मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि पुनर्विचार याचिकाओं में दम नहीं है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने रफाल मामले में अपने 14 दिसंबर 2018 के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि इन याचिकाओं में मेरिट की कमी है.
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ ने पाया कि पुनर्विचार याचिकाओं में मेरिट यानी कि दम नहीं है.
जस्टिस कौल ने सीजेआई गोगोई और खुद के लिए फैसला पढ़ते हुए कहा कि आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा ललिता कुमारी मामले में दिए गए निर्देशों के आधार पर एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए थी. चूंकि कोर्ट ने विस्तार से इस मामले पर बहस की है, एफआईआर दर्ज करने की जरूरत नहीं है.
वहीं जस्टिस जोसेफ ने बहुमत के फैसले से सहमति जताते हुए अपने अलग फैसले में कहा कि ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा बहुत सीमित होती है. इस तरह से एकमत होकर जजों ने पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया.
बीते 10 मई को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस केएम जोसेफ ने सुप्रीम कोर्ट के 14 दिसंबर 2018 के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था.
14 दिसंबर 2018 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने रफाल डील से संबंधित दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था और कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग को ठुकरा दी थी.
इसके बाद पुनर्विचार दायर कर कहा गया कि कोर्ट के फैसले में कई सारी तथ्यात्मक गलतियां हैं. सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार द्वारा एक सीलबंद लिफाफे में दी गई गलत जानकारी पर आधारित है जिस पर किसी व्यक्ति का हस्ताक्षर भी नहीं है.
याचिकाकर्ताओं ने ये भी कहा था कि फैसला आने के बाद कई सारे नए तथ्य सामने आए हैं जिसके आधार पर मामले की तह में जाने की जरूरत है. रफाल मामले में फैसला आने के बाद कांग्रेस एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जांच पर जोर दे रही थी.
साल 2015 के रफाल सौदे की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली अपनी याचिका खारिज होने के बाद पूर्व मंत्री अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा के साथ वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले की समीक्षा की मांग की थी.