नागरिकता संशोधन कानून के विरोध को लेकर पूरे उत्तर प्रदेश में धारा 144 लागू

राज्य के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने ट्वीट कर जानकारी दी कि 19 दिसंबर के दिन लोगों को जुटने की कोई इजाजत नहीं दी गई है.

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Aligarh: People gather at the Eidgah to protest against the alleged police action on AMU students who were protesting over Citizenship Amendment Act, in Aligarh, Monday, Dec. 16, 2019. (PTI Photo) (PTI12_16_2019_000261B)

राज्य के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने ट्वीट कर जानकारी दी कि 19 दिसंबर के दिन लोगों को जुटने की कोई इजाजत नहीं दी गई है.

Aligarh: People gather at the Eidgah to protest against the alleged police action on AMU students who were protesting over Citizenship Amendment Act, in Aligarh, Monday, Dec. 16, 2019. (PTI Photo) (PTI12_16_2019_000261B)
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते लोग. (फाइल फोटो: पीटीआई)

लखनऊ: नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर पूरे उत्तर प्रदेश में धारा 144 लगा दी गई है. राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओपी सिंह ने ट्वीट कर जानकारी दी कि 19 दिसंबर के दिन लोगों को जुटने की कोई इजाजत नहीं दी गई है.

डीजीपी सिंह ने ट्वीट कर कहा, ’19 दिसंबर 2019 को पूरे प्रदेश में धारा 144 लागू रहेगी और किसी भी सभा के लिए कोई अनुमति नहीं दी गई है. कृपया कोई भी व्यक्ति किसी भी सभा में भाग ना लें. माता-पिता से भी अनुरोध है कि वे अपने बच्चों की काउंसलिंग करें.’

वहीं यूपी पुलिस ने ट्वीट कर कहा, ‘सूचित किया जाता है कि पूरे उत्तर प्रदेश में धारा 144 लागू है. प्रशासन द्वारा 19.12.2019 को किसी भी प्रकार के सम्मेलन, जुलूस, प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी गई है. अत: ऐसे आयोजनों से दूर रहें और शांति बनाए रखने में सहयोग दें.’

विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून, 2019 को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

इस कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है. नागरिकता संशोधन विधेयक में उन मुसलमानों को नागरिकता देने के दायरे से बाहर रखा गया है जो भारत में शरण लेना चाहते हैं.

इस प्रकार भेदभावपूर्ण होने के कारण इसकी आलोचना की जा रही है और इसे भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बदलने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा रहा है. अभी तक किसी को उनके धर्म के आधार पर भारतीय नागरिकता देने से मना नहीं किया गया था.