जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत लिए जाने को उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. पिछले साल अगस्त में राज्य का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने के बाद से ही महबूबा नज़रबंद हैं.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की जनसुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका पर बुधवार को जम्मू कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा.
जस्टिस अरूण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा को एक हलफनामा जमा करने का निर्देश भी दिया जिसमें कहा गया हो कि उन्होंने उच्च न्यायालय समेत किसी अन्य न्यायिक संस्था में अपनी मां की हिरासत को चुनौती नहीं दी है.
इल्तिजा ने शीर्ष अदालत में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है. इसमें उन्होंने सरकार के पांच फरवरी के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें महबूबा को हिरासत में रखने के लिए जन सुरक्षा कानून के प्रावधान लगाए गए हैं. मामले की सुनवाई अब 18 मार्च को होगी.
लाइव लॉ के मुताबिक मुफ्ती की बेटी इल्तिजा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि हिरासत का आदेश तब आया है जब मुफ्ती पहले से ही 5 अगस्त, 2019 से नजरबंद हैं.
इल्तिजा ने अदालत में हिरासत आदेश प्रस्तुत किया है जो वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्रीनगर द्वारा तैयार किए गए ‘डोजियर‘ पर आधारित है और व्यक्तिगत टिप्पणियों से भरा हुआ है. आदेश में बताए गए आधार को योजनाबद्ध, कठिन मुखिया, अल्पायु विवाह, डैडीज गर्ल, आदि जैसे शब्दों से भरा गया है.
याचिका में कहा गया है कि ये आदेश पूरी तरह से डोजियर पर आधारित है जो स्पष्ट रूप से पक्षपाती, निंदनीय और अपमानजनक है और जिस पर किसी भी व्यक्ति को उसकी मौलिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए भरोसा नहीं करना चाहिए.
उसने आगे कहा है कि अब पीएसए के तहत हिरासत के आदेश इसलिए दिए गए हैं क्योंकि सीआरपीसी की धारा 107 और 117 के तहत हिरासत की अधिकतम अवधि के छह महीने की अवधि समाप्त हो रही थी.
जिस दिन ये आदेश जारी किया गया हिरासती ने रिहाई के लिए एक बॉन्ड या ज़मानत पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था. उन्होंने बताया कि इस बॉन्ड में शर्त रखी गई थी कि मुफ्ती राज्य में हाल की घटनाओं पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगी.
उस बॉन्ड में बार–बार हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था, जिसमें लिखा गया गया था कि ‘मौजूदा परिस्थितियों पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगी या बयान जारी नहीं करूंगी या सार्वजनिक नहीं करूंगी. जम्मू और कश्मीर राज्य में हाल की घटनाओं से संबंधित सार्वजनिक सभाओं में भाषण या भाग नहीं लूंगी. क्योंकि उनमें राज्य और किसी भी हिस्से में शांति और कानून व्यवस्था को खतरे में डालने की क्षमता है.
इल्तिजा द्वारा पेश किए गए डोजियर में उद्धृत एक अन्य कारण यह था कि मुफ्ती ने धारा 370 को असंवैधानिक रूप से निरस्त करने का विरोध किया था जो अभिव्यक्ति की आजादी को दंडित करने जैसा है.
याचिका में कहा गया है कि यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि मुफ्ती सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए पूर्वाग्रही तरीके से काम कर रही थीं और इस प्रकार पीएसए की धारा 8(बी) का आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन है.
इन प्रस्तुतियों के साथ, इल्तिजा ने मांग की है कि हिरासत के आदेश को रद्द कर दिया जाए और हैबियस कॉरपस के तहत एक रिट जारी की जाए, जो राज्य के अधिकारियों को मुफ्ती को स्वतंत्रता को स्थापित करने की आज्ञा दे.
साथ ही याचिका में मुफ्ती को गैरकानूनी और असंवैधानिक हिरासत में रखने के लिए उचित मुआवजे की मांग भी की गई है.
इससे पहले इसी पीठ ने पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के खिलाफ पीएसए लगाने की सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर भी जम्मू कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया था. उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत हिरासत में लेने को उनकी बहन सारा अब्दुल्ला पायलट ने चुनौती दी थी.
मालूम हो कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों – उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया. पिछले साल अगस्त में जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद से ही ये दोनों नेता नजरबंद हैं.
उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर पीएसए के तहत तब मामला दर्ज किया गया जब उन्हें छह महीने एहतियातन हिरासत में लिए जाने की अवधि समाप्त हो रही थी. इसके साथ ही दो अन्य नेताओं पर भी पीएसए लगाया गया, जिनमें नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के वरिष्ठ नेता अली मोहम्मद सागर और पीडीपी के नेता सरताज मदनी शामिल हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)