पत्थलगड़ी आंदोलन की शुरुआत होने के बाद कई ग्रामीणों ने आरोप लगाया था कि उन्हें ‘पुलिस क्रूरता’ का सामना करना पड़ा. 172 लोगों के खिलाफ अन्य मामलों के साथ राजद्रोह के कुल 19 मामले दर्ज किए गए थे. सभी मामलों को वापस लेने का फैसला किया गया है.
रांची: अपने पहले कैबिनेट फैसले में हेमंत सोरेन सरकार ने रविवार को 2017-2018 में पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान लोगों के खिलाफ दर्ज किए गए सभी मामलों को बंद कर दिया. इसके साथ ही रघुबर दास सरकार द्वारा छोटानपुर और संथाल परगना किरायेदारी अधिनियमों को रद्द करने के प्रयास के बाद विरोध प्रदर्शन में लोगों के खिलाफ दर्ज मामलों को भी वापस लेने का फैसला लिया गया.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, कैबिनेट ने यह भी निर्देश दिया कि हर जिले में महिलाओं और बच्चों से संबंधित मामलों से निपटने के लिए फास्ट-ट्रैक अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के लिए आवश्यक पद सृजित किए जाएं, इसके अलावा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और पैरा-शिक्षकों को सभी देय राशि का भुगतान किया जाए.
इस दौरान झामुमो नेता स्टीफन मरांडी को आगामी विधानसभा को स्पीकर नियुक्त किया गया.
ये फैसले झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने विपक्षी नेताओं की मौजूदगी में झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के तुरंत बाद लिए. उनके साथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डा. रामेश्वर उरांव और कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम एवं राष्ट्रीय जनता दल के एक मात्र विधायक सत्यानंद भोक्ता ने भी मंत्री पद की शपथ ली.
सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल हुईं. समारोह में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव डी. राजा और अतुल अंजान तथा द्रमुक (डीएमके) नेता एमके स्टालिन भी शामिल हुए थे.
झारखंड में 30 नवंबर से 20 दिसंबर तक पांच चरणों में हुए विधानसभा चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाले विपक्षी झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने 81 सदस्यीय विधानसभा में 47 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया था. उसने सत्ताधारी भाजपा को पराजित किया जिसे सिर्फ 25 सीटें मिली थीं.
बता दें कि, पत्थलगड़ी आंदोलन 2017-18 में शुरू हुआ था. इसमें जिले के बाहर के गांवों में विशाल पत्थर की पट्टियां बनाई गईं और ग्राम सभा को एकमात्र संप्रभु अधिकार घोषित किया गया. पट्टिकाओं में पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम या पीईएसए के शिलालेख थे, जिन्हें आदिवासी राज्य से अपनी स्वतंत्रता का दावा करने और अपने अधिकारों और संस्कृति का दावा करते थे.
आंदोलन की शुरुआत होने के बाद कई ग्रामीणों ने आरोप लगाया था कि उन्हें ‘पुलिस क्रूरता या राज्य के दमन’ का सामना करना पड़ा. 172 लोगों के खिलाफ अन्य मामलों के साथ राजद्रोह के कुल 19 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से पुलिस ने 96 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगी थी.
एक अन्य अहम फैसले में मानदेय और पेंशन में वृद्धि और अपनी नौकरियों के नियमितीकरण के लिए विरोध करने वाले आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और पैरा शिक्षकों (वार्षिक अनुबंध पर नियुक्त) को सरकार ने अपना समर्थन दिया है.
विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की पिटाई की गई, जिसके कारण भाजपा के खिलाफ आक्रोश पैदा हुआ. पैरा शिक्षकों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के सभी पुराने बकाए को चुकाने के कैबिनेट के फैसले को इन श्रमिकों के लिए बड़ी राहत के रूप में देखा जाता है.
कैबिनेट ने राज्य सरकार में सभी रिक्त पदों को भरने का भी आदेश दिया और निर्देश दिया कि बकाया भुगतान को हटाने के लिए जिला, ब्लॉक और पंचायत स्तर पर विभिन्न शिविरों का आयोजन किया जाए.
इसके साथ ही उपायुक्तों को अपने जिलों में गरीबों को कंबल वितरित करने के साथ-साथ अलाव की व्यवस्था करने को कहा गया. कैबिनेट ने झारखंड राज्य के लिए एक लोगो पर भी चर्चा की, जो इसकी परंपराओं, इतिहास और सुनहरे भविष्य को दर्शाएगा.