सार्वजनिक क्षेत्र के तेल उपक्रम भारत पेट्रोलियम निगम लिमिटेड (बीपीसीएल) के अधिकारियों का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा कंपनी का निजीकरण करना देश के लिए आत्मघाती साबित होगा.
नई दिल्ली: सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारत पेट्रोलियम निगम लिमिटेड (बीपीसीएल) के अधिकारियों ने देश की दूसरी सबसे बड़ी तेल कंपनी के निजीकरण के फैसले का सोमवार को विरोध किया. अधिकारियों की यूनियन का कहना है कि 9 लाख करोड़ रुपये मूल्य की बेशकीमती कंपनी को कौड़ियों के दाम पर बेचा जा रहा है.
फेडरेशन ऑफ ऑयल पीएसयू ऑफिसर्स (एफओपीओ) और कन्फेडरेशन ऑफ महारत्न कंपनीज (सीओएमसीओ) ने नई दिल्ली में हुए एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार अत्यधिक मुनाफे वाली बीपीसीएल का निजीकरण कर ‘सोने का अंडा देने वाली’ कंपनी की हत्या कर रही है.
इन संगठनों का दावा है कि 70,000 से अधिक कर्मचारी उनसे जुड़े हैं.
एफओपीओ और सीओसीओ के संयोजक मुकुल कुमार ने कहा, ‘बीपीसीएल की संपत्ति के व्यापक मूल्यांकन से पता चलता है कि कंपनी का सही मूल्यांकन 9 लाख करोड़ रुपये होगा. जबकि सोमवार को बीपीसीएल का बाजार पूंजीकरण 1.06 लाख करोड़ रुपये रहा है. सामान्य तौर पर प्रबंधन नियंत्रण बाजार पूंजीकरण के ऊपर 30 से 40 प्रतिशत प्रीमियम के साथ दिया जाता है. अगर 100 प्रतिशत से अधिक प्रीमियम भी कंपनी पर मिलता है तो भी 4.46 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हो सकता है.’
उन्होंने कहा कि अधिकारियों की यूनियन निजी प्रतिस्पर्धा के खिलाफ नहीं है लेकिन उसे वर्षों में बनी संपत्ति प्लेट में सजाकर नहीं दे देनी चाहिए. उन्हें आने दीजिए और अपना बुनियादी ढांचा खड़ा करने दीजिए. हमें उनसे प्रतिस्पर्धा करने में कोई समस्या नहीं है.
उल्लेखनीय है कि पिछले महीने केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीपीसीएल में सरकार की पूरी 53.29 प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री को मंजूरी दी है. सरकार का कहना है कि रणनीतिक विनिवेश से जो राशि प्राप्त होगी, उसका उपयोग सामाजिक योजनाओं के वित्त पोषण में किया जाएगा जिससे लोगों को लाभ होगा.
बताया जा रहा है कि सरकार घरेलू ईंधन खुदरा कारोबार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाना चाहती है, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ाई जा सके. इसी के मद्देनजर सरकार बीपीसीएल में अपनी समूची 53.3 प्रतिशत हिस्सेदारी रणनीतिक भागीदार को बेचने की तैयारी कर रही है.
बीपीसीएल के निजीकरण से सरकार को 1.05 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य में से कम से कम एक-तिहाई प्राप्त करने में मदद मिलेगी.
कुमार ने कहा कि बर्मा शेल के राष्ट्रीयकरण के बाद बीपीसीएल बनी थी. उसके राष्ट्रीयकरण का कारण 1971 के युद्ध में सहयोग नहीं करना था.
यह पूछे जाने पर कि अधिकारी निजीकरण के विरोध में हड़ताल पर जाएंगे, उन्होंने मना किया. उन्होंने कहा कि वे इस संदर्भ में तथ्यों को लेकर एक ज्ञापन प्रधानमंत्री को देंगे.
उन्होंने कहा, ‘बीपीसीएल महारत्न कंपनी है और फार्चून 500 सूची में 15 साल से शामिल रही है. कंपनी केंद्र सरकार को 17,000 करोड़ रुपये से अधिक लाभांश देती है. उसके पास देश भर में 6,000 एकड़ जमीन है. इसमें से 750 एकड़ अकेले मुंबई में है जिसका भाव करोड़ों रुपये में है.’
कुमार ने कहा कि बीपीसीएल का निजीकरण करने से सरकार की सामाजिक प्रतिबद्धताओं पर भी कुठाराघात होगा. कंपनी का नया मालिक कंपनी में एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण की नीति को नहीं अपनाएगा. वह देश के दूरदराज इलाकों में भी सेवाएं नहीं देगा. वह उन क्षेत्रों में भी नहीं जाएगा जहां मुनाफा नहीं होता है.
उन्होंने कहा, ‘बीपीसीएल का यह निजीकरण देश के लिए आत्मघाती होगा.’
मालूम हो कि बीपीसीएल के अलावा केंद्र सरकार की ओर से तीन सार्वजनिक उपक्रमों– कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकॉर), नीपको तथा टीएचडीसी इंडिया में नियंत्रक हिस्सेदारी की बिक्री के संबंध में सलाहकारों को अनुबंधित करने के लिए बोलियां आमंत्रित की हैं.
इसके अलावा सरकार ने भारतीय शिपिंग कॉरपोरेशन के 63.75 प्रतिशत हिस्से को बेचने की भी मंजूरी दे दी है. अनुमान के मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र के इन पांचों उपक्रमों- बीपीसीएल, कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, नीपको, टीएचडीसी इंडिया और भारतीय शिपिंग कॉरपोरेशन के विनिवेश से सरकारी खजाने में अनुमानत: 60,000 करोड़ रुपये आएंगे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)