प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारें बाध्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि सरकारी पदों पर पदोन्नति में आरक्षण को एक मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है.

(फोटो: पीटीआई)

कोर्ट ने कहा कि सरकारी पदों पर पदोन्नति में आरक्षण को एक मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में ये बात दोहराते हुए कहा कि सरकारी पदों पर पदोन्नति में आरक्षण को एक मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस एल. नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकारें प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं. यहां तक कि अदालतें ऐसे मामलो में आरक्षण प्रदान करने के लिए राज्यों को निर्देश जारी नहीं कर सकती हैं.

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने सात जनवरी के एक फैसले में कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है. पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने के लिए किसी व्यक्ति के पास कोई मौलिक अधिकार नहीं है. अदालत द्वारा राज्य सरकार को आरक्षण प्रदान करने का निर्देश देने के संबंध में कोई आदेश जारी नहीं किया जा सकता है.’

संविधान पीठ की उन मिसालों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) और 16 (4-ए) व्यक्ति को पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का मौलिक अधिकार नहीं देता है.

ये अनुच्छेद राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए नियुक्ति और पदोन्नति के मामलों में आरक्षण देने का अधिकार देते हैं ‘केवल तब जब राज्य को लग रहा हो कि वे राज्य की सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है.’

फैसले में कहा गया, ‘प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता राज्य की व्यक्तिपरक संतुष्टि के भीतर का मामला है.’ इस प्रकार राज्य सरकार के पास परिस्थितियों के आधार पर विचार कर आरक्षण प्रदान करने का विशेषाधिकार है.

कोर्ट ने कहा, ‘यह तय कानून है कि राज्य सरकार को सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति के लिए आरक्षण देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता. इसी तरह, राज्य पदोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण करने के लिए बाध्य नहीं हैं.’

हालांकि अगर राज्य अपने विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करता है और प्रमोशन में आरक्षण देने का प्रावधान करता है तो सबसे पहले उसे इस तरह के आंकड़े इकट्ठा करने होंगे जिससे ये स्पष्ट होता हो सरकारी पदों पर किसी विशेष समुदाय या वर्ग का प्रतिनिधित्व कम है.

यदि सरकारी पदों पर पदोन्नति में एससी/एसटी आरक्षण प्रदान करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी जाती है तो उसे कोर्ट के सामने ऐसे आंकड़े पेश करने होंगे जो ये साबित कर सके कि ये आरक्षण देना जरूरी था और इससे प्रशासन की दक्षता को प्रभावित नहीं होती है.

यह निर्णय उत्तराखंड के लोक निर्माण विभाग में सहायक इंजीनियर (सिविल) के पदों पर पदोन्नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण के संबंध में दायर कई अपीलों पर आधारित है.