कर्नाटक के बीजापुर से भाजपा विधायक बीपी यत्नाल ने स्वंतत्रता सेनानी एचएस दोरेस्वामी को फर्जी स्वतंत्रता सेनानी बताते हुए उनसे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के सबूत मांगे थे.
अलीगढ़ः कर्नाटक के बीजापुर से भाजपा विधायक बीपी यत्नाल द्वारा स्वतंत्रता सेनानी एचएस दोरेस्वामी को फर्जी स्वतंत्रता सेनानी और पाकिस्तानी एजेंट कहे जाने पर विवाद बढ़ गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यत्नाल ने दोरेस्वामी से कहा है कि वह साक्ष्य पेश करें कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका रही है. यत्नाल के इस बयान का केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी सहित कई भाजपा नेताओं ने समर्थन किया था.
बीते मंगलवार को कांग्रेस ने भाजपा के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए 1971 का एक दस्तावेज जारी किया है, जिस पर बेंगलुरू सेंट्रल जेल के वरिष्ठ अधीक्षक के हस्ताक्षर हैं.
1971 के इस दस्तावेज में कहा गया है कि 25 साल के अविवाहित पुरूष दोरेस्वामी बेंगलुरू की सेंट्रल जेल में 18 दिसंबर 1942 से बंद थे और उन्हें आठ दिसंबर 1943 को रिहा किया गया.
भाजपा नेताओं ने 19 साल की छात्रा अमूल्या लियोना के संपर्क में रहने पर भी दोरेस्वामी पर कई आरोप लगाए हैं.
बता दें कि बेंगलुरू में नागरिकता कानून और एनआरसी के विरोध में एक रैली में अमूल्या पर कथित तौर पर पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने को लेकर राजद्रोह का मामला दर्ज है.
भाजपा ने एक तस्वीर के आधार पर दोरेस्वामी पर आरोप लगाए हैं, जिसमें उन्हें कोप्पा में अमूल्या के घर में देखा जा सकता है.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा दोरेस्वामी के खिलाफ इस पूरे दुष्प्रचार को चौंकाने वाला और निंदनीय बताते हुए कहते हैं, ‘वह हमारे राज्य का विवेक हैं. वह बहुत ही शालीन और ईमानदार शख्स हैं. वह कई सामाजिक और पर्यावरणीय आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं और उन्होंने हमेशा किसानों और भूमिहीनों की आवाज उठाई है. उन्होंने कई खराब भूमि सौदों को लेकर कांग्रेस सरकार की भी आलोचना की है लेकिन जो मुझे सबसे अधिक अचंभित करता है वह मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की चुप्पी है, जो जानते हैं कि दोरेस्वामी किस तरह के शख्स हैं.’
इस पूरे घटनाक्रम पर दोरेस्वामी कहते हैं, ‘मेरा 60 साल का सार्वजनिक जीवन रहा है. हमारे विचारधाराओं को लेकर मतभेद हो सकते हैं लेकिन मेरे भाजपा और आरएसएस में भी दोस्त हैं. मैंने कभी नहीं सोचा था कि भाजाप कभी मुझ पर इस तरह हमला करेगी.’
यह मानते हुए कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचक हैं, उन्होंने कहा, ‘मैंने हर सरकार की आलोचना की है. यह एक नागरिक की प्राथमकिता है. आपातकाल के दौरान मैंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखते हुए कहा था कि आप लोकतंत्र के नाम पर शासन कर रही हैं लेकिन तानाशाह की तरह व्यवहार कर रही हैं. अगर यह जारी रहा तो मैं घर-घर जाकर लोगों को बताउंगा कि आप तानाशाह हैं.’
उस समय दोरेस्वामी को लगातार चार महीने तक जेल में रखा गया और मजिस्ट्रेट द्वारा उनके मामले को खारिज करने के बाद उन्हें रिहा किया गया था. मजिस्ट्रेट ने कहा था, ‘उनके पास प्रधानमंत्री की आलोचना करने का हर अधिकार है.’
बेंगलुरू के एक स्कूल में रसायन और गणित के टीचर रहे दोरेस्वामी जून 1942 में महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े थे.
वह कहते हैं, ‘हम सरकारी कार्यालयों में पोस्ट बॉक्स के पास छोटे-छोटे टाइम बम रखते थे. इसका मतलब लोगों को मारना नहीं था. बस उनसे दस्तावेज जल जाते थे, जिससे सराकर के बीच संचार ठप हो जाता था. कभी-कभी हम चूहों की पूछ में बम बांध देते थे और उन चूहों को रिकॉर्ड रूम में फेंक देते थे.’
दोरेस्वामी को आगजनी के लिए भी गिरफ्तार किया गया था. वह जब 1943 में रिहा हुए तो वह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए.
तब से दोरेस्वामी कई आंदोलनों का हिस्सा रहे, फिर चाहे वह भूमिहीन किसानों के अधिकारों के लिए उत्तरी कर्नाटक में कैगा परमाणु संयंत्र के खिलाफ विरोध ही क्यों न हो.
कार्यकर्ता एसआर हीरेमठ कहते हैं, ‘दोरेस्वामी जैसी गांधीवादी छवि वाले इंसान को पाकिस्तानी एजेंट कहना और उन पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाना हास्यास्पद है.’
2014 में दोरेस्वामी और दिवंगत पत्रकारी गौरी लंकेश उस एक सिविल सोसाइटी प्लेटफॉर्म का हिस्सा रहे, जिसके तहत आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों को मुख्यधारा में लाया गया.
दोरेस्वामी कहते हैं, ‘हम चाहते हैं कि नक्सली लोकतांत्रिक प्रणाली से जुड़े लेकिन ये लोग मुझे नक्सली कहते हैं.’
दोरेस्वामी कहते हैं, ‘मैं चिंतित नहीं हूं. मेरे दोस्त कहते हैं कि ये सब इसलिए हो रहा है ताकि वे मेरी आवाज दबा सकें. लेकिन संविधान हमारी रक्षा कर रहा है. लोग यहां हैं. लोग मुझे जानते हैं. मेरी जिंदगी एक शीशे की तरह है. यकीनन, लोग मेरा साथ देंगे. गरीबों को भोजन, रोजगार, शिक्षा चाहिए इसलिए मैं अभी भी लड़ रहा हूं.’