सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए गैर सरकारी संगठन लॉयर्स कलेक्टिव को एक नोटिस जारी किया.
नई दिल्ली: वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया जिसके तहत विदेशी सहयोग (विनियमन) अधिनियम उल्लंघन मामले में दोनों वकीलों के खिलाफ सीबीआई को कोई सख्त कदम उठाने से मना किया गया था.
लाइव लॉ के अनुसार, सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) लॉयर्स कलेक्टिव को एक नोटिस जारी किया.
बता दें कि, वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर एनजीओ लॉयर्स कलेक्टिव के संस्थापक हैं.
हालांकि, सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस अनिरूद्ध बोस और जस्टिर कृष्ण मुरारी की पीठ ने अधिवक्ताओं के एक स्वैच्छिक संगठन ‘लॉयर्स व्यॉयस’ द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें लॉयर्स कलेक्टिव द्वारा एफसीआरए उल्लंघन के कारण जयसिंह और ग्रोवर के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग की गई थी. कोर्ट ने कहा कि सीबीआई पहले ही कार्रवाई कर चुकी है.
इसके साथ ही जस्टिस अनिरूद्ध बोस इस मामले की आगे की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया.
एनजीओ के खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने 25 जुलाई को एनजीओ को राहत दी थी.
इसके चुनौती देते हुए एजेंसी ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश प्रभावी रूप से सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अभियुक्तों/प्रतिवादियों को अग्रिम जमानत देने वाला एक आदेश है, जो कि धारा 438 के तहत आवश्यक शर्तों को पूरा किए हुए बिना दिया गया है.
इसमें कहा गया कि एफआईआर में खामी पाए जाने के बाद एक निश्चित निष्कर्ष पर ही हाईकोर्ट जांच रोक सकता था. हाईकोर्ट ने केवल इस आधार पर अंतरिम आदेश पास कर दिया है कि एफआईआर 2016 की जांच रिपोर्ट पर आधारित है.
बता दें कि, ‘लॉयर्स व्यॉयस’ ने द्वारा दायर जनहित याचिका में जयसिंह पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल जैसे अहम और संवेदनशील पद पर रहने के दौरान दूसरे देशों से फंडिंग हासिल की थी. याचिका में आरोप लगाया गया है कि इनके द्वारा जुटाए गए धन का राष्ट्र के ख़िलाफ़ गतिविधियों में दुरुपयोग किया गया.
इंदिरा जयसिंह 2009 से 2014 में पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान इस पद पर तैनात थीं.
याचिका में केंद्र के आदेशों का जिक्र है जिसके जरिए लॉयर्स कलेक्टिव का लाइसेंस 2016 में निलंबित कर दिया गया था और विदेशी चंदा (नियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के कथित उल्लंघन को लेकर बाद में इसे स्थाई रूप से रद्द कर दिया गया था.
पीआईएल में आरोप लगाया गया है कि जयसिंह, ग्रोवर और लॉयर्स कलेक्टिव ने एफसीआरए, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और भ्रष्टाचार रोकथाम कानून का उल्लंघन किया. याचिका अधिवक्ता सुरेंद्र कुमार गुप्ता के मार्फत दायर की गई है. इसमें आरोप लगाया गया है कि गंभीर आरोप होने के बावजूद केंद्र ने जयसिंह, उनके पति ग्रोवर और लॉयर्स कलेक्टिव की छानबीन नहीं करने का विकल्प चुना.
इस संस्था का गठन इंदिरा जयसिंह और ग्रोवर ने 1981 में किया था. यह आरोप भी लगाया गया कि चेक और नकदी के रूप में चंदा प्राप्त किया गया जो हर किसी को मालूम है. इसकी जांच किए जाने की जरूरत है.
याचिका में कहा गया कि 31 मई 2016 के आदेश से यह स्पष्ट है कि जयसिंह ने केंद्र के लिए जुलाई 2009 से मई 2014 तक अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल के रूप में काम करने के दौरान 96.60 लाख रुपये मेहनताना प्राप्त किया था. यह याचिका केंद्र के 2016 के आदेशों पर आधारित है.
गृह मंत्रालय के सक्षम प्राधिकार ने 2015 में दायर एक शिकायत पर 31 मई और 27 नवंबर 2016 के दो आदेश जारी किए थे. मंत्रालय ने जयपुर निवासी राजकुमार शर्मा के पत्र पर संज्ञान लेते हुए यह कार्रवाई की थी.
पत्र में दावा किया गया था कि लॉयर्स कलेक्टिव ने 2006 के बाद से 28. 5 करोड़ रुपये विदेशी चंदा प्राप्त किया, जिसमें से 7. 2 करोड़ रुपये फोर्ड फाउंडेशन यूएसए से प्राप्त किया गया जबकि 4. 1 करोड़ रुपये अत्यधिक विवादास्पद अमेरिकी दानकर्ता ओपेन सोसाइटी फाउंडेशन से प्राप्त किया गया.
इसमें कहा गया कि आरटीआई के जरिए जुटाए गए आंकड़ों से यह जाहिर होता है कि इंदिरा जयसिंह के 2008 -2009 में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बनने के बाद लॉयर्स कलेक्टिव ने लावी स्ट्रॉस फाउंडेशन, यूएसए और स्विट्जरलैंड के फाउंडेशन ओपेन सोसाइटी जैसे विवादास्पद संगठनों से धन हासिल किया.