पिछले सात सालों में भारत के राजधानी की वायु गणवत्ता का वायु गुणवत्ता सूचकांक औसतन 224 रहा है जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानदंड के मुकाबले लगभग 350 फीसदी अधिक है.
नई दिल्ली: पिछले साल नवंबर में ‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज’ (सीएसडीएस) नामक संस्था ने दिल्ली में 2,000 से अधिक मतदाताओं के बीच एक सर्वे कराया था. इसमें उन्होंने पाया कि 45 फीसदी लोग वायु प्रदूषण को राष्ट्रीय राजधानी के सामने सबसे बड़ी समस्या मानते हैं.
सर्वे में शामिल लोगों में से 10 फीसदी ने कहा कि जब वे वोट देंगे, तो उनकी ध्यान में वायु प्रदूषण का संकट होगा. ये सर्वेक्षण नवंबर के अंत और दिसंबर की शुरुआत के बीच कराया गया था. इस दौरान वायु प्रदूषण का स्तर अपने सबसे खराब स्तर पर होता है.
हालांकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में वायु प्रदूषण राजनीतिक दलों के एजेंडे में प्रमुखता से स्थान पाता दिखाई नहीं देता है. इंडियास्पेंड की एक ग्राउंड रिपोर्ट इस ओर इशारा करती है कि शायद ये मुद्दा दिल्ली के लोगों के दिमाग से भी उतर गया है.
बावजूद इसके हवा गुणवत्ता एक प्रमुख समस्या है, जिसका जल्द समाधान करने की जरूरत है. आम धारणाओं से उलट दिल्ली में हवा सिर्फ सर्दियों में ही नहीं बल्कि पूरे साल खराब रहती है.
पिछले सात सालों में भारत के राजधानी की वायु गणवत्ता का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) औसतन 224 रहा है जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित मानदंड के मुकाबले लगभग 350 फीसदी अधिक है और भारत सरकार द्वारा निर्धारित मानदंड के मुकाबले 124 फीसदी अधिक है.
एक अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण से दिल्ली में सालाना 10,000 से 30,000 लोगों की मौत होती है. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कहा है कि 2016 में श्वसन संबंधी बिमारी की वजह से 9,149 लोगों की मौत हुई, जो कि दो साल पहले हुई 5,516 मौतों से काफी ज्यादा है.
इसके अलावा, वायु प्रदूषण से कार्डियो-वैस्कुलर बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है और बच्चों के फेफड़ों को अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है.
नतीजतन, दिल्ली के यूनाइटेड रेजिडेंट्स ज्वाइंट एक्शन (यूआरजेए) ने दिल्ली चुनावों की घोषणा को ध्यान में रखते हुए ‘हरित घोषणापत्र ’जारी किया और मांग किया कि उम्मीदवार वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अपनी योजनाओं की रूपरेखा तैयार करें. रेजिडेंट्स ग्रुप ने मांग की है कि 2025 तक वायु प्रदूषण 65 फीसदी तक कम किया जाना चाहिए.
दिल्ली में पूरे साल प्रदूषण बढ़ने का प्रमुख कारण स्थानीय है, न कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना. अक्टूबर और नवंबर में इसकी वजह से काफी हद तक दिल्ली में प्रदूषण बढ़ता है.
ऊर्जा, पर्यावरण और जल पर परिषद (सीईईडब्ल्यू) के आंकलन के मुताबिक दिल्ली के प्रदूषण में यातायात 18 फीसदी से 39 फीसदी के बीच, सड़क की धूल 18 फीसदी और 38 फीसदी के बीच और उद्योग दो फीसदी और 29 फीसदी के बीच जिम्मेदार है.
आईए देखते हैं कि किस तरह दिल्ली की तीन प्रमुख पार्टियों- आम आदमी पार्टी (आप), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस- ने सत्ता में आने पर प्रदूषण के समाधान के लिए योजना बनाई है.
परिवहन
सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को बढ़ाने के लिए आप ने वादा किया है कि वह दिल्ली के मेट्रो नेटवर्क को मौजूदा 383 किलोमीटर से बढ़ाकर 500 किलोमीटर तक करेंगे. इसके अलावा पार्टी ने सार्वजनिक परिवहन को आधी आबादी के लिए सस्ती बनाने के लिए वादा किया है कि महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा की नीति जारी रहेगा.
अरविंद केजरीवाल के 10 सूत्रीय ‘गारंटी कार्ड’ में आप ने महिलाओं के अलावा 11000 अतिरिक्त बसों और छात्रों के लिए मुफ्त यात्रा का भी वादा किया है. साल 2019 में दिल्ली सरकार ने अपनी इलेक्ट्रिक वाहन नीति को इस उद्देश्य से जारी किया था कि 2024 तक इलेक्ट्रिक वाहन सभी नए वाहनों के पंजीकरण का 25 फीसदी होंगे. पारंपरिक वाहनों से इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर शिफ्ट होने के लिए कर छूट दिया जाना चाहिए.
वहीं भाजपा ने वादा किया है कि वे बसों की संख्या में 10,000 की वृद्धि करेंगे और निर्माणाधीन मेट्रो लाइनों के पूरा होने में तेजी लाई जाएगी. यह भी वादा किया है कि वे बस मार्गों की समीक्षा करेंगे और ई-रिक्शा और ऑटो रिक्शा के माध्यम से मेट्रो स्टेशनों को बेहतर फीडर सेवाएं प्रदान करेंगे. यह भी वादा किया गया है कि वे इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देंगे और चार्जिंग स्टेशन स्थापित करेंगे.
भाजपा ने यह भी वादा किया है कि वे इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहित करेंगे, हालांकि ये नहीं बताया कि आखिर किस तरह इसे लागू किया जाएगा.
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में एक विस्तृत रोडमैप की रूपरेखा तैयार की है जिसमें वादा किया गया है कि 80 फीसदी आबादी को सस्ती कीमतों पर सार्वजनिक परिवहन की सुविधा दी जाएगी. उन्होंने यह भी कहा है कि यह सुनिश्चित किया जाएगा कि हर आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्र सार्वजनिक परिवहन से पैदल दूरी के भीतर हो या बस स्टॉप से घर तक जाने के लिए ई-रिक्शा का विकल्प हो.
पार्टी ने कहा है कि वह परिवहन के विभिन्न तरीकों के बीच बेहतर समन्वय बनाने के लिए यूआरजेए की मांग के अनुसार एक एकीकृत महानगरीय प्राधिकरण की स्थापना करेगी. उन्होंने कहा कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो 15,000 नई इलेक्ट्रिक बसों की भी खरीद की जाएगी और सार्वजनिक परिवहन की गुणवत्ता और उपयोगिता की समय-समय पर समीक्षा करने के लिए सरकार समितियों का गठन करेगी.
पार्टी ने पेट्रोल/डीजल वाहनों से शिफ्ट होकर इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग करने वालों की मदद के लिए दिल्ली की इलेक्ट्रिक वाहन नीति के लिए 1,100 करोड़ रुपये का वादा किया है. इसका उद्देश्य है कि 2025 तक सभी वाहन पंजीकरण में से 50 फीसदी इलेक्ट्रिक हों और उन्होंने वादा किया है कि 2021 के बाद खरीदे गए सभी नए सरकारी वाहन इलेक्ट्रिक होंगे.
धूल
इस संबंध में आम आदमी पार्टी ने केवल यह वादा किया है कि वे दो करोड़ पेड़ लगाएगें. पार्टी ने निर्माण गतिविधि को लेकर किसी भी तरह का कानून या रेगुलेशन बनाने के संबंध में कोई वादा करने से दूरी बनाई रखी. जबकि शहर में प्रदूषण बढ़ने में धूल का प्रमुख योगदान है. इसके अलावा दिल्ली के जंगलों के संरक्षण के संबंध में भी पार्टी ने कोई खास घोषणा नहीं की है.
दूसरी ओर भाजपा ने जंगलों के संरक्षण, रिज क्षेत्रों और वन क्षेत्र बढ़ाने का वादा किया है. यह भी कहा है कि वे अस्थायी रूप से धूल को रोकने के लिए मशीनीकृत सफाई और पानी के छिड़काव को लागू करेंगे. पार्टी ने निर्माण गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए कोई उपाय नहीं बताया है.
कांग्रेस के घोषणापत्र में इस संबंध में भी सबसे प्रगतिशील कदम पेश किया गया है. इन्होंने एक कानून लाने का वादा किया है जो बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए पेड़ों की कटाई को अवैध बना देगा. कांग्रेस ने यह भी कहा है कि दिल्ली के 30 फीसदी क्षेत्र में ग्रीन कवर बढ़ाने के लक्ष्य के साथ वे हर साल 50 लाख पेड़ लगाएंगे और इसकी हर तिमाही निगरानी की जाएगी.
उन्होंने कहा कि वे वनों का संरक्षण और कायाकल्प करेंगे और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि खोदा गया स्थान हमेशा ढंका रहे. पार्टी ने वादा किया है कि सरकार हानिकारक धूल वाले क्षेत्रों का डिजिटल नक्शा बनाएगी और इस संबंध में कार्य योजना तैयार किया जाएगा.
लेकिन कांग्रेस ने भी निर्माण गतिविधि के संबंध में कानून बनाने की आवश्यकता को नजरअंदाज कर दिया है.
औद्योगिक प्रदूषण
दिल्ली के आसपास थर्मल पावर स्टेशन औद्योगिक प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत हैं और उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए समय सीमा से चूक गए हैं. लेकिन, सभी तीन राजनीतिक पार्टियां यह वादा करने में विफल रहीं कि वे दिल्ली में वायु गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से इन उद्योगों से उत्सर्जन पर अंकुश लगाएंगे.