लंदन स्थित वैश्विक सूचना प्रदाता आईएचएस मार्किट ने कहा कि सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए किए गए उपायों का असर दिखने में कुछ समय लग सकता है.
नई दिल्ली: चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि दर पांच प्रतिशत से कुछ नीचे रह सकती है. एक रिपोर्ट में यह आशंका व्यक्त की गई है.
लंदन स्थित वैश्विक सूचना प्रदाता आईएचएस मार्किट ने कहा कि सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए किए गए उपायों का असर दिखने में कुछ समय लग सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक , ‘सरकारी बैंकों के बही खाते पर गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) के बोझ का स्तर अधिक है, जिससे ऋण देने की उनकी क्षमता प्रभावित हो रही है. वित्तीय क्षेत्र की कमजोरी का देश की आर्थिक वृद्धि दर पर दबाव दिखता रहेगा.’
चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर घटकर 4.5 प्रतिशत के छह साल के निचले स्तर पर आ गई है. इससे पिछली तिमाही में वृद्धि दर पांच प्रतिशत रही थी जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में यह सात प्रतिशत थी.
आईएचएस मार्किट की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के कारण भी कुछ वाणिज्यिक बैंकों के बही खाते पर असर पड़ सकता है. यह ऋण के विस्तार पर और प्रतिकूल असर डालेगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की एनपीए के ऊंचे स्तर की वजह से उनका नया ऋण प्रभावित होगा.
आईएचएस ने कहा, ‘सितंबर तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रहने का असर पूरे वित्त वर्ष की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर पर पड़ सकता है और इसके पांच प्रतिशत से कुछ नीचे रहने की आशंका है.’
उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक ने भी 2019-20 में देश की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 6.1 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘आर्थिक विकास की गति में तेज गिरावट के साथ भारत सरकार विनिर्माण उत्पादन को बढ़ाने और निवेश चक्र में तेजी लाने के लिए अतिरिक्त वित्तीय उपायों को लागू करने के लिए बढ़ते दबाव का सामना करेगी. इस तरह के उपायों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं जैसे सड़क, रेलवे, और बंदरगाहों के साथ-साथ शहरी बुनियादी ढांचा जैसे किफायती आवास और अस्पताल पर त्वरित सरकारी खर्च शामिल हो सकते हैं.’
आईएचएस ने कहा कि सबसे कमजोर सेक्टर ऑटो मैन्युफैक्चरिंग रहा है, जिसमें सितंबर में आउटपुट 24.8 फीसदी घटा है. रिपोर्ट में कहा गया, ‘पिछले 12 महीनों में उत्पादन और वितरण क्षेत्रों में सैकड़ों ऑटो सेक्टर के श्रमिकों के साथ भारतीय ऑटो क्षेत्र संकट में पड़ गया है.’
पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण चिंता यह भी है कि सितंबर 2019 में यह 20.7 प्रतिशत कम था. रिपोर्ट में कहा गया, ‘यह दर्शाता है कि भारत का निवेश चक्र एक गंभीर मंदी का सामना कर रहा है, जैसा कि सितंबर तिमाही के दौरान निश्चित निवेश की वृद्धि और धीमी हुई है.’
रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘जून तिमाही में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि के मुकाबले सितंबर तिमाही में निर्माण क्षेत्र की वृद्धि भी 3.3 प्रतिशत की रफ्तार से धीमी रही है.’
आईएचएस ने कहा कि निजी खपत में भी पिछली तिमाही की तुलना में मामूली वृद्धि हुई है, हालांकि पिछले दो वित्तीय वर्षों की तुलना में यह काफी धीमी गति से जारी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)