महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि एनआरसी को राज्य में लागू नहीं होने दिया जाएगा. एनआरसी लागू होने से हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए नागरिकता साबित करना काफी मुश्किल हो जाएगा. मैं ऐसा नहीं होने दूंगा.
मुंबईः महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एक बार कहा कि वह राज्य में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लागू नहीं होने देंगे.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि ठाकरे ने यह भी कहा कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के तहत किसी की नागरिकता छीनी नहीं जाएगी.
उद्धव ने शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में कहा कि नागरिकता कानून नागरिकता लेने का कानून नहीं है, यह पड़ोसी देशों के पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का कानून है.
ठाकरे ने कहा, ‘हिंदुओं और मुस्लिमों दोनों के लिए नागरिकता सिद्ध करना मुश्किल होगा. मैं यह होने नहीं दूंगा.’
उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘हमने हिंदुत्व नहीं छोड़ा है और ना ही कभी छोड़ेंगे. महाराष्ट्र में हमने गठबंधन किया है, इसका मतलब यह नहीं कि हमने धर्म बदल लिया है. विचारधारा से कोई समझौता नहीं किया है.’
सामना ने उद्धव ठाकरे के साक्षात्कार का एक क्लीप ट्विटर पर भी साझा किया.
इससे पहले लोकसभा में शिवसेना ने नागरिकता संशोधन बिल पर मोदी सरकार का समर्थन किया था. हालांकि जब यह बिल लोकसभा से पारित होकर राज्यसभा पहुंचा, तो शिवसेना ने सदन से वॉकआउट कर दिया था.
इसके बाद संसद के दोनों सदनों से नागरिकता संशोधन बिल पारित हो गया था और राष्ट्रपति की मंजूरी से कानून बन गया था.
देशभर में विरोध के बीच विवादित नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) 10 जनवरी से लागू हो गया.
बता दें कि शिवसेना पहले भी जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने, नए सीएए कानून और प्रस्तावित एनआरसी के केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना कर चुका है.
नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई है.
गौरतलब है कि इस कानून को लेकर देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और देशभर में संग्राम छिड़ा हुआ है. इसकी शुरुआत असम से हुई थी. राज्यसभा में बिल पास होते ही विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया था.
विवादित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों में देशभर में कम से कम 31 लोगों की मौत हो चुकी है. इसमें से कम से कम 21 लोगों की मौत अकेले उत्तर प्रदेश में हुई थी.
इस कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों यानी हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है.