बीते 20 दिसंबर को फ़िरोज़ाबाद के पुलिस थाना दक्षिण ने करीब 200 लोगों को शांति भंग करने के मामले में नामज़द किया था. सभी नामज़द लोगों को 10 लाख रुपये की ज़मानत एवं इतनी ही धनराशि का निजी मुचलका दाख़िल करने के लिए नोटिस जारी किए थे. इनमें मृतक बन्ने ख़ान का भी नाम था.
फिरोजाबाद: उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में बीते 20 दिसंबर को प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा को लेकर शांति भंग करने के मामले में थाना दक्षिण क्षेत्र में एक मृतक की नामजद कर नोटिस भेजने के मामले में एक दरोगा और दो सिपाहियों को लाइन हाजिर कर दिया गया है.
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सचिंद्र पटेल ने बीते सोमवार को बताया कि इस प्रकरण की जांच सीओ सिटी अरुण कुमार सिंह को सौंपी गई थी जिनकी रिपोर्ट प्राप्त हो गई है. जांच में पुलिस रिपोर्ट में नामजदगी गलत पाई गई.
पटेल ने इस सिलसिले में थाना दक्षिण क्षेत्र के चौकी प्रभारी नालबंद राजीव चित्रांश और दो कॉन्स्टेबल को तत्काल प्रभाव से लाइन हाजिर कर दिया तथा उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जा रही है.
ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य धर्म सिंह यादव एडवोकेट ने भी इस मामले को लेकर पुलिस की कार्यशैली पर उंगली उठाई थी.
गौरतलब है कि पुलिस थाना दक्षिण ने करीब 200 लोगों को शांति भंग करने के मामले में नामजद किया था. सिटी मजिस्ट्रेट कुंवर पंकज ने नामजद सभी लोगों को दस लाख रुपये की जमानत एवं इतनी ही धनराशि का निजी मुचलका दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किए थे.
इस सूची में बन्ने खां का भी नाम था, जिनकी मृत्यु छह वर्ष पूर्व हो चुकी है.
इस संबंध में सीओ सिटी के नेतृत्व में एक जांच समिति गठित की गई थी. थाना दक्षिण की लाल बंद चौकी में बन्ने खान को नगर मजिस्ट्रेट कार्यालय से शांति भंग की आशंका में निरुद्ध किया गया था.
मामला तब सामने आया था जब बन्ने खान के पुत्र सरफराज ने पाबंद होने के बाद नगर मजिस्ट्रेट कार्यालय और पुलिस को अपने पिता का मृत्यु प्रमाण-पत्र दिखाया.
मृतक बन्ने खान के बेटे मोहम्मद सरफराज खान ने बताया था, ‘मेरे पिता, जो छह साल पहले गुजर चुके हैं, पर पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 107 और 116 के तहत मामला दर्ज किया है क्योंकि उन्हें लगता है कि वे सार्वजनिक शांति भंग कर सकते हैं.’
बन्ने खान के अलावा शहर के कोटला मोहल्ला के 93 साल के फ़साहत मीर खान और कोटला पठान के 90 वर्षीय सूफी अंसार हुसैन को भी फिरोजाबाद पुलिस की ओर से नोटिस भेजा गया था. परिजनों के अनुसार, यह दोनों बुजुर्ग बिना मदद के चल-फिर भी नहीं सकते हैं.
हुसैन शहर के जाने-माने समाजसेवी हैं और 58 सालों तक फिरोजाबाद जामा मस्जिद के सेक्रेटरी रहे हैं. उनका कहना है, ‘आप फिरोजाबाद में किसी से भी- हिंदू हो या मुस्लिम, मेरे बारे में पूछ लीजिए और वो आपको बताएगा कि कैसे मैंने अकेले सांप्रदायिक दंगे टाले हैं. आज मुझे लग रहा है कि मेरी पूरी जिंदगी ही बेकार चली गई.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)