तीसरे दिन हिंसक हुआ किसानों का आंदोलन, लूट, पत्थरबाज़ी, तोड़फोड़

मध्य प्रदेश के कई इलाक़ों में हिंसा, मंडी लूटी, दुकानों में तोड़फोड़, महाराष्ट्र में सरकार का ऋण माफ़ी का ऐलान लेकिन जारी रहेगा आंदोलन.

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मध्य प्रदेश के कई इलाक़ों में हिंसा, मंडी लूटी, दुकानों में तोड़फोड़, महाराष्ट्र में सरकार का ऋण माफ़ी का ऐलान लेकिन जारी रहेगा आंदोलन.

Nashik: Farmers throwing onions and other vegetables on the road during their state-wide strike over various demands in Nasik, Maharashtra on Thursady. PTI Photo (PTI6_1_2017_000201B)
नासिक में प्रदर्शन के दौरान किसानों ने सड़क पर प्याज़ फेंक दिए. (फोटो: पीटीआई)

महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरे किसानों के आंदोलन का आज चौथा दिन है. आंदोलन के तीसरे दिन यानी तीन जून को मध्य प्रदेश में जगह जगह हिंसा की घटनाएं हुईं. जबकि महाराष्ट्र में देवेंद्र फडनवीस से किसान नेताओं की मुलाक़ात के बाद आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर दी गई. इस घोषणा के बाद आंदोलन में फूट पड़ गई. कुछ किसानों ने आंदोलन को जारी रखने की घोषणा की है.

शनिवार को भी महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसानों ने भारी मात्रा में दूध, फल और सब्ज़ियां सड़क पर फेंक दीं. इससे दोनों राज्यों की सरकारें बेहद दबाव में आ गई हैं क्योंकि सब्जियों, फलों व दूध के दाम दोगुने बढ़ गए हैं और इनकी ख़ासी किल्लत हो गई है.

फल-सब्जियों के दाम बढ़े, भारी किल्लत

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, उपज का सही मूल्य नहीं मिलने के ख़िलाफ़ पश्चिमी मध्य प्रदेश में चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन के दूसरे दिन शनिवार को धार ज़िले के सरदारपुर में मारपीट, आगजनी एवं तोड़फोड की घटनाएं हुईं जबकि पश्चिमी मध्य प्रदेश में अनाज, दूध और फल-सब्जियों की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई वहीं प्रदेश के अन्य भागों में इसका मामूली असर पड़ा.

किसान खेती का वाजिब दाम न मिलने सहित अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं.

इंदौर से मिली रिपोर्ट के अनुसार इंदौर, उज्जैन, शाजापुर, आगरमालवा एवं धार सहित पश्चिमी मध्य प्रदेश मेें किसानोें के आंदोलन के कारण आज अनाज, दूध और फल-सब्जियों की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई. कुछ स्थानों पर पुलिस और प्रशासन के साये में दूध और सब्जियों की बिक्री करायी गयी.

शनिवार को इंदौर में पुलिस और प्रदर्शन कर रहे किसानों के बीच झड़पें हुईं. पत्रिका अख़बार के मुताबिक, किसानों ने दो पुलिसकर्मियों की पिटाई कर दी. किसानों ने राजेंद्रनगर थाने को घेर लिया. चोइथराम मंडी और बिजलपुर में ढाई से तीन घंटे तक पत्थर चले. किसानों के जवाब में पहले पुलिस ने भी पत्थर फेंके फिर आंसू गैस के गोले दागे.’

झड़प, पथराव, लूट, तोड़फोड़

अख़बार ने फ्रंट पेज पर छपी ख़बर में लिखा है, ‘पत्थरबाजी में चार पुलिसकर्मी घायल हो गए. 200 से ज्यादा किसानों ने साथियों पर कार्रवाई करने के विरोध में कनाड़िया थाने का घेराव किया. सांवेर थाना क्षेत्र में रोड पर आलू बिखेर दिए, जिससे राहगीरों को ख़ासी परेशानी हुई. पुलिस ने किसानों को केंद्रीय कृषि मंत्री का पुतला जलाने से रोका तो किसानों ने पुलिस पर पथराव कर दिया, जिसमें दो पुलिसकर्मी घायल हो गए.’

दैनिक भास्कर की ख़बर के मुताबिक, ‘तीसरे दिन शनिवार को भी किसान आंदोलन उग्र रहा. उज्जैन के नागदा में तो प्रदर्शनकारी सब्जी मंडी में घुस गए. यहां 300 दुकानों में तोड़फोड़ की. ठेले पलट दिए. सब्जियां और फल लूट लिए. सब्जी बेचने वाली महिला व्यापारियों से मारपीट की. कुछ विक्रेताओं का गल्ला भी लूटा.’

धार ज़िले में प्रदर्शनकारियों ने वाहन फूंके. (फोटो: न्यूज़ 18 के वीडियो फुटेज से)
धार ज़िले में प्रदर्शनकारियों ने वाहन फूंके. (फोटो: न्यूज़ 18 के वीडियो फुटेज से)

मध्य प्रदेश के कई इलाक़ों में हिंसा की ख़बरें हैं. वेबदुनिया के मुताबिक, ‘धार ज़िले के सरदारपुर कस्बे में किसानों ने 6 वाहनों में आग लगा दी. रतलाम ज़िले के ताल में गोली चलने की ख़बर है. झाबुआ ज़िले में सब्ज़ी विक्रेताओं और किसानों के बीच झड़प हुई.’ पूरे प्रदेश से हिंसा, आपूर्ति रोकने और कृषि उत्पादों को सड़क पर फेंकने की ख़बरें हैं.

शहर और ग्राम बंद का ऐलान

दैनिक भास्कर की ख़बर के अनुसार, ‘खाचरौद में किसानों ने लोडिंग वाहन रोक लिए. उसमें से टमाटर निकालकर सड़क पर फेंक दिए. पुराने बस स्टैंड की दुकानें बंद करा दी. घटना के बाद प्रशासन जागा, वीडियो रिकार्डिंग कराई और दुकानें खुलवाईं. शुजालपुर में आंदोलन के नाम पर उपद्रवियों ने दूध-सब्जी बेचने वालों से हाथापाई की. कुछ स्थानों पर तोड़फोड़ भी की. दुकानों से घी, दूध और मावा सड़क पर फेंक दिया. पुलिस ने 25 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया है. शाजापुर में किसानों ने रैली निकालकर रविवार को शहर बंद का ऐलान किया है.’

अख़बार की मानें तो ‘भारतीय किसान संघ के मप्र-छग क्षेत्रीय संगठन मंत्री शिवकांत दीक्षित ने घोषणा की कि रविवार से गांव से कोई चीज़ शहर नहीं भेजी जाएगी. अब ग्राम बंद किया जाएगा. दूध, सब्जियां के साथ अन्य उपज भी तब तक रोकेंगे, जब तक सरकार मांगों को नहीं मानती.’

पुलिस की मदद से आंशिक आपूर्ति

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, ‘तीन दिनों से जारी आंदोलन के मद्देनज़र इंदौर ज़िले में 500 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की तैनाती की मदद से शनिवार को दूध और सब्जियों की आपूर्ति कराई गई. हालांकि, ज़रूरत के मुक़ाबले आपूर्ति कम होने से ग्राहकों की परेशानियां दूर नहीं हुईं.’

Aurangabad: Farmers throw vegetables on a road during their state-wide protest over various demands in Aurangabad on Thursday. PTI Photo (PTI6_1_2017_000215A)
औरंगाबाद में विभिन्न मांगों को लेकर प्रदर्शन के दौरान किसानों ने सब्जियों को सड़कों पर फेंक दिया. (फोटो: पीटीआई)

पुलिस उप महानिरीक्षक हरिनारायणचारी मिश्र ने बताया कि ज़िले के गांवों से शहर के बीच के रास्तों पर 500 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई. पुलिस को यह तैनाती इसलिए करनी पड़ी, क्योंकि आंदोलनकारी किसान तीन दिन में शहर पहुंचने वाली दूध की गाडि़यों को बलपूर्वक रोककर लाखों लीटर दूध सड़कोें पर बहा चुके हैं. आंदोलनकारी किसान शहर आने वाली सब्जियों की बड़ी खेप भी सड़कों पर बिखेर चुके हैं.’

ठप पड़ा कारोबार

बहरहाल, पुलिस और प्रशासन के तमाम प्रयासों के बावजूद शहर में अनाज, दूध और फल-सब्जियों की आपूर्ति सामान्य नहीं हो सकी है. आम ज़रूरत की इन चीज़ों की स्थानीय मंडियों में आंदोलनकारी किसान पिछले तीन से जमे हैं जिससे कारोबार ठप पड़ा है.

किसानों ने अपनी 20 सूत्रीय मांगों को लेकर एक से 10 जून तक आंदोलन की घोषणा की है. इनमें स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक आलू-प्याज समेत सभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने, सभी कृषि उपज मंडियों में एमएसपी से नीचे ख़रीदी नहीं किए जाने को क़ानूनी रूप से बाध्यकारी बनाये जाने, कृषि ऋणों की माफ़ी और किसानों की सिंचित व बहुफ़सलीय कृषि भूमि का अधिग्रहण नहीं किए जाने की मांग शामिल है. मध्य प्रदेश के किसानों ने अपनी मांगों को लेकर एक से 10 जून तक आंदोलन की घोषणा करते हुए अनाज, दूध और फल-सब्जियों की आपूर्ति रोक रखी है.

सरकार ने आंदोलन वापस लेने का अनुरोध किया

मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों से अनुरोध किया है कि वे अपने आंदोलन को खत्म कर दें. कृषि क्षेत्र की समस्याओं को हल करने के लिए सकारात्मक रवैया अपनाने का भरोसा दिलाते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने आज किसानों से अपील की है कि वे अपना आंदोलन समाप्त कर दें. उधर, आंदोलन के नेताओं ने 10 दिवसीय विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम पर अडिग रहते हुए मांग की कि राज्य सरकार किसानों को राहत पहुंचाने के लिये ठोस घोषणा करे.

मध्य प्रदेश प्रदेश के वित्त मंत्री जयंत मलैया ने आंदोलन मेें शामिल किसान संगठनों के करीब 25 आला नेताओं से इंदौर स्थित रेसीडेंसी कोठी में लम्बी चर्चा की. चर्चा के बाद मलैया ने बताया, मैंने किसान नेताओं से विस्तारपूर्वक संवाद कर उनका पक्ष जाना. उनकी कुछ चिंताएं काफी हद तक ठीक हैं. मैंने उनसे निवेदन किया है कि किसानों का आंदोलन समाप्त किया जाए. मैंने आंदोलन से जुड़े किसान नेताओं के सामने प्रस्ताव रखा है कि अगर वे चाहें, तो अपनी मांगों को लेकर सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात कर सकते हैं.

दूसरी तरफ महाराष्ट्र के किसानों ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मिलने के बाद शनिवार को अपनी हड़ताल वापस ले ली. मुख्यमंत्री ने उनकी मांगों को पूरा करने के लिए कई क़दम उठाने का वादा किया है.

महाराष्ट्र में आंदोलन में फूट

मुख्यमंत्री के निमंत्रण पर पुंटाम्बे गांव के किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे शुक्रवार की रात मिला था. फडणवीस ने करीब चार घंटे की चर्चा के बाद अपने ट्विटर अकाउंट के ज़रिए फ़ैसले का ऐलान किया. फडणवीस ने कहा, हड़ताल वापस ले ली गई है और अब सरकार के ख़िलाफ़ कोई हिंसक प्रदर्शन नहीं होना चाहिए.

हालांकि, आंदोलन वापस लेने की घोषणा से किसानों में फूट पड़ गई है. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक, ‘मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने किसानों का 30,000 करोड़ का क़र्ज़ माफ़ करने की घोषणा की है. यह राज्य में अब तक की सबसे बड़ी क़र्ज़ माफ़ी होगी. लेकिन इसका किसानों पर ज़्यादा असर नहीं हुआ. किसानों ने अपना आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया है.’

अख़बार के मुताबिक, ‘फडनवीस ने पत्रकारों से कहा कि 31 अक्टूबर, 2017 तक यह क़र्ज़ माफ़ी लागू होगी. इसके तहत छोटे और सीमांत किसान आएंगे, जिनके पास पांच एकड़ ज़मीनें हैं. राज्य में 1.36 करोड़ किसान हैं, जिनमें से 31 लाख 2012 से फ़सली ऋण नहीं ले पा रहे हैं. एक ही रास्ता है कि उनके क़र्ज़ माफ़ कर दिए जाएं.’

आंदोलन जारी रहेगा

फडनवीस के ऐलान के बाद किसानों के कई संगठनों ने ऐलान किया किसानों का आंदोलन जारी रहेगा. नासिक, अहमदनगर, पश्चिमी महाराष्ट्र और विदर्भ के किसान इसमें शामिल होंगे. सरकार के साथ किसान क्रांति नामक संगठन की मीटिंग हुई थी. बाक़ी किसानों का आरोप है कि उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया. शाम तक कई ज़िला कमेटियों ने सरकार के साथ कोर कमेटी की मीटिंग पर सवाल उठाए.’

नवभारत टाइम्स की ख़बर के अनुसार, ‘कर्ज माफी को लेकर सड़क पर उतरे किसानों के आंदोलन में शनिवार को फूट पड़ गई. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ किसान नेताओं की बैठक में जैसे ही हड़ताल वापस लेने की घोषणा हुई, वैसे ही किसानों के कुछ संगठनों ने नाराज़गी जताई. राज्यभर के किसानों को समझ में नहीं आ रहा था कि उनकी मांगों को लेकर क्या हुआ? भ्रम की स्थिति बनी रही. दोपहर 3 बजे के आस-पास महाराष्ट्र राज्य किसान सभा ने हड़ताल जारी रहने की घोषणा की.’

ख़बर के मुताबिक, ‘किसानों के आंदोलन का असर साग-सब्जी, दूध की सप्लाई पर पड़ा है. आपूर्ति कम होने से क़ीमतें बढ़ने लगी हैं. नवी मुंबई और लासलगांव के एपीएमसी मार्केट के अलावा पुणे समेत अन्य शहरों की सप्लाई पर हड़ताल का बेहद ही बुरा असर पड़ा. आंदोलन को लेकर 100 किसानों पर मामले दर्ज किए गए हैं. अब तक किसानों ने आंदोलन के दौरान हज़ारों लीटर दूध सड़कों पर बहा दिया और बड़ी मात्रा में सब्जियां सड़क पर फेंक दी हैं.’

किसानों को हो रहा घाटा

मध्य प्रदेश किसान सभा के अध्यक्ष जसविंदर सिंह ने बताया कि किसानों को उनके उत्पाद का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है. जितना पैसा वे अपनी फसल उगाने में लगा रहे हैं, उतना उन्हें उसे बेचने में नहीं मिल रहा है. इससे किसानों की हालत बहुत ख़राब हो गई है और वे क़र्ज़ के तले दबे हुए हैं.

सिंह ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ने गेहूं को न्यूनतम समर्थन मूल्य 1625 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है, लेकिन सरकार किसानों के गेहूं को इस कीमत पर नहीं ख़रीद रही है, जिसके कारण उन्हें अपने उत्पाद को 1200 रुपये से 1300 रुपये प्रति क्विंटल मजबूरी में बेचना पड़ रहा है. यही हाल किसान के द्वारा पैदा किए गए अन्य उत्पादों का है. प्याज एवं संतरे तो बहुत ही कम दाम मिलने के कारण किसानों को फेंकने पड़ रहे है.

आंदोलन के समर्थन में संघ परिवार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा भारतीय किसान संघ (बीकेएस) मध्य प्रदेश मेें किसानों के पिछले तीन दिन से जारी किसान आंदोलन के पक्ष में खुलकर सामने आ गया है. लेकिन इस संगठन ने स्पष्ट किया कि वह आंदोलन के दौरान होे रही हिंसक घटनाओं का समर्थन नहीं करता है.

बीकेएस के मालवा प्रांत (इंदौर-उज्जैन संभाग) के कोषाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण पटेल ने कहा, हम प्रदेश में शांतिपूर्ण ग्राम बंद और किसान आंदोलन का समर्थन करते हैं. लेकिन हम इस आंदोलन के दौरान सड़कों पर हो रही अराजक और हिंसक गतिविधियों के पक्ष में नहीं हैं.

उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार को खेती की लागत के मुताबिक प्याज और आलू का न्यूनतम समर्थन मूल्य जल्द तय करना चाहिए और सरकारी एजेंसियों के ज़रिये इस क़ीमत पर दोनों कृषि जिंसों की ख़रीद शुरू करनी चाहिए.’

प्रियंका चोपड़ा से मिलने का समय है, किसानों से मिलने का नहीं: कांग्रेस

महाराष्ट्र में चल रहे किसान आंदोलन के बीच कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुये कहा कि वह अपने व्यस्त कार्यक्रम में से बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा से मिलने का वक्त निकाल सकते हैं लेकिन किसानों से मुलाक़ात का वक़्त उनके पास नहीं है.

महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस समिति के सचिव शहजाद पूनावाला ने एक बयान में कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मोदीजी के पास प्रियंका चोपड़ा से मिलने का वक़्त है, लेकिन हमारे किसानों से मिलने का नहीं. महाराष्ट्र में उनके मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जी यमराज की तरह व्यवहार कर रहे हैं.

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उन्होंने कहा, कांग्रेस किसानों की मांग का समर्थन करती है. अगर उत्तर प्रदेश में क़र्ज़ माफ़ी की जा सकती है तो महाराष्ट्र में क्यों नहीं? प्रधानमंत्री मोदी ने द्विपक्षीय वार्ता और बैठकों के व्यस्त कार्यक्रम से कुुछ समय निकालकर 30 मई को बर्लिन में अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा से मुलाकात की थी.

पूनावाला ने कहा कि किसानों की हड़ताल से महाराष्ट्र के लोगों के साथ पूरा राष्ट्र प्रभावित होगा और इसलिए मोदी और फडणवीस को उनकी मांगों के प्रति गंभीरता दिखानी चाहिए.

न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करे मोदी सरकार: कांग्रेस

मध्य प्रदेश में किसानों के आंदोलन का समर्थन करते हुए कांग्रेस ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह आलू और प्याज समेत सभी प्रमुख फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करे.

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता जेपी धनोपिया ने संवाददाताओं से कहा, हम सूबे के आंदोलनरत किसानों के साथ हैं. मोदी सरकार को किसानों के हित में आलू, प्याज, टमाटर और अन्य प्रमुख फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना चाहिए. हम पहले भी सरकार से यह मांग कर चुके हैं. लेकिन सरकार किसानों की हितैषी होने का महज दिखावा करती हैै.

उन्होेंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में कृषि क्षेत्र का संकट बढ़ा है और किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)