आईसीसी की एकदिवसीय और ट्वेंटी-20 क्रिकेट की विभिन्न श्रेणियों को जोड़कर देखें तो 11 भारतीय महिला क्रिकेटर टॉप 10 रैंकिंग वाली हैं जबकि पुरुष क्रिकेटरों की संख्या महज 6 है. वर्तमान पुरुष क्रिकेटरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन के बावजूद देश में महिला क्रिकेट को न दर्शकों से समुचित तवज्जो मिलती है न ही मीडिया से.
सातवां महिला ट्वेंटी-20 क्रिकेट विश्वकप शुक्रवार 21 फरवरी से ऑस्ट्रेलिया में शुरू हो चुका है. पहले मैच में भारत और ऑस्ट्रेलिया आमने-सामने हैं. इसके पिछले छह संस्करणों में से चार ऑस्ट्रेलिया ने जीते हैं और एक-एक बार इंग्लैंड और वेस्टइंडीज को सफलता हाथ लगी है.
भारत का सफर कभी सेमीफाइनल से आगे नहीं बढ़ा. भारतीय महिलाएं 2009, 2010 और 2018 में सेमीफाइनल की बाधा पार नहीं कर सकीं. हालांकि, इस बार भी भारत की दावेदारी मजबूत है.
ऑस्ट्रेलिया में ही संपन्न हुई हालिया त्रिकोणीय श्रृंखला में वह विश्वकप जीतने की सबसे मजबूत दावेदार दो टीमों ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड (विश्व रैंकिंग में क्रमश: नंबर एक और दो) को हरा चुका है. वो बात अलग है कि फाइनल में उसे ऑस्ट्रेलिया के हाथों हार झेलनी पड़ी थी.
बहरहाल, यहां चर्चा विश्वकप में भारतीय टीम की हार-जीत की संभावनाओं पर नहीं, बल्कि महिला क्रिकेट के प्रति भारतीय दर्शकों और मीडिया के सौतेले रवैये पर करना जरूरी है.
21 फरवरी को ही भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट मैच खेल रही है. हर ओर बस उसी मैच की चर्चा रही है कि टीम की अंतिम एकादश क्या होगी! मयंक अग्रवाल के साथ ओपनिंग पृथ्वी शॉ करेंगे या शुभमान गिल, क्या आउट ऑफ फॉर्म चल रहे जसप्रीत बुमराह को टीम में जगह मिलेगी? वगैरह-वगैरह.
दूसरी ओर उसी दिन भारतीय महिलाएं अपनी विश्वकप कैंपेन का आगाज कर रही हैं और जगजाहिर है कि टेस्ट मैच से अधिक महत्वपूर्ण विश्वकप मैच है. लेकिन क्या क्रिकेट प्रेमी देश और देश के मीडिया में महिला ट्वेंटी-20 विश्वकप को लेकर उतनी चर्चा हो रही है जितनी भारतीय पुरुष टीम के न्यूजीलैंड दौरे को लेकर?
क्या 21 फरवरी को भारतीय महिलाओं के विश्वकप मैच को लेकर भी उतनी बेसब्री, उत्सुकता और दीवानगी देखी गयी है जितनी कि पुरुष टीम के टेस्ट मैच को लेकर है?
वास्तविकता तो यह है कि विश्वकप होने की भी जानकारी अधिकांश लोगों को नहीं है. विश्वकप निपट भी जाएगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा. हां, अगर भारतीय महिला टीम अच्छा प्रदर्शन करके फाइनल या सेमीफाइनल तक पहुंचती है तो जरूर हर ओर उनकी उपलब्धि पर चर्चा होगी, लेकिन सेमीफाइनल और फाइनल तक का सफर तो उन्हें अकेले ही तय करना होगा.
2017 के महिला एकदिवसीय विश्वकप में भी यही हुआ था. विश्वकप के लीग मैचों तक किसी ने टीम की सुध नहीं ली. जब भारतीय महिलाएं लगातार जीत दर्ज करते हुए पहले सेमीफाइनल और फिर फाइनल तक पहुंची तो महिला क्रिकेट को बढ़ावा देने, उन पर गर्व करने, पुरुषों के मुकाबले उनके साथ पक्षपात किए जाने की बातें होने लगीं.
कप्तान मिताली राज की तुलना धोनी और कोहली से की जाने लगी. स्मृति मंधाना और हरमनप्रीत कौर को उनकी बल्लेबाजी के चलते वीरेंद्र सहवाग और युवराज सिंह बताया जाने लगा. यही कहानी 2018 के ट्वेंटी-20 विश्वकप में दोहराई गई.
तब लगा था कि अब महिला क्रिकेट के साथ क्रिकेट फैंस और मीडिया के सौतेले रवैये का अंत होगा. उन्हें भी बराबर का सम्मान मिलेगा, लेकिन विश्वकप के उस अच्छे प्रदर्शन पर लहालोट होने वालों ने उसके बाद महिला क्रिकेट की सुध नहीं ली. जिस मिताली को धोनी और कोहली बता रहे थे, उन्हीं मिताली के विवादित रूप से प्लेइंग इलेवन से बाहर होने पर मुद्दा नहीं बना.
मिताली 20 साल तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाली विश्व की पहली महिला क्रिकेटर बनीं, लेकिन कहीं खास चर्चा नहीं हुई. जबकि जिन धोनी से उनकी तुलना हुई, वे अपनी मर्जी से क्रिकेट से ब्रेक पर गये, बावजूद इसके एक दिन ऐसा नहीं जाता कि धोनी के भविष्य को लेकर चर्चा सुनने न मिले.
खेल के आर्थिक पहलू को देखते हुए तर्क हो सकता है कि क्रिकेट का राजस्व (रेवेन्यू) पुरुष क्रिकेट से ही निकलता है, इसलिए उसे अधिक तवज्जो मिलती है. फिर ये मौकापरस्ती क्यों कि यदि महिला क्रिकेटर अच्छा प्रदर्शन करें तो उस मौके को भुनाने की होड़ लगती है?
पिछले दिनों स्मृति मंधाना से पुरुष और महिला क्रिकेटरों के बीच की वेतन विसंगति पर जब एक प्रश्न किया गया तो उनका जवाब था, ‘फिलहाल हमारा ध्यान सिर्फ भारत के लिए मैच जीतने, दर्शकों को मैदान पर लाने और रेवेन्यू जुटाने पर है. अगर ऐसा होता है तो अन्य सभी चीजें ठीक हो जाएंगी और इसके लिए हमें अच्छा प्रदर्शन करना होगा.’
जहां तक रेवेन्यू का मसला है तो खेल की लोकप्रियता ही रेवेन्यू बढ़ाती है और लोकप्रियता फैंस व मीडिया से आती है. लेकिन सवाल उठता है कि जब मैदान और टीवी पर दर्शक नहीं जुटेंगे, महिला क्रिकेट से जुड़े मसले खबरों में नहीं होंगे, तो खेल को निवेशक कैसे मिलेंगे?
कहा जाता है कि अच्छा प्रदर्शन दर्शकों और मीडिया को आकर्षित करता है. स्मृति भी यही मानती हैं. लेकिन महिला क्रिकेट के मामले में क्या केवल ‘विश्वकप का अच्छा प्रदर्शन’ मायने रखता है? क्या विश्वकप जैसे टूर्नामेंट के सेमीफाइनल और फाइनल में पहुंचकर बार-बार उन्हें खुद को साबित करना होगा? छह बार लगातार एशिया कप जीतना ‘अच्छे प्रदर्शन’ की श्रेणी में आने के लिए पर्याप्त नहीं है?
क्योंकि यदि विश्वकप के अलावा आम मैचों के अच्छे प्रदर्शन की बात होती तो भारतीय महिला क्रिकेटर तो पिछले कुछ सालों से लगातार सफलता के परचम लहरा रही हैं. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) की महिला टीम रैंकिंग में भारत एकदिवसीय क्रिकेट में विश्व की दूसरे नंबर की टीम है और ट्वेंटी-20 में विश्व की चौथे नंबर की.
भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम की रैंकिंग भी एकदिवसीय में दूसरी और ट्वेंटी-20 में चौथी है. यानी कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम का प्रदर्शन पुरुष टीम के समान ही है.
व्यक्तिगत प्रदर्शन की बात करें तो आईसीसी महिला एकदिवसीय क्रिकेट रैंकिंग के टॉप 10 बल्लेबाजों में एक भारतीय (स्मृति मंधाना, चौथे पायदान पर), टॉप 10 गेंदबाजों में तीन भारतीय (झूलन गोस्वामी, पूनम यादव, शिखा पांडे क्रमश: छठवें, सातवें, आठवें पायदान पर), टॉप 10 ऑलराउंडर में दो भारतीय (दीप्ति शर्मा और शिखा पांडे क्रमश: चौथे और नौवें पायदान पर) हैं.
वहीं आईसीसी पुरुष एकदिवसीय क्रिकेट रैंकिंग के टॉप 10 बल्लेबाजों में दो भारतीय (विराट कोहली और रोहित शर्मा क्रमश: पहले और दूसरे पायदान पर), टॉप 10 गेंदबाजों में एक भारतीय (जसप्रीत बुमराह, दूसरे पायदान पर), टॉप 10 ऑलराउंडर में एक भारतीय (रविंद्र जडेजा, सातवें पायदान पर) हैं.
ट्वेंटी-20 क्रिकेट रैंकिंग की बात करें तो, महिला क्रिकेट के टॉप 10 बल्लेबाजों में तीन भारतीय (स्मृति मंधाना, जेमिमा रोड्रिग्ज और हरमनप्रीत कौर क्रमश: चौथे, सातवें और नौवें पायदान पर), टॉप 10 गेंदबाजों में दो भारतीय (दीप्ति शर्मा और पूनम यादव, संयुक्त रूप से चौथे पायदान पर) हैं.
पुरुष क्रिकेट के टॉप 10 बल्लेबाजों में दो भारतीय (लोकेश राहुल और विराट कोहली क्रमश: दूसरे और दसवें पायदान पर), टॉप 10 गेंदबाजों और ऑलराउंडरों में कोई भारतीय पुरुष नहीं है.
कुल मिलाकर देखें तो एकदिवसीय क्रिकेट के विभिन्न श्रेणियों के टॉप 10 किक्रेटरों में कुल छह भारतीय महिला क्रिकेटर हैं जबकि पुरुष क्रिकेटरों की संख्या चार है. वहीं ट्वेंटी-20 क्रिकेट में टॉप 10 रैंकिंग की महिला क्रिकेटरों की संख्या पांच हैं, जबकि पुरुष क्रिकेटरों की संख्या महज दो है.
एकदिवसीय और ट्वेंटी-20 क्रिकेट को जोड़कर देखें तो कुल 11 भारतीय महिला क्रिकेटर टॉप 10 रैंकिंग वाली हैं जबकि पुरुष क्रिकेटरों की संख्या महज 6 है.
इस लिहाज से तो भारतीय महिला क्रिकेटरों का प्रदर्शन पुरुष क्रिकेटरों से इक्कीस ही साबित होता है. बावजूद इसके दर्शक और मीडिया आकर्षित नहीं हो रहे हैं तो स्पष्ट है कि उनके आम मैचों के प्रदर्शन को कोई तवज्जो नहीं मिलती. बस जब विश्वकप में वे सेमीफाइनल या फाइनल खेलती हैं तब ही उनकी बात होती है, बाद में भुला दिया जाता है.
अन्यथा और क्या कारण हैं कि जब आम मैचों में स्मृति मंधाना सबसे तेज अर्द्धशतक जड़ने वाली भारतीय महिला बनती हैं तो चर्चा नहीं होती? क्या कारण हैं कि मिताली राज के एकदिवसीय महिला क्रिकेट में सबसे अधिक रन बनाने वाली बल्लेबाज बनने पर बात नहीं होती?
विश्व में एकदिवसीय क्रिकेट में 4000 से अधिक रन बनाने वाली महिला क्रिकेटरों में मिताली एकमात्र ऐसी क्रिकेटर हैं जिनका औसत 50 से अधिक है, लेकिन शायद ही किसी को यह पता हो.
15 साल की शैफाली वर्मा सबसे कम उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अर्द्धशतक लगाने के सचिन तेंदुलकर के तीस साल पुराने भारतीय रिकॉर्ड को तोड़ देती हैं, लेकिन अखबार के किसी एक कोने में एक कॉलम की खबर लिख दी जाती है. जबकि उसी अखबार में विराट कोहली तो छोड़िए, पुरुष गेंदबाज दीपक चाहर तक के चोटिल होने की खबर तीन कॉलम में छपती है.
शायद ही किसी को पता हो कि पिछले ही हफ्ते भारतीय महिलाओं ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ रिकॉर्ड रन चेस किया था, इसलिए महिला क्रिकेट के प्रति सौतेला रवैया रखकर केवल ट्रेंड में बने रहने के लिए इसकी बात करेंगे तो यह क्रिकेट आगे नहीं बढ़ेगा. फिर कैसे इस क्रिकेट से रेवेन्यू निकलेगा?
हकीकत यही है कि कोई भी खेल बिना प्रशंसकों के आगे नहीं बढ़ सकता. 2018 में भारतीय फुटबॉल टीम के एक अंतरराष्ट्रीय मैच के दौरान मैदान पर दर्शक नहीं जुटे थे. मैच के बाद टीम के कप्तान सुनील छेत्री ने एक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी करके फुटबॉल फैंस से अपील की कि हमारा हौसला बढ़ाने मैदान पर आएं.
ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि खेल के मैदान पर किसी टीम के प्रशंसक उसके 12वें खिलाड़ी के समान होते हैं. जैसे इंग्लैंड क्रिकेट टीम के लिए प्रशंसकों का ‘वार्मी आर्मी’ ग्रुप है, उसकी मौजूदगी ही विपक्षी टीम पर एक दबाव बना देती है.
लेकिन अफसोस कि भारतीय महिलाओं को यह 12वां खिलाड़ी नसीब नहीं होता. संभव है कि जिस दिन यह 12वां खिलाड़ी टीवी, इंटरनेट और मैदान पर भारतीय महिलाओं का हौसला बढ़ाने लगे तो वे उनका प्रदर्शन और मनोबल नई ऊंचाइयां छू ले.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)