प्रताड़ना के चलते पाक, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से भारत आने वालों का आंकड़ा सरकार के पास नहीं

गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में कहा कि चूंकि पाक, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में भारी संख्या में अल्पसंख्यक धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हैं, इसकी वजह से नागरिकता संशोधन विधेयक लाया गया है. इससे लाखों लोग लाभान्वित होंगे. हालांकि शाह का ये दावा सरकारी आंकड़ों पर खरा नहीं उतरता है.

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New Delhi: Home Minister Amit Shah speaks during the 49th Foundation Day celebrations of Bureau of Police Research and Development (BPR&D) at its headquarters in New Delhi, Wednesday, Aug 28, 2019. (PTI Photo/Vijay Verma)(PTI8_28_2019_000022B)
New Delhi: Home Minister Amit Shah speaks during the 49th Foundation Day celebrations of Bureau of Police Research and Development (BPR&D) at its headquarters in New Delhi, Wednesday, Aug 28, 2019. (PTI Photo/Vijay Verma)(PTI8_28_2019_000022B)

गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में कहा कि चूंकि पाक, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में भारी संख्या में अल्पसंख्यक धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हैं, इसकी वजह से नागरिकता संशोधन विधेयक लाया गया है. इससे लाखों लोग लाभान्वित होंगे. हालांकि शाह का ये दावा सरकारी आंकड़ों पर खरा नहीं उतरता है.

New Delhi: Home Minister Amit Shah speaks during the 49th Foundation Day celebrations of Bureau of Police Research and Development (BPR&D) at its headquarters in New Delhi, Wednesday, Aug 28, 2019. (PTI Photo/Vijay Verma)(PTI8_28_2019_000022B)
अमित शाह. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन विधेयक को लोकसभा से पारित कर दिया गया है और राज्यसभा में इसे लेकर जोर-शोर से बहस चल रही है. जहां सत्ता पक्ष इस विधेयक की खूबियां गिना रहा है वहीं विपक्ष के नेताओं ने इसे समानता के अधिकार का उल्लंघन और देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को तोड़ने की कोशिश एवं संविधान की भावना के साथ खिलवाड़ बताया है.

विपक्ष के नेताओं ने सवाल उठाया कि ये विधेयक किस आधार पर लाया गया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चितंबरम ने गृह मंत्री अमित शाह से पूछा कि क्या इस संबंध में कानून मंत्रालय और अटॉर्नी जनरल से उचित राय-सलाह की गई थी. उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि अगर ऐसा किया गया है तो सरकार उन सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक करे और अटॉर्नी जनरल को सदन में बुलाया जाए ताकि सांसद उनसे सवाल पूछ सकें.

नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन करने के लिए सरकार ने जो तर्के दिए हैं उसे लेकर कई सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं. इस विधेयक का प्रबल समर्थन करते हुए अमित शाह ने दावा किया कि धार्मिक आधार पर प्रताणित लाखों करोड़ों लोग इससे लाभान्वित होंगे. हालांकि शाह का ये दावा तथ्यों की बुनियाद पर खरा नहीं उतरता है.

नागरिकता मांगने वालों की संख्या बहुत कम

कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा ने 25 जुलाई 2018 को राज्यसभा में गृह मंत्री से पूछा था कि भारत में रह रहे विभिन्न देशों से आए कुल कितने लोगों ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया है.

इस पर तत्कालीन गृह राज्यमंत्री किरन रिजिजू ने बताया कि उस समय तक इस तरह के कुल सिर्फ 4044 आवेदन लंबित थे. इसमें से 1085 आवेदन गृह मंत्रालय की प्रक्रिया के तहत लंबित थे और बाकी के 2959 मामले विभिन्न राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों के यहां लंबित थ.

इसमें से अफगानिस्तान से सिर्फ 687 आवेदन थे. इसके अलावा पाकिस्तान से कुल 2508 और बांग्लादेश से कुल 84 आवेदन लंबित थे. बांग्लादेश से ज्यादा अमेरिका से 101 लोगों, श्रीलंका से 71 लोगों और देशविहीन 195 लोगों ने भारतीय नागरिकता मांगी थी.

मालूम हो कि इस विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है. नागरिकता संशोधन विधेयक में उन मुसलमानों को नागरिकता देने के दायरे से बाहर रखा गया है जो भारत में शरण लेना चाहते हैं.

इसके अलावा बोरा ने यह भी पूछा कि नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों का धर्म-वार और देश-वार आंकड़ा दिया जाए. इस पर गृह मंत्रालय ने कहा कि केंद्रीय स्तर पर ऐसा कोई आंकड़ा तैयार नहीं किया जाता है.

कांग्रेस सांसद ने इसी सवाला में यह भी पूछा था कि 1990 से लेकर अब तक में भारतीय नागरिकता के लिए भारत आए लोगों का कुल आंकड़ा वर्ष-वार दिया जाए. इस पर किरन रिजिजू ने कहा कि मंत्रालय के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है.

मालूम हो कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस विधेयक को लेकर बार-बार यह दावा किया कि भारी संख्या में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोग भारतीय नागरिकता मांग रहा है. हालांकि सरकारी आंकड़ों से ही ये स्पष्ट हो जाता है कि खुद केंद्र पास इसे लेकर आंकड़ा नहीं है कि पिछले कुछ सालों में कुल कितने लोगों ने भारतीय नागरिकता मांगी है.

धार्मिक प्रताड़ना के शिकार लोगों पर कोई आधिकारिक रिपोर्ट नहीं

कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा ने ही 23 मार्च 2017 को राज्य सभा में पूछा था कि क्या सरकार के पास अफगानिस्तान और पाकिस्तान में 1947 के बाद और 1971 के बाद बांग्लादेश में किसी भी धार्मिक उत्पीड़न पर कोई रिपोर्ट है, जिसके लिए विभिन्न धर्मों के लोगों को शरण के लिए भारत आना पड़ा है.

इस पर तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने लिखित जवाब दिया कि इस मामले में आधिकारिक आकड़े नहीं हैं. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद पर इस पर सवाल उठाया कि अगर हमारे पर शरण मांगने वालों का उचित आंकड़ा नहीं है तो हम ये विधेयक किस आधार पर ला रहे हैं.

इस पर अमित शाह ने कहा कि चूंकि नागरिकता संशोधन विधेयक नहीं है इसलिए वे जाहिर नहीं कर पाते हैं कि वे शरणार्थी हैं. शाह ने दावा किया, ‘इस विधेयक के पारित होने के बाद लाखों-करोड़ों लोग नागरिकता प्राप्त कर सकेंगे.’

धार्मिक प्रताड़ना की वजह से भारत आने वालों की नहीं है स्पष्ट संख्या

इस विधेयक को लेकर सरकार का यह दावा है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान से प्रताणित होकर भारी संख्या में हिंदू इस देश में आए हैं. अमित शाह ने कई बार इसे लेकर दावा किया. हालांकि कि सरकारी आंकड़े उनके इन दावों की पुष्टि नहीं करते हैं.

23 नवंबर 2016 को असम से कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा ने राज्य सभा में पूछा कि 31 दिसम्बर, 2014 तक बांग्लादेश और पाकिस्तान से असम आने वाले बंगाली हिन्दुओं की कुल संख्या कितनी है.

इस पर गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने कहा कि बांग्लादेश और पाकिस्तान से असम में आए बंगाली हिन्दुओं की संख्या के आंकड़े अलग से नहीं रखे जाते हैं.

इन सब के अलावा इस साल जनवरी में आई संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक खूफिया एजेंसियों आईबी एवं रॉ ने इस विधेयक को लेकर गहरी चिंता जाहिर की थी.

आईबी के निदेशक ने समिति के सामने कहा था कि यह पहचानना संभव नहीं है कि कोई व्यक्ति धार्मिक उत्पीड़न के कारण आया है या नहीं. इसे साबित करना संभव नहीं है.

आईबी निदेशक ने आगे कहा कि जिन लोगों ने कोई दस्तावेज को प्रस्तुत किया है जो वे धार्मिक उत्पीड़न के कारण आए हैं, उन्हें विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय में साबित करना होगा. अगर उनके पास कोई दस्तावेज नहीं है तो उन्हें विदेशी न्यायाधिकरण में जाना होगा.

नागरिकता संशोधन विधेयक में उन मुसलमानों को नागरिकता देने के दायरे से बाहर रखा गया है जो भारत में शरण लेना चाहते हैं.

इस प्रकार भेदभावपूर्ण होने के कारण इसकी आलोचना की जा रही है और इसे भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बदलने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा रहा है. अभी तक किसी को उनके धर्म के आधार पर भारतीय नागरिकता देने से मना नहीं किया गया है.