प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करने की मंज़ूरी दे दी है. विपक्ष ने इसे देशव्यापी एनआरसी की तरफ सरकार का पहला कदम बताया है.
नई दिल्ली: एनआरसी को लेकर हो रहे देशव्यापी विरोध के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने की मंजूरी दे दी है.
साथ ही कैबिनेट ने जनगणना 2021 की प्रक्रिया शुरू करने को भी मंजूरी दे दी है. देश की पूरी आबादी जनगणना प्रक्रिया के दायरे में आएगी जबकि एनपीआर अपडेशन असम को छोड़कर सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में किया जायेगा.
जनगणना प्रक्रिया पर 8754.23 करोड़ रुपये तथा एनपीआर अपडेशन के लिए 3941.35 करोड़ रुपये के खर्च को मंजूरी दी गयी है. एनपीआर की कवायद अगले वर्ष अप्रैल से शुरू होगी.
कैबिनेट के फैसलों के बाद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया, ‘भारत मे अभी ब्रिटिश जमाने के हिसाब से जनगणना होती है. इसमें सभी लोगों की गिनती मुद्दा होता है. इस बार अप्रैल-सितंबर 2020 तक लाखों लोगों के घर-घर जाकर 2021 तक तकनीक के इस्तेमाल से पूरी प्रक्रिया को आसान किया जाएगा. ऐप तैयार किया गया है. ऐप पर दी गई जानकारी में कोई भी प्रूफ या कागज या किसी बायोमेट्रिक की जरूरत नहीं होगी.’
उन्होंने यह भी कहा कि वे कुछ नया नहीं कर रहे हैं. इसका अपडेशन पहली बार 2010 में यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार ने किया था. देश के आम निवासियों की व्यापक पहचान का डेटाबेस बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है. तब 2011 में जनगणना के पहले इस पर काम शुरू हुआ था. अब फिर 2021 में जनगणना होनी है. ऐसे में एनपीआर पर भी काम शुरू हो रहा है.
इससे पहले एक अधिकारी ने बताया था कि एनपीआर देश के स्वभाविक निवासियों की सूची है. इस संबंध में आंकड़ों को अपडेट करने का काम 2015 में घर-घर सर्वे के माध्यम से हुआ था. अपडेट किये गए आंकड़ों के डिजिटलीकरण का काम पूरा हो गया है .
नागरिकता कानून 1955 तथा नागरिकता नियम 2003 के तहत एनपीआर पहली बार 2010 में तैयार किया गया था. आधार से जोड़े जाने के बाद 2015 में इसका अद्यतन किया गया था
बता दें कि इस बार एनपीआर की प्रक्रिया में लोगों को अपने माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान बताना होगा, जो पिछले एनपीआर में नहीं पूछा जाता था- देश भर में प्रस्तावित एनआरसी के संदर्भ में इस पहलू का महत्व बढ़ जाता है.
सूत्रों के अनुसार एनपीआर अपडेट करने के लिए 21 बिंदुओं की जानकारी चाहिए होगी. इसमें माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान, पिछले निवासस्थान, पैन नंबर, आधार (स्वैच्छिक) वोटर आईडी कार्ड नंबर, ड्राइविंग लाइसेंस नंबर और मोबाइल नंबर शामिल होगा.
2010 में हुए पिछले एनपीआर में 15 बिंदुओं की जानकारी मांगी गई थी. इन 15 में माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान, पिछले निवासस्थान, पासपोर्ट नंबर, आधार, पैन, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी और मोबाइल नंबर शामिल नहीं थे.
इस बार माता का नाम, पिता का नाम और जीवनसाथी के नाम को एक ही बिंदु में शामिल कर दिया गया है.
बीते दिनों पश्चिम बंगाल के बाद केरल सरकार ने भी राज्य में एनपीआर से जुड़े सभी काम रोकने के आदेश दिए थे. मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के कार्यालय ने कहा था कि की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि सरकार ने एनपीआर को स्थगित रखने का फैसला किया है क्योंकि आशंका है कि इसके जरिए एनआरसी लागू की जाएगी. यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि एनपीआर संवैधानिक मूल्यों से दूर करता है और यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
इससे पहले पश्चिम बंगाल ने भी सीएए के खिलाफ बढ़े गुस्से के बीच एनपीआर को तैयार और अपडेट करने संबंधी सभी गतिविधियों को रोक दिया था. पश्चिम बंगाल सचिवालय द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया था कि ‘एनपीआर संबंधी सभी गतिविधियों पर रोक रहेगी. इस संबंध में पश्चिम बंगाल सरकार की मंजूरी के बिना आगे कोई काम नहीं होगा.’
क्या है एनपीआर
एनपीआर देश के आम निवासियों का रजिस्टर है. इसे नागरिकता अधनियम 1955 और नागरिकता (नागरिकों का रजिस्ट्रीकरण एवं राष्ट्रीय पहचान पत्रों का जारी किया जाना) नियम 2003 के प्रावधानों के तहत स्थानीय (गांव/उपनगर), उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जा रहा है.
महापंजीयक और जनगणना आयुक्त कार्यालय की वेबसाइट के मुताबिक, एनपीआर का उद्देश्य देश के सामान्य निवासियों का व्यापक पहचान डेटाबेस बनाना है.
अगले साल जनगणना के साथ लाए जाने वाले एनपीआर के संदर्भ में अधिकारी ने कहा कि कोई भी राज्य इस कवायद से इनकार नहीं कर सकता क्योंकि यह नागरिकता कानून के अनुरूप किया जाएगा.
भारत के प्रत्येक आम निवासी के लिए एनपीआर के तहत पंजीकृत होना जरूरी है. एनपीआर के उद्देश्यों के लिए आम निवासी की परिभाषा एक ऐसे व्यक्ति के रूप में की गई है, जो किसी स्थानीय क्षेत्र में बीते छह महीने या अधिक समय तक रहा हो या जो उस क्षेत्र में अगले छह महीने या अधिक समय तक रहने का इरादा रखता हो.
क्यों उठ रहे हैं सवाल
देशभर में एनआरसी और संशोधित नागरिकता कानून के बीच एनपीआर लाने के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं. कहा जा रहा कि यह देशव्यापी एनआरसी लाने का पहला कदम है.
ज्ञात हो कि विभिन्न मौकों पर गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के विभिन्न नेताओं द्वारा पूरे देश में एनआरसी लाने की बात कही गयी है, लेकिन बीते रविवार दिल्ली में हुई एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इससे इनकार किया था.
उन्होंने कहा कि पिछले पांच सालों की उनकी सरकार में एनआरसी पर कोई चर्चा नहीं हुई है. लेकिन बीते नौ दिसंबर को नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पर लोकसभा में चर्चा के दौरान गृहमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत में एनआरसी लागू किया जाएगा.
उन्होंने कहा था, ‘हमें एनआरसी के लिए कोई पृष्ठभूमि तैयार करने की जरूरत नहीं है. हम पूरे देश में एनआरसी लाएंगे. एक भी घुसपैठिया छोड़ा नहीं जाएगा.’ उनके अलावा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी सार्वजनिक रूप से कहा है कि पूरे देश में एनआरसी लागू किया जाएगा.
एनपीआर को मंजूरी मिलने के बाद सरकार ने कहा कि यह एनआरसी से जुड़ा हुआ नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं है.
अगस्त 2019 में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया और जनगणना आयुक्त विवेक जोशी ने एनपीआर पर बात करते हुए कहा था कि असम के अलावा पूरे देश में एनपीआर पर काम शुरू किया जायेगा. सरकार ने देश भर में नागरिकों का रजिस्टर बनाने को लेकर उसका आधार तैयार करने के लिए सितंबर 2020 तक एक राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पेश करने का निर्णय किया है.
तब एक अधिकारी के हवाले से कहा गया था कि एनपीआर देश में रहने वाले नागरिकों की एक विस्तृत सूची होगी. एनपीआर के पूरा होने और प्रकाशित होने के बाद भारतीय नागरिक राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) तैयार करने के लिए इसके एक आधार बनने की उम्मीद है.
मंगलवार को एनपीआर को मिली कैबिनेट की मंजूरी के बाद कांग्रेस नेता अजय माकन ने भी यही बात कही है.
Modi Ji-"There is no discussion on NRC"
Today, I&B Minister-"There is no link between NPR & NRC-
Modi Cabinet grants 8500 crores for NPR!
But-Look at 2018-19 Annual Report of the Union Home Ministry
Pg262-"..NPR is first step towards creation of NRIC"
SHAME-PM shouldn't lie! pic.twitter.com/kqRzpIzbuu
— Ajay Maken (@ajaymaken) December 24, 2019
माकन ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2018-19 के 15वें चैप्टर का हवाला देते हुए सरकार के एनपीआर के एनआरसी से न जुड़े होने के दावे का खंडन किया. उनके द्वारा साझा किए हुए रिपोर्ट के हिस्से में कहा गया है कि एनपीआर देश भर में होने वाले एनआरआईसी का पहला कदम है.
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने भी इस पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है. येचुरी ने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा जुलाई 2014 में राज्यसभा में दिए गए एक जवाब कहा कि सरकार झूठ बोल रही है कि एनआरसी और एनपीआर संबंधित नहीं हैं.
NPR=NRC. How much more will the Modi government lie and mislead the people? It was stated clearly on the record in the Rajya Sabha by this government, that the National Population Register is the base document from where the NRC work will start. (Page 2 below, last paragraph) pic.twitter.com/FvvuTkMwBv
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) December 24, 2019
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 23 जुलाई 2014 को कांग्रेस सांसद बीके हरिप्रसाद ने गृह राज्यमंत्री से आधार कार्ड को एनपीआर से जोड़ने के को लेकर सवाल किया था. इसके जवाब में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने जवाब दिया था कि बायोमेट्रिक जानकारी और डुप्लीकेशन से बचने के लिए आधार को एनपीआर प्रक्रिया से जोड़ा जाएगा.
जवाब ने यह भी कहा गया था, ‘सरकार ने एनपीआर योजना में मिलने वाली जानकारी के आधार पर देश में रहने वाले सभी व्यक्तियों की नागरिकता को वेरीफाई करते हुए भारतीय नागरिक राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करने का फैसला किया है.’
माकपा द्वारा जारी एक बयान में नागरिकता कानून 1955 में हुए एक संशोधन और 10 दिसंबर 2003 को तत्कालीन वाजपेयी सरकार द्वारा नियमों में किए बदलाव के बारे में बताया गया है कि एनपीआर के आधार पर एनआरसी तैयार किया जाएगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)