चंदा देने वालों की पहचान गोपनीय रखने की मांग करने वालों के नाम बताए केंद्र: सीआईसी

इस विषय को लेकर दायर किए गए आरटीआई आवेदन पर सही से कार्रवाई नहीं करने को लेकर सीआईसी ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवाएं विभाग, आर्थिक कार्य विभाग तथा राजस्व विभाग और चुनाव आयोग को कारण बताओं नोटिस जारी किया है.

/

इस विषय को लेकर दायर किए गए आरटीआई आवेदन पर सही से कार्रवाई नहीं करने को लेकर सीआईसी ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवाएं विभाग, आर्थिक कार्य विभाग तथा राजस्व विभाग और चुनाव आयोग को कारण बताओं नोटिस जारी किया है.

CIC1-1200x359

नई दिल्ली: केंद्रीय सूचना आयोग ने चुनावी बॉन्ड पर अपने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वे ऐसे लोगों या संस्थाओं के नामों को खुलासा करें जिन्होंने चंदा देने वालों की पहचान गोपनीय रखने की सिफारिश की थी.

आयोग ने यह भी कहा कि इस संबंध में सरकार को प्राप्त हुए सभी पत्र या याचिका या अभिवेदन सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत दिए जाने चाहिए.

इस विषय को लेकर दायर किए गए आरटीआई आवेदन पर पर्याप्त गंभीरता नहीं दिखाने और सही से कार्रवाई नहीं करने को लेकर सीआईसी ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवाएं विभाग, आर्थिक कार्य विभाग तथा राजस्व विभाग और चुनाव आयोग को कारण बताओं नोटिस जारी किया है.

इन विभागों से कहा गया है कि वे बताएं कि आधी-अधूरी और भ्रामक जानकारी देने को लेकर क्यों उन पर अधिकतम जुर्माना नहीं लगाया जाना चाहिए. सूचना आयुक्त सुरेंश चंद्रा ने ये फैसला दिया है.

आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने सात जुलाई 2017 को केंद्र के आर्थिक कार्य विभाग में आरटीआई दायर कर राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के दौरान पहचान की गोपनीयता बनाए रखने के संबंध में दानकर्ताओं द्वारा लिखे गए पत्र या याचिका या अभिवेदन के बारे में जानकारी मांगी थी.

CIC Donation
आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी.

नायक ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के ड्राफ्ट की कॉपी या प्रति भी मांगी थी. हालांकि विभाग ने इन दोनों बिन्दुओं पर कोई जानकारी नहीं दी. इसके बाद याचिकाकर्ता ने 17 अगस्त 2017 को प्रथम अपील दायर की.

प्रथम अपीलीय अधिकारी ने नायक की आरटीआई को वित्तिय सेवाएं विभाग, चुनाव आयोग और आर्थिक कार्य विभाग के कोऑर्डिनेशन सेक्शन को ट्रांसफर करने का निर्देश दिया.

हालांकि इन तीनों विभागों के जन सूचना अधिकारी ने कहा कि उनके पास आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी नहीं है और उन्होंने याचिकाकर्ता को सुनवाई कोई मौका नहीं दिया. इन फैसलों से असंतुष्ट हो वेंकटेश नायक ने सीआईसी का रुख किया.

अपने अंतिम निर्णय में सीआईसी ने इस बात को लेकर चिंता जताई कि किस तरह से किसी भी विभाग ने इस आरटीआई आवेदन को गंभीरता से नहीं लिया और सही कार्रवाई नहीं की.

सूचना आयुक्त चंद्रा ने अपने फैसले में लिखा, ‘आरबीआई द्वारा दी गई जानकारी आधी-अधूरी है. आरबीआई के जन सूचना अधिकारी को निर्देश दिया जाता है कि आरटीआई के तहत सूचना देते वक्त और सावधानी बरतें. उन्होंने निर्देश दिया जाता है कि वे आरटीआई आवेदन को फिर से देखें और आवेदनकर्ता को एकदम स्पष्ट जवाब दें.’

वित्त मंत्रालय के तीन विभागों और चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए सुरेश चंद्रा ने कहा कि सभी लिखित स्पष्टीकरण आयोग में तीन हफ्ते के भीतर आने चाहिए.

मालूम हो कि केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना काफी लंबे समय से विवादों में है. इस बॉन्ड के जरिए किसी भी पार्टी को चंदा देने वालों की पहचान का पता नहीं चल पाता है.

पिछले कुछ महीनों चुनावी बॉन्ड के संबंध में कई खुलासे सामने आए हैं, जिससे ये पता चला है कि आरबीआई, चुनाव आयोग, कानून मंत्रालय, आरबीआई गवर्नर, मुख्य चुनाव आयुक्त और कई राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इस योजना पर आपत्ति जताई थी.

हालांकि वित्त मंत्रालय ने इन सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को पारित किया. इस बॉन्ड के जरिये राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों की पहचान बिल्कुल गुप्त रहती है.

आरबीआई ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी. इससे मनी लॉन्ड्रिंग को प्रोत्साहन मिलेगा और केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा.

वहीं चुनाव आयोग ने सिर्फ कानून मंत्रालय ही नहीं बल्कि राज्यसभा की संसदीय समिति को भी पत्र लिखकर विवादास्पद चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर चिंता जाहिर की थी. आयोग ने समिति को बताया था कि ये एक पीछे जाने वाला कदम है और इसकी वजह से राजनीतिक दलों की फंडिंग से जुड़ी पारदर्शिता पर प्रभाव पड़ेगा.

आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि जब चुनावी बॉन्ड योजना का ड्राफ्ट तैयार किया गया था तो उसमें राजनीतिक दलों एवं आम जनता के साथ विचार-विमर्श का प्रावधान रखा गया था. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक के बाद इसे हटा दिया गया.

इसके अलावा चुनावी बॉन्ड योजना का ड्राफ्ट बनने से पहले ही भाजपा को इसके बारे में जानकारी थी. बल्कि मोदी के सामने प्रस्तुति देने से चार दिन पहले ही भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव ने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर चुनावी बॉन्ड योजना पर उनकी पार्टी के सुझावों के बारे में बताया था.

यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि चुनावी बॉन्ड के जरिये सबसे ज्यादा चंदा भाजपा को प्राप्त हुआ है.

चुनाव सुधार पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सभी प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और इसे खारिज करने की मांग की है.