ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों की तुलना में केंद्र का बजट ज़्यादा पारदर्शी होता है. हालांकि केंद्र स्तर पर भी अभी भी कई ज़रूरी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता है.
नई दिल्ली: हर साल की तरह इस साल भी फरवरी महीने की पहली तारीख को संसद में बजट पेश किया जाएगा. केंद्रीय बजट को उचित प्राथमिकता देते हुए संसद में इसे प्रस्तुत करने के बाद इस पर कड़ी बहस और चर्चा होती है.
वहीं दूसरी ओर आमतौर पर राज्यों के बजट महत्वपूर्ण सार्वजनिक चर्चा के बिना राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित कर दिए जाते हैं. नतीजतन ज्यादातर राज्यों का बजट समावेशी और पारदर्शी न होने के कारण आम नागरिकों की उम्मीदों के अनुकूल नहीं होता है.
इसी मुद्दे पर गैर सरकारी संस्था ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया’ ने राज्यों के बजट में पारदर्शिता को लेकर ‘बजटीय प्रक्रिया में पारदर्शिता’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें केंद्र और सभी राज्यों के बजट में पारदर्शिता की स्थिति का विश्लेषण किया गया है और उनके प्रदर्शन के आधार पर उन्हें स्कोर (अंक) दिया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय बजट को 76 के स्कोर के साथ सबसे पारदर्शी माना गया है. राज्यों में असम 70 अंकों के साथ पहले स्थान पर है. वहीं 66 अंकों के साथ ओडिशा दूसरे स्थान पर है और 64 अंकों के साथ आंध्र प्रदेश तीसरे नंबर पर है.
वहीं 61 के स्कोर के साथ झारखंड चौथे, 58 के स्कोर के साथ बिहार पांचवें, 57 के स्कोर के साथ मध्य प्रदेश छठवें स्थान पर है. बजट पारदर्शिता में निचले पांच राज्य गोवा (43), महाराष्ट्र (34), पंजाब (29), मेघालय (28) और मणिपुर (25) हैं.
बजट पारदर्शिता के मामले में कई बड़े राज्यों की हालत काफी खराब है. इस सूची में पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं.
‘बजटीय प्रक्रिया में पारदर्शिता रिपोर्ट’ में राज्य के बजट का विश्लेषण चार व्यापक मानकों के तहत किया गया है, जिन्हें 18 उप-मापदंडों के आधार पर अंक दिए गए हैं. संस्था का कहना है कि ये सभी मानक अंतराष्ट्रीय स्तर के मानकों पर आधारित हैं.
रिपोर्ट में उपयोग किए गए चार व्यापक मानक क्रमशः इस प्रकार हैं- महत्वपूर्ण बजट दस्तावेजों का सार्वजनिक प्रकाशन और आम लोगों में बजट की सुलभ उपलब्धता के लिए (40 प्रतिशत), भागीदारी और समावेशी बजटीय प्रक्रिया के लिए (25 प्रतिशत), बजट उपरांत प्रबंधन और पारदर्शिता के लिए (25 प्रतिशत) और बजट को अधिक पारदर्शी तथा नागरिकों के अनुकूल बनाने के लिए किए गए विशेष प्रयास के लिए (10 प्रतिशत) अंक दिए गए हैं.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक रामनाथ झा ने कहा, ‘सभी राज्य सरकारों के खर्च का योग केंद्र सरकार के खर्च से कई गुना ज़्यादा है. प्रमुख योजनाओं को लागू करने का अधिकार राज्य सरकारों के पास होता है. इसलिए यह आवश्यक है कि राज्य बजट को सार्थक चर्चा के लिए सार्वजनिक पटल पर लाया जाए जिससे आम नागरिकों का भी सुझाव बजट में लिया जा सके.’
शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी आदि पर विभिन्न राज्यों द्वारा खर्च की स्थिति
रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा पर खर्च के मामले में दिल्ली सबसे ऊपर है. साल 2019-20 के दौरान दिल्ली सरकार ने कुल खर्च का 28 फीसदी शिक्षा पर खर्च किया है. वहीं असम ने इस दौरान कुल खर्च का 22 फीसदी खर्च किया है.
महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तराखंड ने वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान कुल खर्च का 19 फीसदी खर्च किया है. वहीं बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने 18 फीसदी राशि खर्च की है.
ट्रांसपेरेंसी इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य पर खर्च के मामले में भी दिल्ली सरकार अव्वल रही है. दिल्ली ने कुल खर्च का 14 फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च किया है. वहीं असम ने सात फीसदी और आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तराखंड ने छह फीसदी खर्च किया है.
बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की स्थिति काफी खराब है. इन राज्यों साल 2019-20 के दौरान कुल खर्च का सिर्फ पांच फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च किया है. कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और तेलंगाना ने और कम सिर्फ चार फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च किया.
सामाजिक कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर खर्च के मामले में आंध्र प्रदेश पहले नंबर पर है. आंध्र प्रदेश ने साल 2019-20 के दौरान कुल खर्च का 12 फीसदी हिस्सा सामाजिक कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर खर्च किया.
वहीं तेलंगाना ने 10 फीसदी, कर्नाटक, ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल ने आठ फीसदी, हरियाणा ने सात फीसदी और बिहार, दिल्ली एवं राजस्थान ने छह फीसदी खर्च किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकारें अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए काफी कम राशि खर्च कर रहे हैं. साल 2019-20 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने कुल खर्च का सर्वाधिक छह फीसदी अल्पसंख्यक कल्याण की योजनाओं पर खर्च किया.
कर्नाटक और महाराष्ट्र ने पांच फीसदी, ओडिशा ने तीन फीसदी, असम, बिहार, केरल एवं तमिलनाडु ने दो फीसदी और छत्तीसगढ़, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड ने सिर्फ एक फीसदी खर्च किया है.