हाल ही में मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कई बदलावों को मंजूरी दी है. इसके तहत केंद्र ने अपनी प्रीमियम सब्सिडी को घटा ली है. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे राज्यों पर काफी भार बढ़ सकता है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बीते बुधवार को ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ (पीएमएफबीवाई) को किसानों के लिए स्वैच्छिक बनाने का फैसला किया. अब ऐसे किसान जिन्होंने फसल कर्ज ले रखा है या जो फसल कर्ज लेना चाहते हैं, वे सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को अपनाने या न अपनाने को स्वतंत्र होंगे.
इसके अलावा पीएमएफबीवाई और ‘पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस)’ के अंतर्गत केंद्रीय सब्सिडी असिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिए प्रीमियम की दर के 30 प्रतिशत तक सीमित होगी. इसी तरह सिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिए यह सब्सिडी 25 प्रतिशत प्रीमियम दर तक सीमित रखी गई है. 50 प्रतिशत या उससे अधिक सिंचित क्षेत्र वाले जिलों को सिंचित क्षेत्र/जिला माना जाएगा.
पहले योजना में क्या था?
अब तक ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ के तहत खरीफ फसलों की 2 प्रतिशत बीमा प्रीमियम राशि किसान द्वारा दी जाती थी व बाकी 98 प्रतिशत बीमा प्रीमियम राशि का भुगतान केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा 50-50 प्रतिशत की हिस्सेदारी में किया जाता था. वहीं किसानों को रबी फसलों के लिए 1.5 फीसदी और बागवानी एवं वाणिज्यिक फसलों के लिए पांच फीसदी की प्रीमियम राशि देनी होती थी. बाकी का प्रीमियम केंद्र और राज्य सरकारों में बराबर बंटता था.
पहले केंद्रीय सब्सिडी प्राप्त करने के लिए प्रीमियम दर की कोई सीमा तय नहीं थी. हालांकि अब मोदी सरकार ने यह निर्णय लिया है कि केंद्र सिंचित क्षेत्रों के लिए 25 प्रतिशत तक प्रीमियम और असिंचित क्षेत्रों के लिए 30 फीसदी तक प्रीमियम दर के लिए ही सब्सिडी देगी. विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी वजह से राज्य सरकारों पर बोझ बढ़ सकता है.
उदाहरण के तौर पर पुराने नियम के मुताबिक अगर किसी किसान के खरीफ फसल का एक लाख रुपये का बीमा होता है और प्रीमियम की दर 40 फीसदी तय की जाती है, तो इसका दो फीसदी यानी कि 2000 रुपये किसान को और बाकी का 38 फीसदी यानी कि 38,000 रुपये केंद्र और राज्य सरकार द्वारा बराबर-बराबर (19000 रुपये) भुगातान किया जाता था.
नए नियम के मुताबिक उसी एक लाख रुपये के बीमा और 40 फीसदी प्रीमियम दर पर केंद्र सिर्फ 30 फीसदी प्रीमियम दर के लिए सब्सिडी देगा. इसका मतलब ये हुआ कि इस 30 फीसदी में से 14 फीसदी केंद्र, 14 फीसदी राज्य और दो फीसदी किसान को देना होगा. बाकि जितनी अतिरिक्त प्रीमियम होगा उसका भार राज्य सरकार पर पड़ सकता है.
बदलावों से कौन होगा प्रभावित
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इसका एक मतलब यह भी निकाला जा रहा है कि जहां पर प्रीमियम दर 30 फीसदी से ज्यादा होगा, वहां के लिए केंद्र सब्सिडी देना बंद कर सकता है. सरकार द्वारा बीते 19 फरवरी को जारी किए गए प्रेस रिलीज में ‘एल’ पैराग्राफ में लिखी गई बात इस ओर इशारा करती है.
इस पैरा में लिखा है, ‘ऊपर लिखी गईं बातों के अलावा कृषि विभाग विभिन्न हितधारकों/एडेंसियों से राय-सलाह कर अधिक प्रीमियम वाली फसलों के लिए राज्य आधारित योजना बनाएगा.’
साल 2018-19 के दौरान पीएमएफबीवाई और आरडब्ल्यूबीसीआईएस के तहत प्रीमियम दर राष्ट्रीय स्तर पर औसतन 12.32 फीसदी था. लेकिन कुछ जिलों में पीमियम दर हाल के सालों में 30 फीसदी से अधिक पर पहुंच गई है. अखबार के मुताबिक गुजरात के राजकोट में खरीफ सीजन में मूंगफली का प्रीमियम दर 49 फीसदी था. वहीं तमिलनाडु के रामनाथपुरम में रबी धान फसल का प्रीमियम 42 फीसदी था.
साल 2018-19 के दौरान पीएमएफबीवाई और आरडब्ल्यूबीसीआईएस के तहत कुल 29,105 करोड़ रुपये का प्रीमियम इकट्ठा किया गया था, इसमें से किसानों की हिस्सेदारी 4,918 करोड़ रुपये थी. केंद्र सरकार ने 12,034 और राज्यों ने 12,152 करोड़ रुपये दिया था. अब नए बदलावों के बाद राज्यों पर भार बढ़ने की संभावना है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा फरवरी 2016 में शुरू की गई इस फसल बीमा योजना के तहत, ऋण लेने वाले किसानों के लिये यह बीमा पालिसी लेना अनिवार्य किया गया था. पीएमएफबीवाई में ऐसे प्राकृतिक जोखिमों से किसान की खेती को हुए नुकसान के लिए बीमा सहायता दी जाती है जिन्हें टाला नहीं जा सकता. इसमें फसल बुवाई से पहले और कटाई के बाद तक के लिए व्यापक फसल बीमा सुरक्षा प्रदान की जाती है.
मंत्रिमंडल ने चालू पीएमएफबीवाई और आरडब्ल्यूबीसीआईएस योजनाओं के कुछ मापदंडों एवं प्रावधानों के संशोधन को मंजूरी दी है. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि इस समय कुल किसानों में से 58 फीसदी ने फसल कर्ज ले रखे हैं. बाकी 42 फीसदी ने कर्जदार नहीं लिए हैं.
तोमर ने कहा कि इस फैसले से इन योजनाओं का लाभ लेने वाले किसानों की संख्या में तत्काल गिरावट देखने को मिल सकती है लेकिन अंतत: स्कीम को चुनने वाले किसान बढ़ेगे. मंत्री ने कहा कि सरकार फसल बीमा पॉलिसी की आवश्यकता के बारे में किसानों को जागरूक करने का अभियान शुरू करेगी.
योजना में बाकी सुधार के बारे में तोमर ने कहा कि बीमा कंपनियों को व्यवसाय का आवंटन निविदा प्रक्रिया के तहत होगा जो तीन वर्षो के लिए होगा जो अभी एक से तीन वर्ष की अवधि के लिए है. मंत्रिमंडल के निर्णय के अनुसार इस योजना के अनुपालन के लिए प्रशासनिक खर्चों का प्रावधान कुल आवंटन के तीन प्रतिशत के बराबर होगा. इसकी व्यवस्था केंद्र सरकार तथा योजना लागू करने वाली राज्य सरकार द्वारा मिल कर किया जाएगा.