी नहीं हैं.’

केंद्र को पांच अगस्त के राष्ट्रपति आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए कहा गया था.