सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों पर टिप्पणी करते हुए गुरुवार को कहा था कि नेता वे नहीं हैं जो ग़लत दिशा में लोगों का नेतृत्व करते हैं, जैसा कि हम बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय और कॉलेज छात्रों को देख रहे हैं, जिस तरह वे शहरों और कस्बों में आगज़नी और हिंसा करने में भीड़ की अगुवाई कर रहे हैं. यह नेतृत्व नहीं है.
नई दिल्ली: सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत नये नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले लोगों की सार्वजनिक आलोचना करके गुरुवार को विवादों में घिर गए. नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शनों के दौरान हिंसा को लेकर सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत द्वारा दिए गए बयान की कांग्रेस समेत विपक्ष के विभिन्न नेताओं ने निंदा की है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान हिंसा के संदर्भ में सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की एक टिप्पणी को ‘आपत्तिजनक और अनैतिक’ करार देते हुए गुरुवार को दावा किया कि ऐसा लगा कि रावत भाजपा नेता हों.
लोकसभा में पार्टी के नेता चौधरी ने ट्वीट कर कहा, ‘सीएए को लेकर सेना प्रमुख ने टिप्पणी बहुत आपत्तिजनक, अनैतिक और अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर की है. ऐसा लगा कि वह एक ऐसे भाजपा नेता हैं जिसे चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ के रूप में पदोन्नति या पुरस्कार मिल रहा है.’
Army Chief's remark on CAA is highly objectionable, unethical and beyond his remit, he is appeared to be a BJP leader who is going to be promoted or rewarded as cds. Rawat needs to be restrained to maintain the impartiality of our army
— Adhir Chowdhury (@adhirrcinc) December 26, 2019
उन्होंने कहा, ‘रावत को हमारी सेना की निष्पक्षता को बरकरार रखने के लिए संयम बरतने की जरूरत है.’
नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था, ‘नेता वे नहीं हैं जो गलत दिशाओं में लोगों का नेतृत्व करते हैं, जैसा कि हम बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय और कॉलेज छात्रों को देख रहे हैं, जिस तरह वे शहरों और कस्बों में आगजनी और हिंसा करने में भीड़ की अगुवाई कर रहे हैं. यह नेतृत्व नहीं है.’
#WATCH Army Chief Gen Bipin Rawat: Leaders are not those who lead ppl in inappropriate direction. As we are witnessing in large number of universities&colleges,students the way they are leading masses&crowds to carry out arson&violence in cities & towns. This is not leadership. pic.twitter.com/iIM6fwntSC
— ANI (@ANI) December 26, 2019
सेना प्रमुख ने कहा कि नेता जनता के बीच से उभरते हैं, नेता ऐसे नहीं होते जो भीड़ को अनुचित दिशा में ले जाएं. नेता वह होते हैं, जो लोगों को सही दिशा में ले जाते हैं.
मालूम हो कि जनरल रावत 31 दिसंबर को सेना प्रमुख पद से सेवानिवृत्त होने वाले हैं. उन्हें देश का पहला चीफ आफ डिफेंस स्टाफ बनाए जाने की संभावना है. जनरल रावत ने सेना प्रमुख के तौर पर अपने तीन वर्ष के कार्यकाल के दौरान राजनीतिक रूप से तटस्थ नहीं रहने के आरोपों का सामना किया.
पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल एल. रामदास ने भी जनरल रावत के बयान को गलत बताया. उन्होंने कहा कि सशस्त्र बल के लोगों को राजनीतिक ताकतों के बजाय देश की सेवा करने के दशकों पुराने सिद्धांत का पालन करना चाहिए.
रामदास ने कहा, ‘नियम बहुत स्पष्ट है कि हम देश की सेवा करते हैं, न कि राजनीतिक ताकतों की और कोई राजनीतिक विचार व्यक्त करना जैसा कि हमने आज सुना है… किसी भी सेवारत कर्मचारी के लिए गलत बात है, चाहे वह शीर्ष पद पर हो या निचले स्तर पर.’
सैन्य कानून की धारा 21 के तहत सैन्यकर्मियों के किसी भी राजनीतिक या अन्य मकसद से किसी के भी द्वारा आयोजित किसी भी प्रदर्शन या बैठक में हिस्सा लेने पर पाबंदी है. इसमें राजनीतिक विषय पर प्रेस से संवाद करने या राजनीतिक विषय से जुड़ी किताबों के प्रकाशन कराने पर भी मनाही है.’
सेना प्रमुख की टिप्पणी पर विभिन्न दलों और नेताओं की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई. वामदलों ने जनरल बिपिन रावत के बयान की निंदा करते हुए कहा कि जनरल रावत ने अपनी वैधानिक सीमा से बाहर जाकर ऐसा बयान दिया है.
माकपा के पोलित ब्यूरो ने इसकी निंदा करते हुए कहा, ‘जनरल रावत के इस बयान से स्पष्ट हो जाता है कि मोदी सरकार की स्थिति में कितनी गिरावट आ गई है, जो बताती है कि सेना के शीर्ष पद पर आसीन व्यक्ति अपनी संस्थागत भूमिका की सीमाओं को किस प्रकार से लांघता है.’
माकपा पोलित ब्यूरो ने कहा, ‘ऐसी स्थिति में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या हम सेना का राजनीतिकरण कर पाकिस्तान के रास्ते पर नहीं जा रहे हैं? लोकतांत्रिक आंदोलन के बारे में इससे पहले सेना के किसी शीर्ष अधिकारी द्वारा दिए गए ऐसे बयान का उदाहरण आजाद भारत के इतिहास में नहीं मिलता है.’
पोलित ब्यूरो ने कहा कि सेना प्रमुख को अपने बयान के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए. पार्टी ने सरकार से भी इस मामले में संज्ञान लेने की मांग की है.
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने पार्टी के पोलित ब्यूरो की तरफ से सेना प्रमुख के बयान की निंदा करते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘जनरल रावत के इस बयान से स्पष्ट हो जाता है कि मोदी सरकार के दौरान स्थिति में कितनी गिरावट आ गई है कि सेना के शीर्ष पद पर बैठा व्यक्ति अपनी संस्थागत भूमिका की सीमाओं को लांघ रहा है.’
The Army Chief’s statement underlines as to how the situation has degenerated under the Modi government where the highest officer in uniform can so brazenly breach the limits of his institutional role. (1/n) pic.twitter.com/mTavYdZ5GN
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) December 26, 2019
जनरल रावत के इस बयान पर एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी ट्वीट कर आलोचना की. उन्होंने लिखा, ‘अपने पद की सीमाओं को जानना ही नेतृत्व है. नागरिकों की सर्वोच्चता और जिस संस्था के आप प्रमुख हैं उसकी अखंडता को संरक्षित करने के बारे में है.’
वहीं, भाकपा के महासचिव डी. राजा ने कहा कि इस प्रकार के राजनीतिक मुद्दे पर सेना प्रमुख होने के नाते जनरल रावत को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘जनरल रावत किसी राजनीतिक दल के बजाय भारतीय सेना के प्रमुख हैं, उनकी जिम्मेदारी देश की सीमाओं की रक्षा करना है, इस तरह के बयान देना उनका दायित्व नहीं है.’ राजा ने कहा कि जनरल रावत आंदोलनकारी नेताओं की निंदा कर वह स्पष्ट रूप से सत्ताधारी दल का पक्ष लेते दिख रहे हैं.
सेना प्रमुख की टिप्पणी पर विवाद उत्पन्न होने पर सेना ने एक स्पष्टीकरण जारी किया और कहा कि सेना प्रमुख ने सीएए का उल्लेख नहीं किया है.
सेना ने बयान में कहा, ‘उन्होंने किसी राजनीतिक कार्यक्रम, व्यक्ति का उल्लेख नहीं किया है. वह भारत के भविष्य के नागरिकों को संबोधित कर रहे थे, जो छात्र हैं. छात्रों का मार्गदर्शन करना (उनका) सही कर्तव्य है जिन पर राष्ट्र का भविष्य निर्भर करेगा. कश्मीर घाटी में युवाओं को पहले उन लोगों द्वारा गुमराह किया गया था, जिनपर उन्होंने नेताओं के रूप में भरोसा किया था.’
स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने कहा, ‘मैं उनसे सहमत हूं. हां, नेताओं को सही दिशा में (लोगों को) ले जाने के लिए नेतृत्व करना चाहिए. मुझे पूरा विश्वास है, जब वह यह बात कर रहे होंगे, उनके मन में प्रधानमंत्री होंगे.’
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)