दिल्ली हाईकोर्ट ने कालकाजी मंदिर में भीड़ को नियंत्रित करने के संदर्भ में शुक्रवार को कहा कि पुजारियों को भक्त और भगवान के बीच संपर्क को बाधित नहीं करना चाहिए.
न्यायमूर्ति जेआर मिधा ने कहा कि मंदिर के कामकाज को बेहतर बनाए जाने की जरूरत है. यह तरीका सही नहीं है. मंदिर के संचालन के तरीके को लेकर मैं चिंतित हूं. न्यायाधीश ने कहा, किसी भी व्यक्ति को देवी के दर्शन के लिए सेकेंड का एक छोटा हिस्सा मिलता है. इस सेकेंड के हिस्से में श्रद्धालुओं और भगवान के बीच बाधा नहीं होनी चाहिए. यहां (मंदिर में) सेकेंड का हिस्सा अबाधित नहीं है. मैं भी उस मंदिर में जाता हूं.
न्यायाधीश ने कहा, वहां लोग (पुजारी) केवल बाधा उत्पन्न करने के लिए होते हैं. किसी भी व्यक्ति को भगवान से संपर्क के लिए एक या दो सेकेंड दीजिए.
एक पुजारी की याचिका पर न्यायालय ने यह बात कही. पुजारी ने याचिका में अपनी दो बहनों को मंदिर में पूजा करने और सेवा से रोकने और दान को साझा करने से रोकने के लिए एक न्यायिक आदेश देने की मांग की थी.
हालांकि अंतरिम व्यवस्था के तहत पुजारी सात फरवरी से सात मार्च के बीच इकट्ठा हुई पूजा सेवा की दान राशि में से छह-छह लाख रुपये दोनों बहनों को देने को लेकर राजी हुआ. मामले की अगली सुनवाई 21 फरवरी को होगी.
महिला अधिकारों से भी जुड़ा है मामला
दरअसल ये मामला महिला अधिकारों से भी जुड़ा है. यह कालकाजी मंदिर में महिला पुजारी बनने और चढ़ावे को लेकर दों बहनों शशिबाला व विजयलक्ष्मी और भाई सत्यदेव की लड़ाई है. इससे पहले मंगलवार को ही दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए सवाल किया था कि कालकाजी मंदिर में महिलाएं सेवा क्यों नही कर सकती और पुजारिन बनने का हक उन्हें क्यों नहीं है?
‘आज तक’ वेबसाइट की एक रिपोर्ट के अनुसार, दोनों बहनों ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि पुजारी बनने और चढ़ावा लेने का उन्हें भी वही अधिकार मिलना चाहिए जो उनके पुजारी भाई को मिला हुआ है. शशिबाला और विजयलक्ष्मी को कोर्ट इसलिए आना पड़ा क्योंकि भाई ने बिना कोर्ट आए उनकी बात सुनी ही नहीं.
इससे पहले दिल्ली की निचली अदालत ने दोनों बहनों के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिसे उसके पुजारी भाई ने हाईकोर्ट में चुनौती दे दी. बहनों का आरोप है कि 2003 से अब तक हर बार कालकाजी मंदिर में आने-वाले चढ़ावे में भाई ने उन्हें हिस्सा तब दिया जब कोर्ट की ओर से आदेश हुआ.
इसके उलट उनके भाई के अधिवक्ता का तर्क है कि मंदिर में हमेशा से ही पुरुष पुजारी पूजा करते आए हैं. महिलाओं ने आज तक पूजा नहीं की. बहनों का विवाह होने के बाद उनका गोत्र बदल गया है. ऐसे में न तो उन्हें पूजा का अधिकार है और न ही चढ़ावे पर हक. बताया जाता है कि दोनों बहनें विधवा हैं और पिछले 15 साल से कोर्ट और कचहरी के चक्कर काट रही हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)