अगस्त 2017 से शुरू हुए सैन्य अभियानों के चलते करीब 7,40,000 रोहिंग्या लोगों को सीमापार बांग्लादेश भागना पड़ा था. पिछले साल सितंबर महीने में संयुक्त राष्ट्र की एक टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि म्यांमार में करीब छह लाख रोहिंग्या मुसलमान नरसंहार के गंभीर ख़तरे का सामना कर रहे हैं.
यंगून: रोहिंग्या लोगों पर अत्याचारों की जांच के लिए गठित म्यामांर का पैनल सोमवार को इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि कुछ सैनिकों ने संभवत: रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ युद्ध अपराधों को अंजाम दिया लेकिन सेना जनसंहार की दोषी नहीं है.
पैनल की इस जांच की अधिकार समूहों ने निंदा की है.
संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत बृहस्पतिवार को इस बारे में फैसला सुनाने वाली है कि म्यामांर में जारी कथित जनसंहार को रोकने के लिए तुरंत उपाय करने की आवश्यकता है या नहीं. इसके ठीक पहले ‘इंडिपेंडेंट कमीशन ऑफ इन्क्वायरी (आईसीओई)’ ने अपनी जांच के परिणाम जारी कर दिए. जांच करने वाले पैनल में दो सदस्य स्थानीय और दो विदेशी हैं.
आईसीओई ने यह स्वीकार किया कि कुछ सुरक्षाकर्मियों ने बेहिसाब ताकत का इस्तेमाल किया, युद्ध अपराधों को अंजाम दिया और मानवाधिकार के गंभीर उल्लंघन किए जिसमें निर्दोष ग्रामीणों की हत्या करना और उनके घरों को तबाह करना शामिल है. हालांकि उसने कहा कि ये अपराध जनसंहार की श्रेणी में नहीं आते हैं.
पैनल ने कहा, ‘इस निष्कर्ष पर पहुंचने या यह कहने के लिए सबूत पर्याप्त नहीं हैं कि जो अपराध किए गए वे राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को या उसके हिस्से को तबाह करने के इरादे से किए गए.’
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, म्यांमार के रखाइन प्रांत में अगस्त 2017 से शुरू हुए सेना के बर्बर अभियान के कारण 7,40,000 से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिमों को पड़ोसी देश बांग्लादेश भागना पड़ा जहां वे शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं.
बौद्ध बहुल म्यामांर हमेशा से यह कहता आया है कि सेना की कार्रवाई रोहिंग्या उग्रवादियों के खिलाफ की गई. दरअसल उग्रवादियों ने कई हमलों को अंजाम दिया था जिसमें बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई थी.
यह पहली बार है जब म्यामांर की ओर से की गई किसी जांच में अत्याचार करना स्वीकार किया गया.
बर्मीज रोहिंग्या ऑर्गेनाइजेशन यूके ने पैनल के निष्कर्षों को खारिज कर दिया और इसे अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले से ध्यान भटकाने का प्रयास बताया. इसके प्रवक्ता तुन खिन ने कहा कि यह रोहिंग्या लोगों के खिलाफ म्यामांर की सेना तात्मादॉ द्वारा बर्बर हिंसा से ध्यान भटकाने और आंखों में धूल झोंकने का प्रयास है.
ह्यूमन राइट्स वॉच के फिल रॉबर्टसन ने कहा कि रिपोर्ट में सेना को जिम्मेदारी से बचाने के लिए कुछ सैनिकों को बलि का बकरा बनाया गया है.
पिछले साल सितंबर महीने में संयुक्त राष्ट्र की एक टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि म्यांमार में करीब छह लाख रोहिंग्या मुसलमान ‘नरसंहार के गंभीर ख़तरे’ का सामना कर रहे हैं. जांचकर्ताओं ने चेतावनी दी थी कि सेना द्वारा पहले ही देश से बाहर किए जा चुके लाखों अल्पसंख्यकों की देश वापसी असंभव लगती है.
संयुक्त राष्ट्र की फैक्ट फाइंडिंग मिशन ने एक रिपोर्ट में कहा था, ‘म्यांमार लगातार नरसंहार की सोच को पनाह दे रहा है और रोहिंग्या नरसंहार के खतरे का सामना कर रहे हैं.’
मानवाधिकार परिषद की ओर से गठित इस मिशन ने म्यांमार में 2017 में हुए सैन्य अभियान को पिछले साल ‘नरसंहार’ करार दिया था और सेना प्रमुख मिन ऑन्ग लेइंग समेत शीर्ष जनरलों के खिलाफ मुकदमा चलाने की बात कही थी.
सेना की दमनकारी कार्रवाई के कारण करीब 740,000 रोहिंग्या मुस्लिमों को भागकर बांग्लादेश में पनाह लेनी पड़ी. संयुक्त राष्ट्र की टीम ने एक रिपोर्ट में कहा कि म्यांमार के रखाइन प्रांत में अब भी छह लाख रोहिंग्या बिगड़ती हुई और ‘विकट’ परिस्थितियों में रह रहे हैं.
बांग्लादेश ने म्यांमार सीमा के पास के शिविरों में 10 लाख से ज़्यादा रोहिंग्या शरणार्थियों की गिनती की है, जो पिछले अनुमान से कहीं ज़्यादा है. संयुक्त राष्ट्र का भी अनुमान है कि दक्षिण-पूर्व बांग्लादेश में म्यांमार सीमा के पास 9,62,000 रोहिंग्या रह रहे हैं.
साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र की बाल एजेंसी यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बांग्लादेश में कॉक्स बाजार के भीड़भाड़ वाले, मलिन और गंदे शरणार्थी शिविरों में रहे रहे रोहिंग्या शरणार्थियों में से अधिकांश बच्चे धरती पर नरक का सामना कर रहे हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)