चुनावी बॉन्ड योजना को लागू करने के लिए मोदी सरकार ने साल 2017 में विभिन्न कानूनों में संशोधन किया था. एडीआर ने साल 2017 में याचिका दायर कर इन्हीं संशोधनों को चुनौती दी है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे ने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने वाली याचिका पर अगले साल जनवरी में सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की है.
लाइव लॉ के मुताबिक, चुनाव सुधार पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने बुधवार को मुख्य न्यायाधीश से इस अर्जी पर जल्द सुनवाई का अनुरोध किया था.
चुनावी बॉन्ड योजना को लागू करने के लिए मोदी सरकार ने साल 2017 में विभिन्न कानूनों में संशोधन किया था. एडीआर ने साल 2017 में दायर अपनी याचिका में इन्हीं संशोधनों को चुनौती दी है.
इसी साल लोकसभा चुनाव के दौरान 12 अप्रैल को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे प्राप्त चुनावी बॉन्ड की राशि और इसके दानकार्ताओं समेत सभी जानकारी सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को 30 मई तक दें.
इस सुनवाई के बाद से अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सूचीबद्ध नहीं किया.
एडीआर की याचिका में कहा गया है कि वित्त कानून 2017 और इससे पहले वित्त कानून 2016 में कुछ संशोधन किए गए थे और दोनों को वित्त विधेयक के तौर पर पारित किया गया था, जिनसे विदेशी कंपनियों से असीमित राजनीतिक चंदे के दरवाजे खुल गए और बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार को वैधता प्राप्त हो गई है. साथ ही राजनीतिक चंदे में पूरी तरह अपारदर्शिता है.
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इसके अलावा पिछले हफ्ते एडीआर ने हाल ही में चुनावी बॉन्ड को लेकर हुए कई खुलासों को आधार बनाकर अपनी याचिका में ही एक आवेदन दायर किया और योजना पर रोक लगाने की मांग की.
आवेदन में कहा गया है कि इससे राजनीतिक दलों को असीमित कॉरपोरेट चंदा प्राप्त करने के दरवाजे खुल गए हैं, जिसका देश के लोकतंत्र पर गंभीर परिणाम पड़ सकता है.
याचिका में कहा गया है, ‘चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान देने वालों के बारे में राजनीतिक दलों को व्यक्ति या कंपनी का खुलासा करने की जरूरत नहीं है. चूंकि बॉन्ड को भुनाने के लिए राजनीतिक दलों के सामने धारक को पेश करना पड़ता है इसलिए दल जानेंगे कि उन्हें कौन चंदा दे रहा है.’
याचिका में कहा गया है, ‘केवल आम आदमी को पता नहीं होगा कि कौन किस पार्टी को चंदा दे रहा है. इस प्रकार चुनावी बॉन्ड राजनीतिक चंदे में बेनामी लेन-देन को बढ़ावा देगा.’
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मालूम हो कि पिछले कुछ दिनों से चुनावी बॉन्ड के संबंध में कई खुलासे सामने आए हैं जिसमें ये पता चला है कि आरबीआई, चुनाव आयोग, कानून मंत्रालय, आरबीआई गवर्नर, मुख्य चुनाव आयुक्त और कई राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इस योजना पर आपत्ति जताई थी.
हालांकि वित्त मंत्रालय ने इन सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को पारित किया. इस बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों की पहचान बिल्कुल गुप्त रहती है.
आरबीआई ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी. इससे मनी लॉन्ड्रिंग को प्रोत्साहन मिलेगा और केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा.
वहीं, चुनाव आयोग और कई पूर्व चुनाव आयुक्तों ने इलेक्टोरल बॉन्ड की कड़ी आलोचना की है. चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामा दायर कर कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड पार्टियों को मिलने वाले चंदे की पारदर्शिता के लिए खतरनाक है.
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आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि जब चुनावी बॉन्ड योजना का ड्राफ्ट तैयार किया गया था तो उसमें राजनीति दलों एवं आम जनता के साथ विचार-विमर्श का प्रावधान रखा गया था. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक के बाद इसे हटा दिया गया.
इसके अलावा चुनावी बॉन्ड योजना का ड्राफ्ट बनने से पहले ही भाजपा को इसके बारे में जानकारी थी. बल्कि मोदी के सामने प्रस्तुति देने से चार दिन पहले ही भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव ने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर चुनावी बॉन्ड योजना पर उनकी पार्टी के सुझावों के बारे में बताया था.