बिहार के महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के मौजूदा कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा पर आरोप था कि मेरठ विश्वविद्यालय में उन्हें फ़र्ज़ी तरीके से रजिस्ट्रार बनाया गया था. इसके अलावा यह भी दावा किया गया है कि उन्हें ग़लत तरीके से प्रमोशन देकर रीडर से प्रोफेसर बनाया गया था.
नई दिल्ली: बिहार के मोतिहारी स्थित महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के मौजूदा कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा की नियुक्ति में गड़बड़ी करने का मामला सामने आया है. आरोप है कि शर्मा की नियुक्ति के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के सामने पेश किए गए दस्तावेजों में उनके खिलाफ लंबित विजिलेंस जांच को छिपा लिया गया था.
इस संबंध में एमएचआरडी के सचिव अमित खरे को बीते 27 जनवरी को पत्र लिखकर शिकायत की गई है. नियम के मुताबिक, अगर किसी कैंडिडेट का विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं रहता है तो उनको कुलपति पद के लिए अयोग्य माना जाता है.
कुलपति बनने से पहले संजीव कुमार शर्मा उत्तर प्रदेश के मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र विभाग के एचओडी थे. प्रोफेसर शर्मा ने बीए से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई भी मेरठ विश्वविद्यालय में की थी.
वे साल 2007 से 25 फरवरी 2019 तक इस विश्वविद्यालय में पढ़ाने का काम करते रहे थे. इसी बीच साल 2016 में उन्हें रजिस्ट्रार बनाया गया था.
आरोप था कि विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति एसपी ओझा ने फर्जी तरीके से इस पद पर उनकी नियुक्ति की थी. इसके अलावा यह भी आरोप था कि उन्हें गलत तरीके से रीडर से प्रोफेसर बनाकर उन्हें प्रमोशन दिया गया.
इन मामलों को लेकर साल 2017 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13 (1) (डी) और धारा 13 (2) के तहत मामला दर्ज किया गया था जिसमें एसपी ओझा को मुख्य आरोपी बनाया गया था. इन धाराओं के तहत अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है.
एफआईआर के मुताबिक तत्कालीन कुलपति सन्त प्रकाश ओझा ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए 11.09.2006 को आदेश जारी कर डॉ. संजीव कुमार शर्मा को रजिस्ट्रार बना दिया था, जबकि कुलपति के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं होती है.
इसके अलावा एफआईआर में यह भी लिखा गया है कि ओझा ने अपने पद को दुरुपयोग करते हुए शर्मा को लाभ पहुंचाने के लिए उनकी रीडर से प्रोफेसर पद पर प्रमोशन किया. जबकि दिसंबर 2006 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सन्त प्रकाश ओझा को पत्र लिखकर कहा था कि संजीव द्वारा आठ साल की सेवा पूर्ण न करने के कारण उन्हें प्रोफेसर के पद पर प्रमोट न किया जाए.
हालांकि द वायर द्वारा देखे गए दस्तावेजों से पता चलता है कि कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए एमएचआरडी को दी जाने वाली विजिलेंस क्लीयरेंस में ये सारी जानकारी नहीं दी गई है. ये जानकारी उस संस्थान द्वारा दी जानी होती है जिस संस्थान में अभ्यर्थी कार्यरत होता है, यानी कि मेरठ विश्वविद्यालय को ये जानकारी देनी थी.
मंत्रालय के प्रोफॉर्मा पर लिखा है कि ‘क्या अभ्यर्थी के खिलाफ पिछले 10 सालों में विजिलेंस एंगल से किसी दुराचार की जांच की गई थी’. इसके जवाब में शर्मा के विजिलेंस क्लीयरेंस पत्र में लिखा गया ‘नहीं’.
जब द वायर ने मेरठ विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार धीरेंद्र कुमार से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उस समय संस्थान को एफआईआर की जानकारी नहीं थी. अगर एफआईआर दर्ज की गई है तो जांच जरूर होगी.
उन्होंने कहा, ‘यहां पर मेरी नियुक्ति अप्रैल 2019 में हुई है. ये विजिलेंस क्लीयरेंस मेरे से पहले के तत्कालीन रजिस्ट्रार बीपी कौशल द्वारा दिया गया था. मैने जो रिकॉर्ड देखा है उससे पता चलता है कि विश्वविद्यालय के पास संजीव शर्मा के खिलाफ दर्ज एफआईआर की जानकारी नहीं थी. अब ये मामला संज्ञान में आया है तो जांच जरूर होगी.’
हालांकि इस मामले में पिछले साल अगस्त महीने में सतर्कता विभाग ने क्लोजर रिपोर्ट सौंप दी थी लेकिन कोर्ट ने अभी इसे स्वीकार नहीं किया है.
खास बात ये है कि इससे पहले एक ऐसा ही मामला सामने आया था जहां नियुक्ति प्रक्रिया में अभ्यर्थी का विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं होने की वजह से नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया था.
बिहार के महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के पहले कुलपति के लिए तीन नाम शॉर्टलिस्ट किए गए थे, जिसमें हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के डीन एवं परीक्षा नियंत्रक प्रोफेसर अरविंद कुमार अग्रवाल, बिलासपुर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर गौरीदत्त शर्मा और टीएम भागलपुर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रोफेसर रमाशंकर दुबे शामिल थे.
हालांकि नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान पता चला था कि असम विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति तपोधिर भट्टाचार्जी के खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने पीआईडीआर के तहत शिकायत दर्ज किया था. इस मामले में प्रोफेसर गौरीदत्त शर्मा का भी नाम था. इस आधार पर एमएचआरडी ने कहा था कि गौरीदत्त शर्मा के नाम पर कुलपति पद के लिए विचार नहीं किया जा सकता है.
द वायर ने चार ऐसे लोगों से बात की जिन्होंने इस संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय, राष्ट्रपति भवन और एमएचआरडी को पत्र लिखकर इस बारे में शिकायत की है. इसमें सामाजिक कार्यकर्ता, वकील और कुलपति पद के आवेदनकर्ता शामिल हैं.
मोतिहारी के डॉ. श्रीकृष्ण सिन्हा विमेंस कॉलेज के प्रिंसिपल रतनेश कुमार आनंद इस पद के लिए टॉप-20 में शॉर्टलिस्ट हुए थे और इंटरव्यू तक पहुंचे थे, हालांकि वे आगे नहीं जा सके. आनंद ने आरोप लगाया है कि योग्य लोगों को दरकिनार करते हुए अयोग्य व्यक्ति को कुलपति बनाया गया है.
उन्होंने कहा, ‘कई ऐसे कारण हैं जिसके आधार पर ये योग्य नहीं हैं. पहला न्यूनतम 10 साल के प्रोफेसर पद पर योग्यता होनी चाहिए, जो इनके पास नहीं है. इनका प्रोफेसरशिप ही विवादित है. इनके ऊपर चरित्र हनन का भी आरोप है, जो कि अभी भी लंबित है. इनका विजिलेंस क्लीयरेंस भी नहीं है.’
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय ने इस संबंध में कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया गया है.