पाकिस्तान को मात देकर भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट टीम ने रविवार को टी-20 वर्ल्ड कप पर कब्ज़ा जमा लिया. इस मौके पर भारतीय कप्तान कप्तान अजय कुमार रेड्डी से ब्लाइंड क्रिकेट और उसकी चुनौतियों पर बातचीत.
देश में ब्लाइंड क्रिकेट को पर्याप्त आर्थिक सहयोग न मिलने के चलते खिलाड़ियों को शिकायत रहती है कि उन्हें पर्याप्त अभ्यास का मौका नहीं मिल पाता. इस बार क्या मिला?
इस बार हमने अच्छा अभ्यास किया क्योंकि इस बार भारतीय टीम इंडसइंड बैंक स्पॉन्सर कर रहा है. अगले तीन साल के लिए उन्होंने ब्लाइंड क्रिकेट को अडॉप्ट किया है. भारतीय टीम की हर ज़रूरत अभ्यास और रहने की, यह इंडसइंड बैंक पूरी करने को तैयार है.
जब आपने क्रिकेट खेलना शुरू किया, तब से अब तक ब्लाइंड क्रिकेट में क्या बदलाव देखते हैं?
बहुत बदलाव आया है. पहले हमें खेलने के लिए विकेट भी नहीं होता था. आज हम टर्फ विकेट और घास के विकेटों पर बड़े-बड़े मैदानों में खेल रहे हैं. तब टूटे हुए बैट से खेला करते थे. अब भारतीय टीम को स्पॉन्सशिप मिल गई है. सरकारें भी हमारी उपलब्धि पहचान रही हैं. आंध्र प्रदेश सरकार ने मुझे पांच लाख रुपये दिए हैं. कई राज्य सहयोग करने लगे हैं. कुछ लड़कों को नौकरी भी मिली है. मतलब बदलाव तो आ रहा है. लेकिन हर राज्य में नहीं. सिर्फ कुछ राज्यों में.
आपकी उपलब्धियों को पहचान मिलने लगी है. पांच लाख रुपये आंध्र सरकार ने दिए, उससे पहले सात लाख रुपये केंद्र सरकार ने. क्या ब्लाइंड क्रिकेट की समस्याओं का हल होता दिख रहा है?
क्रिकेट से हमारी कोई आय नहीं है. हम सामान्य खिलाड़ियों की तरह वेतन नहीं पाते. होता यूं है कि कभी-कभी खेल के लिए जरूरी चीजों में अपनी जेब से ही निवेश करना पड़ता है. मेरे बैट का खर्च और जूतों का खर्च मिलाकर ही 25 हजार रुपये बैठता है.
इतनी मेरी तनख्वाह भी नहीं है. इसलिए घर खर्च में जब छह महीने तक कटौती करके इतने जुटा पाते हैं. विश्व कप जीतने पर मिली राशि से थोड़े हालात सुधरे, लेकिन स्थायी हल यह है कि खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी और घर दिया जाए.
ब्लाइंड क्रिकेट को सरकार की ओर से पहचान मिले. सालाना अनुदान मिले. खिलाड़ियों को सरकारी भरोसा मिले कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खेलने वालों को नौकरी मिलेगी. अभी हमें मदद तो मिल रही है लेकिन उसके लिए हमें खुद आग्रह करना पड़ता है.
मेरी उपलब्धियां देखते हुए आंध्र प्रदेश सरकार ने मुझे पांच लाख रुपये की राशि दी. लेकिन उसके लिए पहले मैंने एशिया कप की जीत के बाद सरकार के सामने एक प्रजेंटेशन दिया. अपनी उपलब्धियां गिनाईं. कहा कि सामान्य क्रिकेटर के लिए इतना किया जाता है, जो देश के लिए ओलंपिक में मेडल लाए उन्हें करोड़ों दिया है. हमारी तरफ उतना नहीं तो 10-20 प्रतिशत ही नजर डाल लो. कुछ तो मदद की जाए. फिर दिसंबर में वर्ल्ड डिसेब्लड डे पर मुख्यमंत्री ने डिसेब्लड को प्रोत्साहन देने की बात कही. जिसके बाद वेलफेयर फॉर डिसेब्लड बोर्ड से मुझे पांच लाख का चैक मिला. इससे पहले एक बार और प्रजेंटेशन दिया था. तब ये हमारे अंडर नहीं आता, ऐसा बोलकर बगल रख दिया गया था.
ब्लाइंड क्रिकेटरों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार को क्या करना चाहिए?
अगर खिलाड़ियों की बात करें तो उन्हें बस एक घर दे दो और एक खेल कोटे से नौकरी. घर का किराया तो आपको पता ही है कि कितना हो गया है. मेरा ही उदाहरण लीजिए, जिला हेडक्वार्टर में मेरी नौकरी है. कम से कम 4 लोगों के रहने लायक घर का किराया दस हजार रूपये होता है. वो भी ऐसा घर जहां ढंग का बाथरूम भी न हो. और किराए का घर कब तक अपना है. बार-बार बदलो. जिससे काम पर, प्रैक्टिस पर आने-जाने में बहुत दिक्कत होती है. अगर एक घर मिल जाता है तो किराए का खर्च बच जाता है. फिर खर्चे के लिए इतना सोचने की जरूरत नहीं होती. और खिलाड़ियों को एक अच्छी नौकरी मिलने से वे अपना पूरा ध्यान खेल के ऊपर लगाकर और अच्छा कर सकते हैं. इसलिए सरकारों को देखना चाहिए कि राज्य और देश के लिए खेल रहे हैं. उनके लिए कुछ न कुछ तो करें.
पूर्व कप्तान शेखर नायक को पद्मश्री मिला है. इसे भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट के भविष्य के लिहाज से किस तरह देखते हैं?
शेखर को देखकर ही मैंने खेलना शुरू किया था. इससे पता चलता है कि सरकार की नज़र हम पर भी है. पिछली बार जब विश्व कप का उद्घाटन समारोह हुआ था, तब प्रधानमंत्री ने ट्वीट करके हमें शुभकामनाएं और अच्छा खेलने का संदेश भी दिया था जो यह दिखाता है कि स्वयं प्रधानमंत्री हमारे खेल में रुचि ले रहे हैं.
लेकिन ऐसा तो पिछली बार भी हुआ था. जब टीम विश्व कप जीतकर आई थी तो प्रधानमंत्री टीम से मिले थे. ‘मन की बात’ में जिक्र भी किया. बावजूद इसके कैबी को टीम की विश्व कप की तैयारियों के लिए चंदा मांगते देखा गया. आपको नहीं लगता कि जब टूर्नामेंट होता है या टीम जीतकर आती है, तब आप पर ध्यान दिया जाता है और बीच में लावारिस छोड़ दिया जाता है?
सरकार सिर्फ टूर्नामेंट के समय ही थोड़ा-बहुत पैसा देती है. बाकी का इंतज़ाम करने के लिए कैबी (क्रिकेट एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड इन इंडिया) इधर-उधर घूमता है. कोई टूर्नामेंट होता है या हम जीतते हैं तो हमारी बात की जाती है. उसके बाद कैबी को केंद्र सरकार की मान्यता पाने तक के लिए संघर्ष करना पड़ता है.
केंद्र सरकार को इस ओर सोचना चाहिए. कोई टूर्नामेंट हो या न हो, सरकार हमारे क्रिकेट के मान्यता देकर एक सालाना अनुदान निश्चित करे. इस क्रिकेट में भी भविष्य बनाने की संभावनाएं हैं, ऐसा सोचकर बहुत प्रतिभाएं सामने आएंगी. क्रिकेट का विकास होगा.
क्या आपको लगता है कि क्रिकेट को धर्म की तरह पूजने वाले हमारे देश में ब्लाइंड क्रिकेट को वो सम्मान मिला है जिसका वह हकदार था?
अभी क्रिकेटप्रेमियों को पूछो कि धोनी ने कौन सा शॉट ईजाद किया है. कोहली ने कौन सा ड्राइव मारकर शतक पूरा किया. वे हर चीज जानते हैं. लेकिन हम विश्व कप भी जीत लें तो उनमें से पांच प्रतिशत को भी मालूम नहीं होता है. ऐसे हालात हैं.
अब मीडिया की वजह से हम लोगों पर ध्यान आ रहा है. इस बार का विश्वकप पहली बार कई शहरों में खेला गया. हम इंदोर गए, वहां 18,000 लोग देखने आए. फरीदाबाद में 8000 लोग स्टेडियम में मौजूद थे. अभी लोगों को पता चल रहा है. पर यह क्रिकेट गांवों तक नहीं पहुंचा है जिस तरह नॉर्मल क्रिकेट पहुंचा है.
इसके लिए आर्थिक सहयोग जरूरी है. पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड बहुत गरीब है. फिर भी वह ब्लाइंड क्रिकेट को सपोर्ट करता है. वहां खिलाड़ियों को मासिक वेतन मिलता है. पर हमारे देश में बीसीसीआई सिर्फ बोलता है, करता कुछ नहीं है.
आपके क्रिकेट के नियम अलग हैं, गेंद अलग है. क्या आपको नियमित अभ्यास करने में कोई दिक्कत नहीं आती?
हम नियमित अभ्यास कर नहीं सकते. हमारे क्रिकेट की सिर्फ एक ही अकादमी है, केरल में. वहां देश से कोई भी ब्लाइंड क्रिकेटर जाकर अभ्यास कर सकता है. पर इतना दूर जाना संभव नहीं. घर-परिवार तो छोड़ना ही पड़ेगा, काम-धंधा भी छोड़ना पड़ेगा.
अगर हर राज्य में एक अकादमी खुल जाए तो खेल में सुधार होगा. भविष्य में बहुत खिलाड़ी आ सकते हैं. केंद्र सरकार का विशाखापटनम में हमारे तबके के खिलाड़ियों के लिए एक बड़ा इंडोर-आउटडोर स्टेडियम खोलने का प्रस्ताव तो था, पर दो साल हो गया, अब तक उसका कुछ पता नहीं.
सबसे जरूरी होती है फिटनेस. टीम के कुछ सदस्य मजदूरी भी करते हैं. वे खेत में काम करने जाते हैं. बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन इकाइयों पर पत्थर नीचे से ऊपर लेकर जाने का काम करते हैं, तो कुछ लोडिंग गाड़ियों में सामान चढ़ाते हैं. उन्हें आर्थिक समस्याएं हैं. पर वो इस तरह फिट रहते हैं.
मैं बैंक में जॉब करता हूं. बैंक में सुबह से शाम तक बैठता है. मेरे लिए फिटनेस बनाए रखना बड़ी चुनौती है. इसलिए रोज सुबह जिम जाता हूं. अगर कोई अकादमी होंगी तो नियमित अभ्यास होगा और फिटनेस की फिर कोई समस्या ही नहीं रहेगी.
मतलब ब्लाइंड क्रिकेट में अच्छा करिअर बनाने में चुनौती बहुत हैं?
मैं सच बोलूं तो ब्लाइंड क्रिकेट में करिअर तो है ही नहीं. हम सिर्फ देश के नाम के लिए खेल रहे हैं. हमें लाखों रुपये नहीं मिलते. हमें नौकरी नहीं मिलती. हमारे पास न जमीन है, न मकान. हमें तोहफे नहीं मिलते. क्रिकेट से प्यार और जुनून के लिए खेल रहे हैं.
देश को हमारे बारे में सोचना चाहिए. हम जीतें या हारें, नतीजा चाहे कुछ भी हो. खेल को खेल मानकर हमें और हमारे खेल को सहयोग मिलना चाहिए. सरकार से हमें मान्यता मिलनी चाहिए. हमसे बोला जाता है कि इसमें बिजनेस या फायदा नहीं है. मैं कहता हूं पहले हमें सहयोग तो दो, बाद में हमसे कुछ उम्मीद करो.
जिन आर्थिक चुनौतियों का ब्लाइंड क्रिकेटर सामना कर रहे हैं, वे उन पर जो दबाव बनाती हैं, उस दबाव से आप मैदान पर उतरते वक्त कैसे निपटते हैं?
मैच के समय हम फोन स्विच ऑफ कर देते हैं. फोन हम बिल्कुल नहीं चलाते क्योंकि कभी भी घर से फोन आ सकता है कि बेटी बीमार है या मम्मी-पापा की तबीयत ठीक नहीं है.
फिर हम यहां-वहां फोन करते कहते हैं कि मेरे घर पर थोड़ा देख लो, परिवार की मदद कर दो, उन्हें अर्जेंट जरूरत है, मैं लौटकर तुम्हें चुका दूंगा. ऐसे हालात आए हैं हमारे खिलाड़ियों के सामने. सामान्य खिलाड़ियों के साथ ऐसी कोई दिक्कत नहीं होता. इसलिए बोलता हूं कि सरकार को हमें सहयोग करे.
अपने क्रिकेट के सफर के बारे में कुछ बताए.
मैं बचपन से दृष्टिहीन नहीं था.शुरू से ही नॉर्मल क्रिकेट में रुचि थी. खेलता भी था और डांट भी खाता था. छठी कक्षा तक मैं सामान्य बच्चों की तरह पढ़ा फिर मुझे अक्षर दिखने बंद हो गए तो ब्लाइंड स्कूल में दाखिला करा दिया. वहां पहली बार ब्लाइंड क्रिकेट देखा और खेलना शुरू कर दिया.
फिर स्टेट उसके बाद ज़ोनल का मौका मिला और 2010 में भारतीय टीम शामिल होने का मौका हाथ लग गया. स्कूल में अक्सर सुनने को मिलता था कि इस क्रिकेट में पाकिस्तान टॉप पर है. वह 2002 और 2006 का विश्व कप जीत चुका है. उसे कोई हरा नहीं पाया.
पाकिस्तान के बारे में ऐसा बहुत कुछ सुनता चला आ रहा था. फिर मन में बैठा लिया कि भारत के लिए विश्व कप लेकर आना है. 2006 में जब मैं स्टेट लेवल खिलाड़ी था तब पूर्व भारतीय कप्तान शेखर हमारी श्रेणी के टॉप और विश्व के दूसरे नंबर के खिलाड़ी हुआ करते थे. मन में था कि मुझे उनसे भी अच्छा बनना था.
2010 में पहली बार भारतीय टीम का हिस्सा बना, तब बी3 कैटेगरी में खेला करता था. लेकिन फिर मेरी नज़र कमजोर हो गई तो मैं बी2 कैटेगरी में खेलने लगा.