भारतीय लोकसभा में पारित किए गए नागरिकता संशोधन विधेयक पर पाकिस्तान ने कहा है कि इसके पीछे बहुसंख्यक एजेंडा है. इस विधेयक ने आरएसएस-भाजपा की मुस्लिम विरोधी मानसिकता को दुनिया के सामने ला दिया है.
इस्लामाबाद: भारतीय लोकसभा में तमाम आपत्तियों और कई राज्यों में विरोध के बीच नागरिकता संशोधन विधेयक सोमवार देर रात को सदन में पारित कर दिया गया. विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के चलते भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि वे इसकी कड़ी निंदा करते हैं.
We strongly condemn Indian Lok Sabha citizenship legislation which violates all norms of int human rights law & bilateral agreements with Pak. It is part of the RSS "Hindu Rashtra" design of expansionism propagated by the fascist Modi Govt. https://t.co/XkRdBiSp3G
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) December 10, 2019
इस बारे में प्रकाशित एक खबर साझा करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने ट्विटर पर लिखा, ‘हम भारतीय लोकसभा में पेश किए गए नागरिकता विधेयक, जो सभी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के सभी नियमों और पाकिस्तान के साथ हुए द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन है, की कड़ी निंदा करते है. यह फासीवादी मोदी सरकार द्वारा प्रचारित आरएसएस के ‘हिंदू राष्ट्र’ के कब्जाने वाली योजना का हिस्सा है.’
पड़ोसी देशों में दखल का ‘दुर्भावनापूर्ण इरादा है नागरिकता विधेयक: पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय
इससे पहले पाकिस्तान ने भारत के नागरिकता संशोधन विधेयक को ‘प्रतिगामी एवं पक्षपातपूर्ण’ बताया और इसे नई दिल्ली का पड़ोसी देशों के मामलों में ‘दखल’ का ‘दुर्भावनापूर्ण इरादा’ बताया था.
सोमवार देर रात लोकसभा में विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने मध्य रात्रि के बाद एक बयान जारी किया.
इसमें कहा गया है, ‘हम इस विधेयक की निंदा करते हैं. यह प्रतिगामी और भेदभावपूर्ण है और सभी संबद्ध अंतरराष्ट्रीय संधियों और मानदंडों का उल्लंघन करता है. यह पड़ोसी देशों में दखल का भारत का दुर्भावनापूर्ण प्रयास है.’
आगे कहा गया कि इस कानून का आधार झूठ है और यह धर्म या आस्था के आधार पर भेदभाव को हर रूप में खत्म करने संबंधी मानवाधिकारों की वैश्विक उद्घोषणा और अन्य अंतरराष्ट्रीय संधियों का पूर्ण रूप से उल्लंघन करता है.
वक्तव्य के मुताबिक, ‘लोकसभा में लाया गया विधेयक पाकिस्तान और भारत के बीच हुए दोनों देशों के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अधिकारों से जुड़े समझौते समेत विभिन्न द्विपक्षीय समझौतों का भी पूर्ण रूप से विरोधाभासी है.’
भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में विधेयक पेश करते हुए यह स्पष्ट किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में किसी भी धर्म के लोगों को डरने की जरूरत नहीं है. उन्होंने जोर देकर कहा था कि इस विधेयक से उन अल्पसंख्यकों को राहत मिलेगी जो पड़ोसी देशों में अत्याचार का शिकार हैं.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार की ओर से लाया गया यह विधेयक ‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा को वास्तविक रूप देने की दिशा में एक प्रमुख कदम है, जिस अवधारणा को कई दशकों से दक्षिणपंथी हिंदू नेताओं ने पालापोसा.
इस वक्तव्य में कहा गया कि यह विधेयक क्षेत्र में कट्टरपंथी ‘हिंदुत्व विचारधारा और प्रभावी वर्ग की महत्वकांक्षाओं’ का विषैला मेल है और धर्म के आधार पर पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में दखल की स्पष्ट अभिव्यक्ति है. पाकिस्तान इसे पूरी तरह से अस्वीकार करता है.
इसमें कहा गया, ‘भारत का यह दावा भी झूठा है जिसमें वह खुद को उन अल्पसंख्यकों का घर बताता है जिन्हें पड़ोसी देशों में कथित तौर पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है.’
विदेश मंत्रालय ने कहा कि कश्मीर में भारत की कार्रवाई से 80 लाख लोग प्रभावित हुए है और इससे सरकारी नीतियों का पता चलता है.
वक्तव्य के मुताबिक विधेयक ने ‘लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के दावों के खोखलेपन को उजागर किया है. इसके पीछे बहुसंख्यक एजेंडा है और इसने आरएसएस-भाजपा की मुस्लिम विरोधी मानसिकता को विश्व के समक्ष ला दिया है.’
इससे पहले भारतीय लोकसभा में सोमवार सुबह पेश किए गए इस विधेयक पर तकरीबन सात घंटे चर्चा हुई, जहां विपक्ष के नेताओं ने इसे असंवैधानिक बताया और कहा कि यह ‘दूसरे बंटवारे’ की तरह है.
इस दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह विधेयक लाखों करोड़ों शरणार्थियों के यातनापूर्ण नरक जैसे जीवन से मुक्ति दिलाने का साधन बनने जा रहा है. ये लोग भारत के प्रति श्रद्धा रखते हुए हमारे देश में आए, उन्हें नागरिकता मिलेगी. यह विधेयक किसी धर्म के खिलाफ भेदभाव वाला नहीं है और तीन देशों के अंदर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए है जो घुसपैठिये नहीं, शरणार्थी हैं.
इससे पहले उन्होंने विधेयक पेश करते हुए कहा था, ‘अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान ऐसे राष्ट्र हैं जहां राज्य का धर्म इस्लाम है. आजादी के बाद बंटवारे के कारण लोगों का एक दूसरे के यहां आना जाना हुआ. इस समय ही नेहरू-लियाकत समझौता हुआ, जिसमें एक दूसरे के यहां अल्पसंख्यकों को सुरक्षा की गारंटी देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई थी.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे यहां तो अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान की गई लेकिन अन्य जगह ऐसा नहीं हुआ. हिंदुओं, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा.’
उन्होंने कहा कि नेहरू-लियाकत समझौता काल्पनिक था और विफल हो गया और इसलिए विधेयक लाना पड़ा. उन्होंने कहा कि नेहरू-लियाकत समझौते का भारत ने तो गंभीरता से पालन किया, लेकिन पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर लगातार अत्याचार होते रहे. वहां बीते 72 सालों में अल्पसंख्यकों की आबादी में बड़ी गिरावट आई जबकि भारत में स्थिति उलट है.
उन्होंने बताया कि 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23 प्रतिशत थी. 2011 में यह केवल 3.7 प्रतिशत रह गई. बांग्लादेश में 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 22 प्रतिशत थी, जो 2011 में कम होकर 7.8 प्रतिशत हो गई.
शाह ने कहा, ‘मैं दोहराना चाहता हूं कि देश में किसी शरणार्थी नीति की जरूरत नहीं है. भारत में शरणार्थियों के संरक्षण के लिए पर्याप्त कानून हैं.’
शाह ने कहा, ‘मैं सदन के माध्यम से पूरे देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि यह विधेयक कहीं से भी असंवैधानिक नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता. अगर इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर नहीं होता तो मुझे विधेयक लाने की जरूरत ही नहीं पड़ती.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)