ग्राउंड रिपोर्ट: दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाकों में हुई हिंसा की भयावहता के बाद मुस्तफ़ाबाद इलाके में कुछ ऐसे हिंदू परिवार भी हैं, जो यह मानते हैं कि दंगों की आंच से उन्हें बचाने के लिए उनके मुस्लिम पड़ोसियों ने बहुत मदद की.
नई दिल्ली: ‘दिल्ली में इतना बड़ा दंगा हुआ, लेकिन यहां पर किसी मंदिर, किसी हिंदू के घर को नुकसान नहीं पहुंचा है. मैं पिछले 30-32 साल से यहां रह रहा हूं. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हमेशा साथ दिया है.’ 70 वर्षीय महेश चंद जैन ने ये बात कही.
दिल्ली के मुस्तफाबाद में गुरुनानक नगर के ए-ब्लॉक में एक बेहद संकरी गली से होते हुए करीब 200 मीटर आगे जाने पर जैन का दोमंजिला मकान है. इस गली में दो हिंदुओं का मकान है बाकी सारे मुस्लिम हैं. बावजूद इसके इस क्षेत्र में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बीच महेश चंद का परिवार खुद को काफी सुरक्षित महसूस करता है.
उन्होंने कहा कि उन्हें कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि इस जगह को छोड़कर वे कहीं और जाएं. महेश चंद के बेटे सनोज ऊपर की मंजिल से हमारी बातें सुन रहे थे. थोड़ी देर बाद वो नीचे उतर कर आए और बताया, ‘हमारे बच्चों को कोई तकलीफ नहीं है. यहां के मोहल्ले वालों ने हमारी काफी मदद की. यहां मंदिर भी है, स्कूल भी है, सब कुछ सेफ है.’
सनोज जैन एक निजी कंपनी में नौकरी करते हैंऔर उनके दो बेटे हैं, जो पढ़ाई कर रहे हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि इस क्षेत्र में करीब 40-50 घर हिंदुओं के हैं. आमतौर पर चहल-पहल और लोगों की हलचल से भरी रहने वाली गलियां आजकल एकदम शांत हैं.
शाम होने से पहले ही लोग दरवाजा बंद कर लेते हैं. दंगे के डर ने लोगों को खुद के घरों में कैद कर दिया है. करीब तीन सौ मीटर और आगे चलने पर हम एक गली में पहुंचते हैं, जहां चार हिंदू परिवारों के घर हैं.
इसी गली में राम, सीता और हनुमान का मंदिर है. सामने एक स्कूल है. लेकिन ये सभी जगहें सुरक्षित हैं. देखने से ऐसा नहीं लगता है कि यहां पर कोई दंगा हुआ है लेकिन लोगों की बातें उस खौफ का हमें एहसास कराती हैं, जो बीते दिनों लोगों ने यहां महसूस किया है.
गली के चारों हिंदू परिवारों के लोग एक घर के सामने बैठे हैं. पहले कुछ अन्य मसलों पर भी चर्चा हो जाया करता था लेकिन अभी लोगों के पास बताने के लिए सिर्फ भीड़ का डर ही है. अंदर ही अंदर लोग इस बात से सहमे हैं कि कभी फिर इस तरह का हमला न हो जाए.
‘हम उन लोगों को पहचानते नहीं हैं. अचानक से हेलमेट लगाए एक भीड़ आई. उनके हाथ में लाठी, डंडे और रॉड थे. सब लोग जल्दी से अपने बच्चों को लेकर घर में घुस गए. वे तेज-तेज चिल्ला रहे थे. खिड़की से झांकने की कोशिश कर रहे थे. हम अंदर अपने सांस थामे बैठे थे.’ 55 वर्षीय विमलेश ने ये बात कही. विमलेश के दो बेटे हैं और दोनों कमाते हैं. उस दिन उनके बेटे घर पर नहीं थे.
वे आगे कहती हैं, ‘हम लोग अपने-अपने घर के बाहर बैठे रहते हैं. डर तो बहुत लगता है बेटा. छोटे-छोटे बच्चे हैं घर में. वो रोते हैं, डरते हैं. हम रात-रात भर आंच जलाकर बैठे रहते हैं कि कहीं कोई अनहोनी न हो गए. मैं 35 साल से यहां रह रही हूं, पर पहली बार ऐसा डर लग रहा है.’
विमलेश कहती हैं कि अगर उन्हें थोड़ा बहुत ढांढस बंधता है, तो वो यहां के मुसलमानों की वजह से है. उस घटना के बाद आस-पास के मुसलमान परिवार उनके घर पर आए थे और कहा था कि डरने की जरूरत नहीं है वो लोग साथ में हैं.
उन्होंने कहा कि यहां हिंदू और मुसलमानों के बीच खाना-पीना, शादी-ब्याह में आना-जाना और गीत-संगीत के कार्यक्रम में बुलावा होता है. पास में ही बैठी हुईं 60 वर्षीय लीलावती दिल्ली सरकार के रवैये को लेकर काफी गुस्से में थीं.
अपनी दास्तान बताते हुए उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं. वो कहती हैं कि वे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अपना श्रवण कुमार मानती हैं लेकिन वो या उनका कोई प्रतिनिधि यहां किसी का हाल जानने नहीं आया.
उन्होंने कहा, ‘वो जो दिल्ली का बेटा बनकर बैठ जाता है, क्या वो सिर्फ बिजली का बिल ही भरने के लिए! क्या वो एक बार आकर हमें समझा नहीं सकता था? यहां सब कोई घर छोड़कर भाग रहे हैं, वो जो हमारा बड़ा बेटा बनता है वो हमें समझाने क्यों नहीं आ रहा? वो क्यों आश्वासन नहीं दे रहा कि हमें डरने की जरूरत नहीं है? एक बार पूछने तो आ सकता था वो!’
उन्होंने कहा कि इस हिंसा और नफरत भरे माहौल में वो अपनी होली नहीं मना सकती हैं. लीलावती ने कहा, ‘हम ये चाहते हैं कि हमारे जितने भी मुसलमान और हिंदू भाई, बच्चे, परिवार जो भी यहां से गए हैं उन्हें वापस लाया जाए और हम सब में एकता बनाई जाए. इस माहौल में मेरी होली नहीं मनाई जाएगी. सिर्फ मेरी बत्ती का बिल भरने से ये सब नहीं होगा.’
यहां के हिंदू और मुसलमान दोनों का ये मानना है कि हमलावर बाहर से आए थे. लीलावती के बगल में ही सुशीला का घर है.
उन्होंने बताया, ‘अगर कोई तेज से चिल्ला भी दे या कोई भागता हुआ गुजरता है तो दिल एकदम धक्क-सा हो जाता है, घबराहट होने लगती है. केजरीवाल यहां तक चलकर आएं और लोगों को आश्वासन दे कि हम सुरक्षित रहेंगे. यहां मुस्लिम भाई हमारा ढांढस बंधा रहे हैं लेकिन इतने से तो नहीं होगा न. सरकार यहां आए.’
लीलावती अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहती हैं कि उन्हें नहीं पता कि वो इस बार होली मना पाएंगी या नहीं. इस पर पास में ही खड़े एक मुस्लिम व्यक्ति और पेशे से वकील ने कहा, ‘बिल्कुल होली मनेगी, हम सब साथ मनाएंगे.’
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कन्नौज से ताल्लुक रखने वाली रूबी पिछले 12 सालों से इस गली के सामने वाली गली में किराए पर रह रही हैं. उनके चार बच्चे हैं. सबसे बड़ा बच्चा 10 साल का है. पति साइकिल से सिलेंडर लेकर घरों तक पहुंचाने का काम करते हैं.
जिस समय दिल्ली में दंगा चल रहा था, उनके पति घर पर नहीं थे और रूबी अपने बच्चों के साथ अकेली थीं. उन्होंने बताया, ‘उस समय कोई किसी को देख नहीं रहा था. कुछ नहीं पता चला था कि कौन अपना है कौन पराया. हर कोई अपनी जान और अपने बच्चे बचाकर अंदर थे. आज भी यही परिस्थिति है. मेरे तो पति भी नहीं थे. वो गांव गए हुए थे. बच्चों का डर के बुरा हाल है. हम तो बहुत फोन करते रहे पुलिस को, सूचना देते रहे, मदद मांगते रहे लेकिन किसी ने भी न सुनी.’
रूबी ने आगे कहा, ‘इस गली से थोड़ी दूर पर ही यहां के विधायक हैं. एक बार भी शक्ल नहीं दिखाई उन्होंने. भला एक बार यहां आकर जान लेते कि चार-पांच हिंदू परिवार में हैं, किस हाल में होंगे वे.’
रूबी कहती हैं कि उन्हें अभी भी ज्यादा डर लग रहा. उन्होंने कहा, ‘यहां के मुस्लिम काफी अच्छे हैं. जरूरत पड़ने पर साथ देते हैं. लेकिन चाहे हिंदू हो या मुस्लिम, जब दंगा हो रहा था उस समय कोई साथ नहीं दे पाया.’
डर का आलम इस कदर था कि उस दिन रूबी पूरे दिन अपने बच्चे को दूध नहीं पिला पाईं. घर में कुछ नहीं था और बच्चा रोए जा रहा था. बाद में एक मुस्लिम परिवार उन्हें एक बिस्किट दिया जिसके बाद वो अपने बच्चे को शांत करा पाईं.
उन्होंने कहा, ‘आज आठ दस दिन होने को आ रहे हैं, हम काम पर नहीं जाएंगे तो क्या खाएंगे. हर पल लगता है कि अब दंगा न हो जाए, अब न हो जाए. ‘
यहां के हिंदुओं की क्या मदद की जानी चाहिए, इस सवाल पर अन्य लोगों को चुप करा कर लीलावती ने आगे बढ़कर जवाब देते हुए कहा, ‘हमें सेवा नहीं चाहिए बेटा. सेवा उनको चाहिए जिनके घर में मौत हुई है, जिनके घर जले हैं, जिनके लोग तड़प रहे हैं. यहां जो मुसलमान हैं उन्होंने हमें बचाया. अगर ये नहीं बचाते तो पता नहीं हमारे बच्चे अभी कहां होते.’
वहीं रूबी ने कहा, ‘मैं 30 साल की हो गई हूं मैं लेकिन ऐसा माहौल कभी नहीं देखा. हर तरफ आग, धुआं, तोड़-फोड़ होता दिखाई दे रहा था. पूरा आसमान काला हो रहा था. देखकर डर लग रहा था कि अगर यहां ऐसा हो गया तो हम क्या करेंगे.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे ही गली में इतनी पब्लिक आई थी, हमारा कलेजा रुक गया था. हमें मार देते वो लोग. उस समय तो कोई नहीं कह रहा था कि डरो नहीं हम हैं, अब हिंसा हो गई तो कह रहे हैं कि डरो नहीं हम हैं.’
दिल्ली के उतर पूर्व इलाकों में हुए दंगे के बाद अब राहत का कार्य जारी है. किसी भी सरकारी राहत या पार्टियों के वॉलियंटरों द्वारा मदद किए जाने के बजाय अपने स्तर पर आम आदमी मदद कर रहा है.
इसमें हिंदू और मुसलमान दोनों बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. क्षेत्र में जो भी राहत सामग्री बांटी जाती दिखाई दे रही है, वो सामान्य लोगों द्वारा विभिन्न माध्यमों से जुटाए गए थे.
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर के रहने वाले और जामिया में लॉ की पढ़ाई कर रहे स्वप्निल दुबे ने बताया, ‘मैं पिछले तीन दिनों से यहां लगा हुआ हूं. हम जामिया के छात्रों और वहां के आस-पास के लोगों से राहत का सामान जैसे कि आटा, चावल, कपड़े, चप्पल, दवाईयां, मसाले इत्यादि इकट्ठा कर रहे हैं और यहां के प्रभावित लोगों को बांट रहे हैं. सरकार जब मदद के लिए आगे नहीं आती है तो हर व्यक्ति को अपने स्तर पर मदद करनी होगी और भारत की आत्मा बचानी होगी.’
मध्य प्रदेश के रहने वाले अंकित पेशे से शायर हैं और विवादित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मुस्तफाबाद में चल रहे विरोध प्रदर्शन में व्याख्यान देने आए थे. इसी बीच दिल्ली में दंगा हो गया. ऐसी स्थिति में वे कहीं जा नहीं पाए और एक मुस्लिम परिवार के यहां उन्हें शरण लेनी पड़ी और दंगे के दौरान वो बिल्कुल सुरक्षित रहें.
उन्होंने कहा, ‘मैं पिछले कई दिनों से इस पूरे क्षेत्र में घूम रहा हूं और राहत कार्य में लगा हुआ हूं. एक बात स्पष्ट कह सकता हूं कि हिंदू क्षेत्र से मुसलमानों को पलायन करना पड़ा लेकिन मुस्लिम क्षेत्र से हिंदुओं ने पलायन नहीं किया है.’