सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दावा किया कि आरटीआई का इस्तेमाल लोग ब्लैकमेलिंग के लिए कर रहे हैं. हालांकि ख़ुद केंद्र सरकार ने पिछले साल लोकसभा में बताया था कि बड़े स्तर पर आरटीआई के दुरुपयोग का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने सूचना आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान बीते सोमवार को कहा कि वे सूचना के अधिकार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसका दुरुपयोग रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाने की जरूरत है.
जस्टिस बोबडे ने कहा, ‘जिन लोगों का किसी मुद्दे विशेष से किसी तरह का कोई सरोकार नहीं होता, वे भी आरटीआई दाखिल कर देते हैं. यह एक तरह से आपराधिक धमकी जैसा है, जैसे ब्लैकमेल करना.’ चीफ जस्टिस ने कहा, कुछ लोग कहते हैं कि वे आरटीआई एक्टिविस्ट हैं, क्या यह कोई पेशा है?
एसए बोबडे के इस बयान को लेकर कई कार्यकर्ताओं, पूर्व सूचना आयुक्तों समेत अन्य लोगों ने आपत्ति जताई है. इनका कहना है कि चीफ जस्टिस किस रिपोर्ट, स्टडी या प्रमाण के आधार पर ये दावा कर रहे हैं कि आरटीआई का इस्तेमाल ब्लैकमेल करने के लिए किया जाता है.
खुद केंद्र सरकार ने पिछले साल 19 दिसंबर को लोकसभा में बताया था कि बड़े स्तर पर आरटीआई के दुरुपयोग का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है और इस संबंध में केंद्र को जानकारी नहीं है.
प्रधानमंत्री कार्यालय और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा था कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के दुरुपयोग की कोई विशिष्ट जानकारी भारत सरकार के संज्ञान में नहीं लाई गई है.
सिंह ने कहा था कि दुरुपयोग से बचने के लिए आरटीआई कानून में पहले से ही व्यवस्था दी गई है. उन्होंने कहा था, ‘आरटीआई के तहत जानकारी मांगने का अधिकार निरंकुश नहीं है. दुरुपयोग से बचने के लिए आरटीआई एक्ट में धारा-8 है जो कि कुछ सूचनाओं का खुलासा करने से छूट प्रदान करता है.’
उन्होंने आगे कहा था, ‘इसके अलावा धारा-9 है जो कि कुछ मामलों में सूचना नहीं देने का आधार है, धारा-11 के थर्ड पार्टी से संबंधित जानकारी नहीं दी जा सकती और धारा-24 के मुताबिक ये कानून कुछ संगठनों पर लागू नहीं होता है.’
पूर्व सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने जस्टिस बोबडे के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए लाइव लॉ में लिखे एक लेख में कहा, ‘कोर्ट को जस्टिस मैथ्यू के फैसले और आरटीआई अधिनियम 2005 के लागू होने से पहले दिए गए अपने कई निर्णयों को पढ़ना चाहिए. अनुच्छेद 19(2) और संसद द्वारा पारित कानून के दिशा-निर्देश के तहत आरटीआई के दुरुपयोग पर लगाम लगाई गई है. सरकार द्वारा वैध काम करने में इसके कामकाज के प्रभावित होने का कोई उदाहरण नहीं है. आरटीआई सत्ता के भ्रष्ट या मनमाने कार्य करने वालों के लिए एक बाधा हो सकती है.’
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उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत आरटीआई नागरिकों का मौलिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों में ये माना गया है कि अनुच्छेद 19(1)(ए) में बोलने की आजादी, छापने का अधिकार और सूचना का अधिकार शामिल है.
आरटीआई के जरिये ब्लैकमेल करने के दावे पर उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति बोलता है तो वो किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ आरोप भी लगा सकता है. ये आरोप मीडिया में छपते भी हैं. इसकी वजह से कुछ हद तक हानि भी होती है. लेकिन पिछले 70 सालों में बोलने की आजादी और इसे छापने का दायरा बढ़ा है. किसी ने भी इसकी वजह से इस आजादी को सीमित करने की मांग नहीं की. ये आरोप नहीं लगाए गए कि बोलने की आजादी के वजह से ब्लैकमेलिंग बढ़ रही है.
गांधी ने आगे कहा, ‘लेकिन पिछले 14 सालों में ही सूचना का अधिकार के खिलाफ एक मजबूत धारणा तैयार की गई है. आरटीआई इस्तेमाल करने वालों को ब्लैकमेलर या धन उगाही करने वाला करार दिया जाता है.’
आरटीआई का इस्तेमाल कर एक नागरिक क्या कर सकता है
देश का कोई भी नागरिक सरकारी रिकॉर्ड में मौजूद सूचनाओं की जानकारी मांग सकता है. अगर इन रिकॉर्ड्स के जरिये गैरकानूनी या भ्रष्टाचार के कृत्य का खुलासा होता है तो कुछ लोगों को नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे आरोप लगाए जाते हैं कि कुछ लोग आरटीआई के जरिये ऐसी जानकारियां प्राप्त करते हैं और अवैध काम करने वालों को ब्लैकमेल करते हैं.
शैलेष गांधी ने कहा, ‘ऐसे ब्लैकमेलिंग की संभावना बिल्कुल हो सकती है लेकिन ये चीज बोल कर या छाप कर भी की जा सकता है.’
Extremely concerning comments by judges during hearing today- said there is misuse of #RTI & that it cant be an unbridled right.
RTI is subject to exemptions laid down in the law. Also, there is no evidence to show misuse of RTI. This was also stated by Minister in Parliament 👇 pic.twitter.com/8in73lEQ6t— Anjali Bhardwaj (@AnjaliB_) December 16, 2019
एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने कहा, ‘ये बेहद चिंता की बात है कि हमारे जज ऐसी टिप्पणी कर रहे हैं. सूचना देने से छूट प्राप्त सामग्री का उल्लेख पहले से ही कानून में किया गया है. इतना ही नहीं सरकार ने खुद संसद में कहा कि आरटीआई के दुरुपयोग के कोई साक्ष्य नहीं हैं.’
आरटीआई कानून को लेकर हुए संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा, ‘हमारे (नागरिक) पास ये सुविधा नहीं है कि हम सीलबंद लिफाफे में जानकारी प्राप्त कर सकें. हमारे पास एक ही रास्ता है कि हम आरटीआई के तहत जानकारी मांगे. आरटीआई आम जनता का कानून है. सूचना के दुरुपयोग का समाधान खुलेपन की संस्कृति है.’
Ofcourse we have seen ourselves – in the mirror every day. Since we don't have the privilege to receive information in "sealed covers", we have no recourse but to seek information under #RTI. The RTI is a peoples law. The solution to misuse of information is a culture of openness https://t.co/kMUX24j0nF
— Nikhil Dey (@nikhilmkss) December 16, 2019
आरटीआई का इस्तेमाल कर रिपोर्ट्स लिखने वाले कई पत्रकारों ने भी सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त की और मुख्य न्यायाधीश के बयान पर चिंता जाहिर की.
शैलेष गांधी का कहना है कि हमें इस पूरे मामले को एक अलग नजरिये से देखने की जरूरत है. उन्होंने कहा, हमारा समाज गलत काम या भ्रष्टाचार करने वालों के बजाय जेबकतरों से ज्यादा चिंतित होता है. ये नजरिया सही नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘समाज और सरकार का काम होना चाहिए कि वे ऐसे व्यक्तियों को रोकें जो गलत कार्य या भ्रष्ट कार्य में संलग्न हैं. सतर्कता विभाग का पूरा तंत्र, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, सीबीआई, सीवीसी और लोकपाल इसे रोक नहीं पा रहा है. कई आरटीआई यूजर्स ऐसी चीजों का खुलासा करते हैं और सार्वजनिक रूप से जानकारी साझा करते हैं. कुछ लोग इस जानकारी का गलत तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन हमारी चिंता गलत तरीके से समाज को लूटने वाले भ्रष्ट लोगों को लेकर होना चाहिए.’
हमें ये स्वीकार करना चाहिए हमारे सबसे अच्छे निगरानीकर्ता आरटीआई का इस्तेमाल करने वाले नागरिक हैं जिन्होंने कई बड़े घोटालों को उजागर किया है.
देश भर में सूचना आयुक्तों के पदों को जल्द भरने की मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश द्वारा ऐसा बयान देने पर उनसे कहा कि वे आरटीआई का दुरुपयोग रोकने का समाधान लेकर कोर्ट के सामने आएंगे.
चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने वकील प्रशांत भूषण की इस बात पर गौर किया कि 15 फरवरी के आदेश के बावजूद सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं हुई. बेंच ने सरकारों को निर्देश दिया कि वे आज से नियुक्तियां करना शुरू कर दें.
कोर्ट ने अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया कि वे दो हफ्ते के भीतर उस सर्च कमेटी के सदस्यों के नाम सरकारी वेबसाइट पर डालें, जिन्हें सीआईसी के सूचना आयुक्त चुनने की जिम्मेदारी दी गई है. कोर्ट ने कहा कि अगर इस आदेश का पालन नहीं होता है तो अवमानना की कार्रवाई की जाएगी. इस बेंच में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल थे.
केंद्र की तरफ से पेश वकील ने कहा कि नियुक्तियां करने के लिए सर्च कमेटी पहले ही बनाई जा चुकी है. कोर्ट में दायर याचिका में अदालत से यह गुजारिश की गई थी कि वह निर्धारित समय के भीतर पारदर्शी तरीके से सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के निर्देश जारी करे.
शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) और राज्य सूचना आयोगों (एसआईसी) में तीन महीने के भीतर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करने का निर्देश दिया है.