क्या झारखंड में पुलिस ने एक निर्दोष को नक्सली बताकर मार डाला?

झारखंड के गिरिडीह में मारे गए व्यक्ति को मज़दूर संगठन समिति व आदिवासी समाज ने बताया निर्दोष, नौ जून को हुई थी मुठभेड़.

/

झारखंड के गिरिडीह में मारे गए व्यक्ति को मज़दूर संगठन समिति व आदिवासी समाज ने बताया निर्दोष, नौ जून को हुई थी मुठभेड़.

giridih
झारखंड के गिरिडीह जिले में नौ जून को पारसनाथ पहाड़ी पर हुई मुठभेड़ में सीआरपीएफ और पुलिस ने जिस मोतीलाल बास्के को मार गिराया था, वह मज़दूर और दुकानदार था. यह दावा मज़दूर संगठन समिति व आदिवासी समाज की तरफ से किया गया है. उनका कहना है कि वह पारसनाथ पर्वत स्थित चंद्रप्रभु टोंक के पास दाल-भात एवं सत्तू की दुकान चलाता था.

साथ ही वह डोली मज़दूरी का काम भी करता था. वह मज़दूर संगठन समिति रजिस्टर्ड डोली मज़दूर था, जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर 2065 था. मज़दूर संगठन समिति ने इस मामले में पुलिस पर आरोप लगाया है कि निर्दोष को मार कर पुलिस उसे नक्सली बता रही है.

दैनिक भास्कर के मुताबिक, पीरटांड के जनप्रतिनिधियों व मज़दूर संगठन समिति ने मोतीलाल को निर्दोष बताया है. उनका कहना है कि मोतीलाल बास्के डोली मज़दूर था. पुलिस उसके पास से हथियार व कारतूस बनाने की बात कह रही है जो बिल्कुल झूठ व निराधार है. मृतक का घर चिरुवां बेड़ा था जबकि ढोलकट्टा में प्रधानमंत्री योजना के तहत सरकारी सहायता पर घर बना रहा था. डीपीसी तक ढलाई हो चुका था.

dainik bhaskar

प्रभात खबर के अनुसार मज़दूर संगठन समिति के सचिव बच्चा सिंह ने कहा है मोती लाल बास्के का कोई नक्सली रिकॉर्ड नहीं है. इसलिए सरकार उसके परिजनों को मुआवजा दे. समिति के पीरटांड के प्रमुख सिकंदर हेंब्रम ने भी जिला प्रशासन से घटना की जांच कर मोती लाल बास्के के परिजनों को मुआवजा देने की मांग की है.

naxal
पुलिस और सीआरपीएफ की संयुक्त कार्रवाई में मारे गए मोतीलाल बास्के और उनका घर. (फोटो साभार: दैनिक जागरण)

उल्लेखनीय है कि नौ जून को नक्सलियों से हुई मुठभेड़ के बाद पुलिस ने एक शव बरामद किया था. मृतक के शरीर पर नक्सली वरदी नहीं थी. वह लुंगी पहने हुए था. घटना के दूसरे दिन डीजीपी समेत अन्य अधिकारी पारसनाथ पहुंचे थे. अधिकारियों ने मुठभेड़ में शामिल जवानों के बीच एक लाख रुपये पुरस्कार का वितरण किया था.

नक्सली के रूप में चिह्नित था मोतीलाल: डीआईजी

उत्तरी छोटानगपुर प्रमंडल के  डीआईजी भीमसेन टुटी ने घटना के बारे में बताया है कि कई लोग दोहरा जीवन जीते हैं. मोतीलाल बास्के नक्सली संगठन का समर्थक था और दस्ते के साथ भी घूमता था. जिस जगह पर मुठभेड़ हुई है, उस जगह पर अाम लोगों की उपस्थिति संभव नहीं है. उसके पास से एसएलआर और पिट्ठू भी मिले हैं. इन कारणों से मोतीलाल के नक्सली दस्ते में होने पर कोई संदेह की गुंजाइश नहीं है.