भारत ने संचार उपग्रह जीसैट-19 को ले जाने वाले सबसे वज़नी रॉकेट जीएसएलवी एमके थ्री का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया.
श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश): श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पर दूसरे लॉन्च पैड से शाम पांच बजकर 28 मिनट पर 43.43 मीटर लंबे रॉकेट का प्रक्षेपण किया गया और इसने देश के अब तक के सबसे अधिक 3,136 किलोग्राम वज़न वाले संचार उपग्रह जीसैट-19 को करीब 16 मिनट बाद अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर दिया.
भारत का सबसे वज़नी रॉकेट जीएसएलवी एमके थ्री 640 टन का है. इसे पूरी तरह से भारत में ही विकसित किया गया है.
इससे पहले 2300 किलोग्राम से वज़नी उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए दूसरे देशों का सहारा लेना पड़ता था. इस कामयाबी के साथ अंतरिक्ष में वैज्ञानिकों को भेजने का रास्ता भारत के लिए साफ हो गया है.
इस परियोजना को पूरा होने में तकरीबन 15 साल लगे हैं. जीसैट-19 को एक गेमचेंजर माना जा रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले दिनों में संचार और इंटरनेट की दुनिया में यह उपग्रह क्रांति ला सकता है.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चेयरमैन एएस किरन कुमार ने कहा, यह ऐतिहासिक दिन है. उन्होंने कहा कि प्रक्षेपण यान जीएसएलवी एमके थ्री ने जीसैट-19 को लक्षित कक्षा में स्थापित कर अपनी क्षमताओं का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया.
कुमार ने कहा, पहले प्रयास में यह बड़ी सफलता है और जीएसएलवी एमके थ्री ने अगली पीढ़ी के उपग्रह जीसैट-19 को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया. उन्होंने कहा, मैं पूरी टीम को बधाई देना चाहता हूं जिन्होंने 2002 से लेकर आज के इस प्रक्षेपण के लिए हर दिन लगातार काम किया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सफल प्रक्षेपण की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह भारत को अगली पीढ़ी के उपग्रह की क्षमता के नज़दीक ले जाता है. किरन कुमार ने कहा कि मोदी ने उन्हें फोन किया और उन्होंने सफल अभियान के लिए इसरो टीम के प्रत्येक सदस्य को बधाई दी.
जीसैट-19 को भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया गया. इससे भारत के संचार संसाधनों में वृद्धि होगी. जीएसएलवी का यह मिशन भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब तक 2,300 किलोग्राम से ज़्यादा वज़न वाले संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो को विदेशी प्रक्षेपकों पर निर्भर रहना पड़ता था.
जीएसएलवी एमके थ्री डी1 भू-स्थैतिक कक्षा में 4000 किलो तक के और पृथ्वी की निचली कक्षा में 10,000 किलो तक के पेलोड (या उपग्रह) ले जाने की क्षमता रखता है. यह प्रक्षेपण पूरी तरह से सफल है क्योंकि स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक इंजन के साथ तीन चरण वाले जीएसएलवी एमके थ्री के हर चरण का प्रदर्शन वैसा ही रहा जैसी योजना बनाई गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से सहयोग के साथ)