वहीं गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने कांग्रेस नेता आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति को बताया कि हिरासत में लिए गए जम्मू कश्मीर के नेताओं को रिहा किया जा रहा है और बाकियों को भी रिहा कर दिया जाएगा. हालांकि उन्होंने इसकी कोई समयसीमा नहीं बताई.
जम्मू/नई दिल्ली/श्रीनगर: केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने अधिकारियों के एक समूह से कहा कि अगर घाटी में शांति बरकरार रखने में मदद मिलती है तो जम्मू कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को नजरबंद ही रहना चाहिए.
ये अधिकारी उन्हें नव गठित केंद्र शासित प्रदेश में स्थिति के बारे में जानकारी देने पहुंचे थे.
पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की नजरबंदी के संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘उनके नजरबंद रहने के कारण अगर स्थिति शांतिपूर्ण है तब यही बेहतर है कि वो नजरबंद रहें.’
वह यहां दो दिवसीय क्षेत्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के बाद अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे. इस सम्मेलन में क्षेत्र में अच्छी शासन व्यवस्थाओं को लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. इस सम्मेलन में उप राज्यपाल गिरीश चंद्र मुर्मू भी मौजूद थे.
उन्होंने कहा कि सुशासन और क्षेत्र में विकास तथा युवाओं पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयास के तहत सरकार को जम्मू कश्मीर पर विमर्श में बदलाव लाना होगा.
सिंह ने कहा कि जम्मू कश्मीर पर विमर्श को बदलना होगा जिससे सुशासन और विकास का फल लोगों तक पहुंच सके. उन्होंने कहा, ‘लोगों का एक वर्ग ऐसा है जो यह नहीं जानता कि वे किस चीज से वंचित थे. वंचित होना उस सीमा तक पहुंच गया था.’
मंत्री ने कहा, ‘हमारे पास एक नयी व्यवस्था है और नयी व्यवस्था सीधे केंद्र को रिपोर्ट करती है और हम इसे इस क्षेत्र के लोगों के साथ सहयोग करने और सफल बनाने के लिये इसका श्रेय देते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हम इसका श्रेय युवाओं को देते हैं क्योंकि वे आबादी का 70 फीसद हैं. वे पिछले पांच सालों के दौरान मोदी सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए तमाम अवसरों से वंचित रहे. युवाओं की अकांक्षाएं हमारे लिये लिटमस टेस्ट हैं.’
केंद्र द्वारा पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को दिये गए विशेष प्रावधान को रद्द करने के मद्देनजर तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत मुख्यधाराओं के नेताओं को ऐहतियातन नजरबंद कर लिया गया था.
कश्मीर में हालात सामान्य, हिरासत में लिए नेताओं को धीरे-धीरे रिहा किया जाएगा: गृह मंत्रालय
गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने शुक्रवार को संसद की एक समिति को बताया कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं तथा पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा किया जाएगा लेकिन इसके लिए उन्होंने कोई समय सीमा नहीं बताई.
कांग्रेस नेता आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति को केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला, मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव ज्ञानेश कुमार और अन्य अधिकारियों ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर और लद्दाख के हालात से अवगत कराया.
बताया जा रहा है कि समिति के कुछ सदस्यों ने सरकारी अधिकारियों से कहा कि उन्हें कश्मीर जाने दिया जाने दिया जाना चाहिए लेकिन इस मांग को खारिज कर दिया गया.
लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों ने सरकार के शीर्ष अधिकारियों से हिरासत में लिए गए नेताओं खासतौर पर तीन बार मुख्यमंत्री रहे एवं श्रीनगर से सांसद फारूक अब्दुल्ला के बारे में सवाल किए, जिन्हें 17 सितंबर को जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में लिया गया था.
गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने संसदीय समिति को बताया कि जिन्हें जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत हिरासत में लिया गया है वे इसे अधिकृत न्यायाधिकरण में चुनौती दे सकते हैं और उसके आदेश से अंसतुष्ट होने पर उच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं.
अब्दुल्ला एकमात्र नेता हैं जिन्हें कश्मीर में पीएसए कानून के तहत हिरासत में रखा गया है. सूत्रों के मुताबिक सांसदों ने लंबे समय तक अब्दुल्ला के बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को लंबे समय तक हिरासत में रखने का विरोध किया.
दोनों पांच अगस्त से हिरासत में हैं जब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म कर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने का फैसला किया था.
हिरासत में लिए गए नेताओं को छोड़ने के सवाल पर भल्ला और उनकी टीम के अधिकारियों ने बताया कि कुछ नेताओं को रिहा किया जा चुका है और बाकी को धीरे-धीरे रिहा कर दिया जाएगा, लेकिन वे समयसीमा बताने से बचते रहे.
सूत्रों के मुताबिक गृह सचिव ने सांसदों को बताया कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं, स्कूल खुल गए हैं और सेब का कारोबार हो रहा है.
सांसदों ने कश्मीर घाटी में पांच अगस्त से इंटरनेट सेवाओं पर अंकुश लगाने का मुद्दा उठाया, जिस पर अधिकारियों ने बताया कि यह प्रतिबंध आतंकवादियों को विध्वंसक कार्रवाई को अंजाम देने से रोकने और असामाजिक तत्वों को अफवाह फैलाने से रोकने के लिए लगाया गया है.
सांसदों को अधिकारियों ने बताया कि 1990 से अब तक जम्मू कश्मीर में आतंकवादी हिंसा की 71,254 घटनाएं हुई, जिनमें 14,049 नागरिकों की मौत हो गई और 5,293 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए. इस दौरान 22,552 आतंकवादी भी मारे गए.
गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने समिति के सदस्यों को बताया कि सभी केंद्रीय कानून नए केंद्र शासित प्रदेश में लागू होंगे. जिन राज्य कानूनों का अधिकार क्षेत्र केंद्रीय कानून के अधिकार क्षेत्र में दखल देता हैं, वे निरस्त हो गये हैं. राज्य के अन्य कानूनों को भारतीय संविधान के अनुकूल बनाया जाएगा.
सांसदों के सामने दी गई प्रस्तुति के दौरान अधिकारियों ने भारत के नए राजनीतिक मानचित्र को भी प्रदर्शित किया जिसमें जम्मू कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों के रूप में दिखाया गया है तथा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान को भी इन केंद्रशासित प्रदेशों में शामिल किया गया है.
गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में लैंडलाइन फोन सेवा और पोस्टपेड मोबाइल फोन सेवाएं बहाल कर दी गई हैं. घाटी में रात के प्रतिबंध को छोड़कर धारा 144 के तहत आवाजाही पर लगी रोक हटा ली गई है.
बैठक में मौजूद सूत्रों के मुताबिक जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर समिति में चर्चा के दौरान भाजपा और कांग्रेस सांसदों के बीच मतभेद देखने को मिला.
भाजपा सांसदों ने नियमावली का हवाला देते हुए कहा कि कार्यपालिका के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए. वहीं, कांग्रेस सांसदों का कहना था कि चूंकि मामला गंभीर है इसलिए उस पर चर्चा होनी चाहिए.
कश्मीर की बड़ी मस्जिदों में जुमे की नमाज पर पाबंदियां जारी
केंद्र की ओर से पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 के अधिकतर प्रावधान खत्म करने की घोषणा के बाद लगातार 15वें हफ्ते श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में स्थित जामिया मस्जिद में जुमे की सामूहिक नमाज नहीं हुई.
अधिकारियों ने बताया कि मस्जिद के दरवाजे बंद रहे और बड़ी संख्या में सुरक्षाबल इलाके में तैनात रहे. उन्होंने बताया कि ऐसी आशंका है कि निहित स्वार्थ के लिए कुछ लोग जुमे की नमाज के लिए बड़ी मस्जिदों और दरगाहों में जुटने वाली भीड़ का इस्तेमाल राज्य का विशेष दर्जा खत्म करने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में कर सकते हैं.
श्रीनगर के पुराने इलाके में स्थित ऐतिहासिक मस्जिद में करीब तीन महीने से जुमे की नमाज अदा करने की इजाजत नहीं दी गई है. हालांकि हजरबल दरगाह में साप्ताहिक जलसे की अनुमति है.
प्रशासन ने बड़े पैमाने पर लोगों को एक साथ जुटने से रोकने के लिए दरगाह के आसपास कंटीले तार की बाड़ लगायी है. प्रशासन ने रविवार को ईद-मिलाद-उन नबी के मौके पर डल झील के किनारे स्थित दरगाह में भीड़ को जमा होने से रोकने के लिए सभी रास्तों को सील कर दिया.
इससे पहले प्रशासन ने श्रीनगर के ख्वाजाबाज़ार इलाके में स्थित नक्शबंध साहब की दरगाह पर होने वाले पारंपरिक ‘खोजे दीगर’ जलसे पर भी रोक लगा दी.
अधिकारियों ने बताया कि शुक्रवार की सुबह घाटी में अधिकतर दुकाने खुली रहीं, लेकिन दोपहर को जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए दुकानदारों ने दुकाने बंद कर दी.
उन्होंने बताया कि गुरुवार के मुकाबले शुक्रवार को सड़कों पर कम वाहन दिखे. हालांकि दसवीं एवं बारहवीं की परीक्षाएं पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत हो रही हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)